बिहार की सियासत में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी का परिवार किसी खुली किताब से कम नहीं है, लेकिन उनके बड़े बेटे Tej Pratap की कहानी सबसे जुदा है। 16 अप्रैल 1988 को जन्मे तेज प्रताप के पास विरासत में सब कुछ था—ताकत, रुतबा और सत्ता का रास्ता । मगर आज उनकी पहचान एक ऐसे विद्रोही की है, जिसे अपने ही परिवार और अपनी ही पार्टी (RJD) ने दरकिनार कर दिया है।
Tej Pratap ने 2010 में 12वीं (इंटरमीडिएट) पास की । वह बचपन से ही उस राजनीतिक माहौल में रहे, जहाँ उनका हर कदम सुर्ख़ियों में रहता था। हालांकि, लालू जी ने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक वारिस चुना । इस फैसले ने तेज प्रताप को ‘शहजादा’ तो बनाए रखा, लेकिन उन्हें संस्थागत ताक़त से दूर कर दिया।
दिलचस्प बात यह है कि राजनीति में ‘तेज प्रताप’ नाम के दो बड़े चेहरे हैं। हमें यहाँ लालू-राबड़ी के बेटे तेज प्रताप यादव (बिहार के) की बात करनी है, जो उत्तर प्रदेश के राजनेता तेज प्रताप सिंह यादव के जीजा भी हैं ।

Tej Pratap Yadav : मंत्री का काम, जनता का प्यार
Tej Pratap ने अपनी राजनीतिक यात्रा में दो बार मंत्री पद संभाला, और उन्होंने साफ़ दिखाया कि ज़मीन पर काम करने का उनका अपना तरीका है।
स्वास्थ्य मंत्री का बड़ा फ़ैसला (2015-2017)
2015 में महुआ सीट से पहली जीत के बाद , तेज प्रताप को स्वास्थ्य, पर्यावरण और कल्याण जैसे अहम विभाग मिले । इस दौरान, उन्होंने महुआ में 462 करोड़ रुपये की लागत से 20 एकड़ में एक भव्य अस्पताल बनाने की योजना शुरू की ।
यह अस्पताल भले ही चार साल बाद भी चालू नहीं हो पाया हो, लेकिन स्थानीय लोग आज भी इसका श्रेय तेज प्रताप को देते हैं। उनके लिए यह ‘वादे का पक्का’ नेता है, जिसने कम से कम सोचा तो । जनता का यह प्यार ही उनकी असली ताक़त है, जो उन्हें पार्टी से निकाले जाने के बाद भी चुनाव में लड़ने की हिम्मत देता है।
अलबेला अंदाज़ और अलग स्टाइल
Tej Pratap का अंदाज़ हमेशा लीक से हटकर रहा है। 2015 में उन्होंने प्रदूषण रोकने के लिए घोड़े की सवारी को बढ़ावा देने का विचार दिया । इसके अलावा, वह बांसुरी बजाते हैं और 2021 में यूट्यूब चैनल भी शुरू कर चुके हैं । इस ‘अलबेले’ अंदाज़ ने उन्हें RJD के बाकी नेताओं से अलग पहचान दी है—वह दिल से जुड़े, थोड़े सनकी, लेकिन जनता के बीच रहने वाले नेता माने जाते हैं ।
चुनावी मैदान का ‘दबंग’: सिर्फ़ नाम नहीं, काम भी
तेज प्रताप यादव ने दो अलग-अलग सीटों—महुआ और हसनपुर—से जीत हासिल की, जिससे पता चलता है कि वह सिर्फ़ अपने पारिवारिक नाम पर नहीं जीतते, बल्कि उनकी अपनी लोकप्रियता है ।
2020 में, हसनपुर सीट पर उन्होंने 80,991 वोट (48.52%) हासिल किए और प्रतिद्वंद्वी जद (यू) के राजकुमार राय को 21,139 वोटों के बड़े अंतर से मात दी । यह आंकड़ा बताता है कि RJD के लिए वह एक बड़ी चुनावी पूंजी थे, और उन्हें बाहर निकालना पार्टी के लिए महंगा साबित हो सकता है।
विरासत का अभिशाप: ‘घर का भेदी’
लालू परिवार की कहानी एक भाई की जीत और दूसरे की हार है।
छोटा भाई तेजस्वी, आज पूरी RJD और पूरे परिवार का राजनीतिक आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ रहा है । पिता लालू यादव का नाम उनके लिए संजीवनी बूटी का काम करता है, क्योंकि वोटर कहते हैं, “हम लालू जी को नाराज़ नहीं कर सकते” ।
वहीं, बड़े भाई तेज प्रताप को मई 2025 में ‘गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार’ के आरोप में 6 साल के लिए पार्टी और परिवार से निष्कासित कर दिया गया । लालू का नाम जो तेजस्वी के लिए वरदान है, वही तेज प्रताप के लिए अब सबसे बड़ा बोझ बन गया है ।
जब तेज प्रताप ने अपना नामांकन भरा, तो परिवार का कोई भी सदस्य उनके साथ नहीं था । उन्होंने अपनी दिवंगत दादी मरछिया देवी की तस्वीर साथ रखकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वह भले ही आज के परिवार से कटे हुए हैं, पर वंश की मूल जड़ों से जुड़े हैं ।
तेज प्रताप का दर्द और गुस्सा तब सामने आया, जब उन्होंने साफ़ कह दिया कि वह ‘सत्ता के भूखे नहीं हैं’ और ‘RJD में लौटने के बजाय मरना पसंद करेंगे’ । इस बयान ने यह साफ़ कर दिया कि अब यह झगड़ा सुलझने वाला नहीं है।
निजी ज़िंदगी: घर की लड़ाई सड़क पर आई
Tej Pratap की निजी ज़िंदगी का विवाद भी राजनीतिक ड्रामा बन गया। 2018 में उन्होंने ऐश्वर्या राय (एक पूर्व मुख्यमंत्री की पोती) से शादी की, लेकिन तुरंत ही तलाक का मामला कोर्ट पहुँच गया ।
तलाक का मामला न्यायाधीशों के स्थानांतरण के कारण कानूनी चुनौतियों का सामना करता रहा है । ऐश्वर्या राय ने खुले तौर पर परिवार पर गंभीर आरोप लगाए । उन्होंने दावा किया कि लालू परिवार को उनकी शादी से पहले ही तेज प्रताप के ’12 साल पुराने अफेयर’ की जानकारी थी, और राबड़ी देवी आज भी तेज प्रताप से संपर्क में हैं ।
RJD के लिए यह घरेलू कलह एक बड़ी चुनौती थी। तेज प्रताप को पार्टी से बाहर करने का एक मकसद यह भी था कि पार्टी खुद को इस तरह के गंभीर व्यक्तिगत आरोपों से दूर दिखा सके, ताकि उसकी सार्वजनिक और नैतिक छवि बची रहे ।
अपना झंडा: Janshakti Janta Dal (JJD)
पार्टी से निकाले जाने के बाद, तेज प्रताप चुप नहीं बैठे। उन्होंने 26 सितंबर 2025 को अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) बनाई । उन्होंने अपनी विचारधारा भी ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ रखी, जो RJD की मूल विचारधारा से मिलती है । यह साफ़ संकेत था कि वह अपने छोटे भाई को चुनौती दे रहे हैं कि लालू जी की विरासत का असली झंडाबरदार कौन है।
उन्होंने ‘धर्मनिरपेक्ष सेवक संघ’ (DSS) भी बनाया, जिसे उन्होंने सीधे ‘RSS का काउंटर’ बताया । यह संगठन उन्हें RJD के पारंपरिक सेक्युलर वोट बैंक को अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश थी।
आज Tej Pratap महुआ सीट पर अपनी नई पार्टी JJD के साथ चुनाव लड़ रहे हैं । इस मुकाबले में उनकी जीत से ज़्यादा, वह RJD को कितना नुक़सान पहुँचाते हैं, यह देखना ज़रूरी है। वह चुनावी मैदान में एक ‘स्पॉइलर’ (विघटनकारी) की भूमिका में हैं, जो अपने ही घर की सियासत का गणित बिगाड़ने निकल पड़े हैं।
तेज प्रताप यादव की कहानी यही सिखाती है कि राजनीति में सिर्फ़ नाम नहीं, संस्थागत ताक़त भी ज़रूरी होती है। उनके पास ज़बरदस्त व्यक्तिगत अपील है, पर क्या वह अपने परिवार और पार्टी की ताक़त के बिना सियासत का मैदान जीत पाएंगे? बिहार की जनता इस बड़े भाई के विद्रोह को कैसे देखती है, यही अब सबसे बड़ा सवाल है।

















