
संघर्ष, शिक्षा और बदलाव की दस्तक
बिहार की राजनीति दशकों से ‘दबंगों’, जातीय समीकरणों और स्थापित नेताओं के शिकंजे में रही है। ऐसे माहौल में, जब एक युवा, उच्च शिक्षित और गैर-पारंपरिक चेहरा चुनाव के मैदान में उतरता है, तो यह बदलाव की एक बड़ी दस्तक होती है। पीयूष प्रियदर्शी का राजनीतिक उभार इसी नई कहानी का प्रतीक है, लेकिन उनका सफर जितना आशावादी है, उतना ही चुनौतियों और आलोचनाओं से भरा भी है।
प्रियदर्शी पियूष राष्ट्रीय चर्चा में तब आए जब उन्होंने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) की नई पार्टी, जन सुराज के उम्मीदवार के तौर पर 2025 के मोकामा विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई । वह सिर्फ 30 साल के हैं और उनकी शैक्षणिक योग्यता उनकी सबसे बड़ी पहचान है—उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS), मुंबई से 2023 में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की । मोकामा में उनकी एंट्री को ‘बाहुबल बनाम बुद्धिजीवी‘ की लड़ाई के रूप में देखा गया , लेकिन विरोधी इसे केवल प्रशांत किशोर का एक ‘चुनावी प्रयोग’ बताकर खारिज करते रहे हैं।
टीस (TISS) की डिग्री
पीयूष ने TISS, मुंबई से मास्टर ऑफ आर्ट्स इन सोशल वर्क की डिग्री ली , जिसमें उनकी विशेषज्ञता ‘अपराध विज्ञान और न्याय’ (Criminology and Justice) थी । मोकामा, जो दबंग राजनीति का गढ़ है , वहां न्याय और अपराध विज्ञान में पढ़े उम्मीदवार का खड़ा होना एक सीधा संदेश देता है कि जन सुराज की लड़ाई न्याय के लिए है।
| नाम | प्रियदर्शी पियूष |
| आयु (2025 संदर्भ में) | 30 वर्ष |
| गृह जिला | बांका, बिहार |
| उच्चतम शिक्षा | M.A. सोशल वर्क (अपराध विज्ञान और न्याय) |
| व्यवसाय | रियल एस्टेट बिजनेस प्रॉपर्टी डीलर |
| वार्षिक आय (FY 2024-25) | ₹ 8,46,080 से अधिक |
| वर्तमान पार्टी | जन सुराज पार्टी (JSP) |
मुंगेर: राजनीति का पहला ‘झटका’ और आलोचना
पीयूष प्रियदर्शी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में मुंगेर संसदीय क्षेत्र से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनावी कदम रखा । यह कदम उनके व्यक्तिगत हौसले को दर्शाता है, लेकिन परिणाम ने उनकी राजनीतिक जमीन की हकीकत से भी परिचित कराया।
मुंगेर में उनका प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा। उन्हें कुल 13,825 वोट मिले । यह वोट संख्या मुख्य प्रतिद्वंद्वियों JD(U) और RJD के वोट (क्रमशः 5,50,146 और 4,69,270 वोट ) की तुलना में नगण्य थी। विरोधी खेमे ने इस हार को उनकी राजनीतिक अनुभवहीनता का प्रमाण माना और दावा किया कि पीयूष व्यक्तिगत योग्यता के बल पर बिहार की गहरी जड़ें जमा चुकी दलगत राजनीति में सफल नहीं हो सकते।
इस अनुभव ने पीयूष को यह समझने में मदद की कि उन्हें सफलता के लिए एक बड़े संगठनात्मक समर्थन की आवश्यकता है, और यही कारण था कि वह प्रशांत किशोर के ‘जन सुराज’ की ओर मुड़े ।
जन सुराज की रणनीति: प्रशंसा या केवल प्रयोग
पीयूष प्रियदर्शी का जन सुराज पार्टी (JSP) से जुड़ना उनके राजनीतिक सफर का एक निर्णायक और जोखिम भरा मोड़ था। JSP, जिसकी स्थापना 2 अक्टूबर 2024 को हुई थी, गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित एक वैकल्पिक तीसरा मोर्चा बनाना चाहती है ।
मोकामा के लिए पीयूष को उम्मीदवार बनाना प्रशांत किशोर का एक बड़ा रणनीतिक प्रयोग था । मोकामा हमेशा से दो बाहुबली खेमों (अनंत सिंह और सूरजभान खेमा ) का गढ़ रहा है। पीयूष को इन दो ध्रुवों के बीच उतारने पर विरोधी दलों ने तीखी आलोचना की। उनका आरोप था कि पीयूष सिर्फ एक ‘वोट-कटर’ हैं, जिन्हें PK ने जानबूझकर दोनों बाहुबली उम्मीदवारों के वोट काटने के लिए मैदान में उतारा है ताकि लड़ाई को कमजोर किया जा सके [तथ्यों से अनुमानित]। उनका तर्क था कि पीयूष की कोई मजबूत जातिगत पकड़ या संगठनात्मक शक्ति नहीं है, इसलिए वह केवल प्रशांत किशोर के ब्रांड को मोकामा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में टेस्ट करने का माध्यम हैं ।
जहाँ जन सुराज इसे ‘साफ राजनीति’ की चुनौती के रूप में पेश कर रहा था, वहीं विरोधी इसे एक गैर-गंभीर प्रयास के रूप में खारिज करते रहे। यह कदम प्रशांत किशोर की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा था, जिसमें वह यह साबित करना चाहते थे कि उनका ‘जन सुराज’ एक उभरती हुई ‘तीसरी राजनीतिक शक्ति’ है, हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि उनका प्रभाव अभी भी शुरुआती चरण में है ।
मोकामा का त्रिकोणीय मुकाबला और विरोधी की प्रतिक्रिया
मोकामा सीट पर लगभग 82,000 धनुक और कुर्मी, 50,000 भूमिहार और 40,000 यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं । दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वी भूमिहार होने के कारण वोटों का विभाजन लगभग तय था ।
पीयूष प्रियदर्शी के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया । पीयूष ने अपने प्रचार में जातिगत मुद्दों को दरकिनार करते हुए बेरोजगारी, शिक्षा और भ्रष्टाचार जैसे ठोस मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया ।
हालांकि, मोकामा के दबंग खेमों ने पीयूष की इस रणनीति पर खुलकर हमला किया। उन्होंने उन्हें ‘बाहरी’ उम्मीदवार बताकर खारिज किया और उन पर मोकामा के स्थानीय मुद्दों से अनभिज्ञ होने का आरोप लगाया। उनका सीधा हमला था कि एक रियल एस्टेट व्यवसायी की TISS डिग्री मोकामा के ग्रामीण और बाहुबली वर्चस्व वाले माहौल में काम नहीं आएगी। उन्होंने यह भी कहा कि मोकामा की जनता प्रशांत किशोर के ‘प्रयोग’ से प्रभावित होने वाली नहीं है।
दुलार चंद यादव विवाद : संघर्ष का काला अध्याय
पीयूष प्रियदर्शी के मोकामा अभियान का सबसे दुखद और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मोड़ जन सुराज समर्थक दुलार चंद यादव की मृत्यु थी । 27 अक्टूबर 2025 को जब यादव पटना के मोकामा क्षेत्र में पीयूष के लिए प्रचार कर रहे थे, तभी उनकी मृत्यु हो गई ।
जन सुराज पार्टी ने इस घटना को ‘जंगलराज’ चाहने वालों की करतूत और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करार दिया । यह घटना प्रशांत किशोर के ‘जंगलराज’ विरोधी अभियान का एक सीधा प्रमाण बन गई, जिसने पीयूष को भावनात्मक और नैतिक वोट बटोरने में मदद की।























