Mobile Only Menu
  • Home
  • राजनीति
  • बिहार मांगे जन सुराज : प्रशांत किशोर की पार्टी क्या बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में तीसरा मोर्चा बनेगी
Image

बिहार मांगे जन सुराज : प्रशांत किशोर की पार्टी क्या बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में तीसरा मोर्चा बनेगी

सोशल मीडिया का शोर या जनता की असली पुकार?

आप खुद सोचिए, ये जो ‘बिहार मांगे जन सुराज’ का नारा ‘एक्स’ (पहले ट्विटर) पर इतना ट्रेंड हो रहा है, ये सिर्फ इंटरनेट का शोर नहीं है। ये तो उस थकी-हारी जनता की आवाज़ है, जो दशकों से चली आ रही दो ध्रुवों—एनडीए और महागठबंधन—की राजनीति से बोर हो चुकी है । लोगों को अब लग रहा है कि बिहार को बदलने के लिए कोई ‘तीसरी शक्ति’ आनी चाहिए। और इसी उम्मीद की धुरी पर खड़े हैं प्रशांत किशोर (पीके)।   

जो पीके कभी देश के बड़े-बड़े नेताओं को जीत का फॉर्मूला देते थे, अब उन्होंने अपनी पुरानी ‘सलाहकार’ वाली टोपी उतारकर, पूरी तरह से ‘राजनेता’ का चोला पहन लिया है । उनका सीधा फंडा है: जब तक व्यवस्था नहीं बदलती, तब तक सिर्फ़ बाहर से रणनीति बनाकर कुछ नहीं होगा। इसीलिए, पीके ने अब खुद ही मैदान में उतरने का फैसला किया है। उनका मंत्र है— ‘सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास’ । यह कदम बताता है कि अब वह सियासी गणित नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़ा एक बड़ा बदलाव चाहते हैं। 

पदयात्रा: 3500 किलोमीटर की तपस्या

जन सुराज की शुरुआत किसी बड़े जलसे से नहीं, बल्कि एक लंबी पैदल यात्रा से हुई। 2 अक्टूबर 2022 को गांधी जयंती के दिन, पीके ने पश्चिम चंपारण के गांधी आश्रम से 3500 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू की । यह यात्रा सिर्फ़ किलोमीटर नापने का रिकॉर्ड नहीं था। पीके ने सचमुच गांव-गांव, गली-गली जाकर बिहार की मिट्टी को समझा, लोगों के दुख-दर्द सुने, और राज्य की समस्याओं की जड़ें टटोलीं ।   

यह एक तरह से जमीनी हकीकत का सर्वे था। इस दौरान, उन्होंने हज़ारों गांवों में घूम-घूमकर ऐसे लोगों को तलाशा जो वाकई बिहार के लिए कुछ करना चाहते थे, जो पढ़े-लिखे थे और जिनकी छवि साफ़ थी । जब यह तपस्या पूरी हुई, तो 2 अक्टूबर 2024 को इस अभियान ने विधिवत जन सुराज पार्टी (JSP) का रूप ले लिया । पार्टी का चुनाव चिह्न भी देखिए, कितना ख़ास है: ‘स्कूल बैग’! यह साफ इशारा है कि पार्टी का सारा ध्यान उस युवा पीढ़ी और शिक्षा पर है, जो रोज़गार के लिए बिहार छोड़ने को मजबूर है ।   

सबसे ‘धाँसू’ वादा: 15 मिनट में शराबबंदी ख़त्म!

जन सुराज की राजनीति का मज़ा इसके तीखे और सीधे हमलों में है। पार्टी लगातार सरकार से बेरोज़गारी, बदहाल शिक्षा और बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन पर सवाल पूछ रही है ।   

लेकिन सबसे धाँसू और तीखा हमला उन्होंने शराबबंदी पर किया। प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मॉडल को ‘ई-कॉमर्स मॉडल’ कहकर मज़ाक उड़ाया और सीधा वादा किया: अगर हमारी सरकार बनी, तो हम केवल 15 मिनट में शराबबंदी हटा देंगे । उन्होंने कहा कि इस नीति ने तो गांव के लड़कों को शराब के अवैध धंधे में धकेल दिया है । यह बयान केवल एक नीति नहीं है; यह उन लाखों लोगों को अपनी तरफ खींचने का दाँव है जो इस क़ानून से परेशान हैं।   

एक और क्रांतिकारी वादा है ‘राइट टू रिकॉल’ (Right to Recall) का। पीके ने कहा है कि जन सुराज के संविधान में यह प्रावधान होगा कि अगर आपका चुना हुआ नेता ढाई साल में काम नहीं करता है, तो जनता उसे अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटा सकती है । यह नेताओं के सिर पर जवाबदेही का डंडा चलाने जैसा है।   

जब ‘वोटकटवा’ कहने वाले खुद घबरा गए

शुरुआत में, विरोधी पार्टियों ने जन सुराज को ‘वोट काटने वाला’ कहकर किनारे करने की कोशिश की । लेकिन हाल ही में जो राजनीतिक ड्रामा हुआ, उसने बता दिया कि अब पीके की पार्टी से सब डरने लगे हैं।   

पीके ने सीधे तौर पर बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए कि उनके तीन उम्मीदवारों (दानापुर, ब्रह्मपुर और गोपालगंज) को ज़बरदस्त दबाव डालकर नामांकन वापस लेने पर मजबूर किया गया । उन्होंने साफ़ कहा, “जन सुराज को वोटकटवा बताने वाली बीजेपी को असल में डर लग रहा है। उन्हें महागठबंधन से नहीं, हमसे डर लग रहा है!” ।   

पीके ने कहा कि विरोधी पार्टियां लोकतंत्र की हत्या कर रही हैं, लेकिन वह अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, भले ही उन्हें 243 की बजाय 240 सीटों पर ही लड़ना पड़े । यह पूरा विवाद ही जन सुराज के लिए एक तरह से ‘विज्ञापन’ बन गया है। अगर विरोधी इतने घबराए हुए हैं, तो इसका मतलब है कि पीके की धमक सिर्फ़ हवा-हवाई नहीं है। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर भी जन सुराज, RJD जैसी बड़ी पार्टी को टक्कर दे रही है, जिससे युवाओं के बीच उसकी पहुंच मजबूत हो रही है ।   

निर्णायक मोड़

जन सुराज ने बिहार के चुनाव को दोतरफा की जगह त्रिकोणीय बना दिया है । यह पार्टी योग्यता और ईमानदारी की बात करती है , लेकिन चुनावी मैदान में उतरते ही इसे भी जातिगत गणित (जैसे भागलपुर में मुस्लिम, रविदास और ब्राह्मण उम्मीदवारों का चयन) का ध्यान रखना पड़ता है, जो बिहार की राजनीति की मजबूरी है ।   

अब देखना यह है कि क्या प्रशांत किशोर का यह नया प्रयोग, केवल वोट बांटने वाला साबित होगा, या फिर सचमुच बिहार की सत्ता के समीकरण को बदल कर रख देगा। इसमें कोई शक नहीं कि 2025 का चुनाव अब पहले से कहीं ज़्यादा मज़ेदार और अप्रत्याशित हो गया 

Releated Posts

2025 बिहार विधानसभा चुनाव: पहले चरण की हाई-प्रोफाइल सीटों का विश्लेषण

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का मतदान 06 नवम्बर को 18 जिलों की 121 सीटों पर…

ByByManvinder Mishra Nov 4, 2025

पीयूष प्रियदर्शी : मोकामा में ‘बाहुबली’ राजनीति को युवा की खुली चुनौती

संघर्ष, शिक्षा और बदलाव की दस्तक बिहार की राजनीति दशकों से ‘दबंगों’, जातीय समीकरणों और स्थापित नेताओं के…

ByByManvinder Mishra Nov 2, 2025

मोकामा का खूनी खेल : चुनावी दहलीज पर दुलारचंद हत्याकांड

बिहार की चुनावी राजनीति में मोकामा विधानसभा क्षेत्र को ‘बाहुबल का बैरोमीटर’ कहा जाता है। 30 अक्टूबर 2025…

ByByManvinder Mishra Oct 31, 2025

AIIMS Darbhanga : ऐलान 2015 का, हकीकत 2030 की

यह परियोजना, जिसे बिहार के मिथिला, कोशी और तिरहुत क्षेत्रों के लिए जीवनरेखा माना जाता है, राजनीतिक गतिरोध…

ByByManvinder Mishra Oct 27, 2025

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top