मुंबई की पवई में 30 अक्टूबर 2025 की दोपहर, मायानगरी को दहलाने वाला एक ऐसा ड्रामा हुआ, जो किसी फ़िल्मी थ्रिलर से कम नहीं था. एक स्टूडियो के अंदर 17 मासूम बच्चों को बंधक बना लिया गया था. बंधक बनाने वाला कोई आतंकवादी नहीं था, बल्कि एक पढ़ा-लिखा फिल्ममेकर और सामाजिक उद्यमी था.
आइए, जानते हैं कि क्यों एक सोशल वर्कर अचानक बच्चों का दुश्मन बन गया, और कैसे मुंबई पुलिस ने 4 घंटे के अंदर इस हाई-प्रोफाइल संकट को एक गोली चलाकर खत्म किया.

2 करोड़ का बक़ाया: एक फिल्ममेकर का सरकारी सिस्टम से गुस्सा
इस खतरनाक खेल का मुख्य किरदार था— रोहित आर्य (50).
रोहित आर्य कोई मामूली आदमी नहीं था. उसके पास पुणे के सिम्बायोसिस और आई.एस.बी. (ISB) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से एम.बी.ए. की डिग्री थी. वह ‘अप्सरा मीडिया’ नाम की अपनी कंपनी चलाता था और सामाजिक जागरूकता पर वीडियो बनाता था. 2017 से, वह बच्चों के साथ मिलकर ‘स्वच्छ भारत’ पहल के तहत स्कूलों में ‘स्वच्छता मॉनिटर’ जैसे कार्यक्रम चला रहा था.
लेकिन असली विलेन पैसा था: आर्य का दावा था कि महाराष्ट्र शिक्षा विभाग पर उसके ‘स्वच्छता मॉनिटर’ कार्यक्रम के तहत करीब ₹2 करोड़ का बक़ाया था. यह विवाद सालों से चल रहा था, और वह पहले भी इसके लिए भूख हड़ताल तक कर चुका था.
जब हर दरवाज़ा बंद हो गया, तो आर्य ने एक खौफ़नाक फ़ैसला लिया. उसने आत्महत्या करने के बजाय, इस बक़ाया राशि के लिए सरकार पर दबाव बनाने की ‘योजना’ बनाई.
‘ऑडिशन’ का जाल और आग लगाने की धमकी
पवई के आर.ए. स्टूडियो में रोहित आर्य ने एक ‘वेब सीरीज़’ के ऑडिशन के बहाने 10 से 17 साल की उम्र के 17 बच्चों को बुलाया. दोपहर लगभग 1 बजे, जैसे ही बच्चे अंदर आए, उसने दरवाज़ा बंद कर दिया.
बच्चों के साथ, एक 75 वर्षीय दादी और एक स्टूडियो स्टाफ़र भी अंदर बंधक थे.
बंद करने के तुरंत बाद, आर्य ने एक वीडियो जारी किया. इसमें उसने चौंकाने वाला बयान दिया:
“मैंने आत्महत्या करने के बजाय बच्चों को बंधक बनाने का प्लान बनाया है. मेरी मांगें ‘नैतिक’ और ‘सैद्धांतिक’ हैं. मैं आतंकवादी नहीं हूँ और मुझे पैसा नहीं चाहिए, बस बातचीत करनी है.”
लेकिन साथ ही धमकी भी दी: “अगर अधिकारियों ने छोटी सी भी ग़लती की, तो मैं पूरे स्टूडियो को आग लगा दूँगा. फिर बच्चों को जो भी नुकसान होगा, उसके लिए मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँगा.”
ऑपरेशन “बाथरूम वेंट”: जब बातचीत फेल हुई
दोपहर 1:30 बजे पुलिस को कॉल मिली और तुरंत क्विक रिस्पॉन्स टीम (QRT), बम स्क्वॉड और अग्निशमन दल (Fire Brigade) मौके पर पहुँच गए.
शुरुआती दो घंटे तक पुलिस ने आर्य से बातचीत करने की कोशिश की. लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. तनाव तब और बढ़ गया, जब पुलिस को पता चला कि बंधकों में एक छोटी बच्ची को मिर्गी के दौरे पड़ते थे और उसे तुरंत दवा चाहिए थी. आर्य ने उसे भी छोड़ने से मना कर दिया. पुलिस ने खिड़की के पीछे से बच्चों को रोते हुए देखा.
अब यह साफ़ था: बातचीत से काम नहीं चलेगा.
शाम 3:30 बजे, पुलिस ने एक ख़ुफ़िया योजना बनाई. उन्हें पता चला कि आर्य ने स्टूडियो में सेंसर और डिटेक्टर लगा रखे थे, लेकिन स्टूडियो का एक छोटा बाथरूम वेंट (खिड़की) बिना किसी सुरक्षा के था.
- फायर ब्रिगेड की मदद: पुलिस टीम ने डक्ट लाइन के ज़रिए अंदर जाने के लिए फायर ब्रिगेड के विशेषज्ञ उपकरणों की मदद ली.
- गुप्त एंट्री: एक टीम ने शीशे की दीवार काटी, जबकि दूसरी टीम ने अग्निशमन विभाग की सीढ़ी का उपयोग करके बाथरूम वेंट/ग्रिल तोड़कर अंदर घुसना शुरू किया.
क्लाइमेक्स: वह एक गोली जिसने सब ख़त्म कर दिया
जब पुलिस ने धावा बोला, तो यह पल सेकंडों में ख़त्म करना ज़रूरी था. आर्य एयरगन और ज्वलनशील स्प्रे से लैस था.
मुंबई पुलिस प्रमुख देवेन भारती के अनुसार, जब पुलिस अंदर घुसी, तो रोहित आर्य ने पहले एयरगन से गोली चला दी.
बच्चों पर ख़तरा देखते हुए, पवई पुलिस स्टेशन के आतंकवाद निरोधक सेल के अधिकारी अमोल वाघमारे ने जवाबी कार्रवाई की. उन्होंने एक नियंत्रित गोली चलाई, जो सीधे आर्य के सीने में लगी.
यह सब शाम 4:30 बजे हुआ. 4:45 बजे तक, सभी 17 बच्चों और 2 वयस्कों को सुरक्षित निकाल लिया गया. ऑपरेशन सफल रहा. हालांकि, रोहित आर्य ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.
बच्चों के छिपे हुए ज़ख्म
ऑपरेशन तो सफल रहा, लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. बच्चों को तुरंत सेवन हिल्स अस्पताल ले जाया गया, जहाँ वे “सुरक्षित” पाए गए.
लेकिन मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि हमें बच्चों की ‘लचीलेपन’ को कम करके नहीं आंकना चाहिए. इस तरह के तनावपूर्ण और हिंसक अनुभव के बाद, बच्चों में पी.टी.एस.डी. (PTSD) या पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का ख़तरा होता है.
विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि बच्चों को तुरंत छोटे समूहों में काउंसलिंग दी जाए और माता-पिता को भी काउंसलर की तरह व्यवहार करने से रोका जाए.
कानूनी जाँच
चूंकि यह मौत पुलिस फ़ायरिंग में हुई थी, इसलिए कानून के तहत इस मामले में एक मजिस्ट्रेट जांच (Magisterial Inquiry) ज़रूरी है. यह जाँच यह सुनिश्चित करेगी कि पुलिस ने जो गोली चलाई, वह आत्मरक्षा में और सही थी या नहीं.
यह पूरा वाकया बताता है कि कैसे सरकारी सिस्टम की अनदेखी और एक व्यक्ति की हताशा मिलकर एक बड़ा राष्ट्रीय संकट पैदा कर सकती है, और कैसे हमारी पुलिस ने अंतिम समय में बच्चों की जान बचाने के लिए एक साहसी और निर्णायक कदम उठाया.














