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2025 बिहार विधानसभा चुनाव

2025 बिहार विधानसभा चुनाव: पहले चरण की हाई-प्रोफाइल सीटों का विश्लेषण

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का मतदान 06 नवम्बर को 18 जिलों की 121 सीटों पर होने जा रहा है । यह चरण राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये सीटें आगामी चुनावी रुझान का शुरुआती संकेत देंगी। पहले चरण में न केवल प्रमुख राजनीतिक दलों के दिग्गज, बल्कि कई लोकप्रिय और बाहुबली चेहरे भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय और बेहद दिलचस्प हो गया है ।   

2025 बिहार विधानसभा चुनाव

AI Image

NDA का किला: 121 सीटों पर सत्ताधारी गठबंधन की अग्निपरीक्षा

पहले चरण में पटना, दरभंगा, समस्तीपुर, मुंगेर, और लखीसराय जैसे प्रमुख जिलों की विधानसभा सीटों पर मतदान होगा । 2020 के पिछले चुनावों में, इन क्षेत्रों के पटना, मुंगेर और दरभंगा प्रमंडलों में NDA ने महागठबंधन पर स्पष्ट और निर्णायक बढ़त हासिल की थी । उदाहरण के लिए, पटना जिले की 14 सीटों में से 9 (NDA) ने जीत दर्ज की थी ।   

यह चरण NDA के लिए एक “रक्षात्मक मोर्चा” साबित हो रहा है, जहाँ उसे अपनी पिछली मजबूत पकड़ को बनाए रखना अनिवार्य है। वहीं, महागठबंधन इस चरण के माध्यम से अपनी चुनावी गति स्थापित करने की पुरजोर कोशिश करेगा। यदि NDA इस चरण में पिछली सफलता की तुलना में महत्वपूर्ण सीटें खोता है, तो यह संकेत देगा कि जनता की (एंटी-इंकम्बेंसी) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड (JDU) की ओर केंद्रित है। JDU को पिछले कुछ चुनावों से लगातार वोट शेयर की कमी का सामना करना पड़ रहा है , इसलिए इस चरण में JDU के उम्मीदवारों की जीत काफी हद तक भाजपा के मजबूत वोट बैंक के सफल ट्रांसफर पर निर्भर करती है। यदि गठबंधन का यह तंत्र विफल होता है, तो JDU के भीतर नेतृत्व की मोलभाव करने की शक्ति पर सीधा असर पड़ेगा।   

गठबंधन का गणित: PK की जन सुराज और नए राजनीतिक खिलाड़ी

इस चुनाव में मुख्य मुकाबला NDA और महागठबंधन के बीच है, लेकिन प्रशांत किशोर (PK) की ‘जन सुराज’ पार्टी के उभार ने इसे त्रिकोणीय बना दिया है । जन सुराज धीरे-धीरे तीसरे विकल्प के रूप में उभर रहा है और कई शहरी तथा शिक्षित सीटों पर मुकाबला जटिल कर सकता है ।   

गठबंधन का गणित भी बदल गया है। मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के महागठबंधन में शामिल होने से मल्लाह वोट बैंक में बड़ी हलचल मची है । यह हलचल उन कई सीटों पर निर्णायक साबित हो सकती है, जहाँ पिछली बार जीत-हार का अंतर बहुत मामूली था । दूसरी ओर, महागठबंधन को आंतरिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है; गौड़ाबौराम सहित कुछ सीटों पर सीट बंटवारे को लेकर अंतिम समय तक उलझन और सहयोगी दलों के बीच खींचतान जारी रही ।   

RJD के राजकुमार: तेजस्वी और तेज प्रताप की सीटों का विश्लेषण

पहले चरण में लालू यादव के दोनों बेटों—तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव—की किस्मत दांव पर है, जिससे इन सीटों का महत्व राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गया है ।   

राघोपुर (Raghopur): तेजस्वी यादव के नेतृत्व की निर्णायक जंग

राघोपुर विधानसभा सीट राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के परिवार का पारंपरिक गढ़ माना जाता है । यह सीट तेजस्वी यादव के लिए व्यक्तिगत जीत से कहीं बढ़कर, महागठबंधन के भावी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में अपनी साख और नेतृत्व को स्थापित करने की निर्णायक लड़ाई है।   

तेजस्वी यादव का सीधा और भावनात्मक मुकाबला भाजपा के सतीश कुमार से है । यह प्रतिद्वंद्विता ऐतिहासिक है, क्योंकि सतीश कुमार ने ही 2010 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की पत्नी और तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को इस सीट पर पराजित किया था । 2020 में, तेजस्वी ने सतीश कुमार को 38,174 वोटों के बड़े अंतर से हराकर शानदार जीत दर्ज की थी । इस बार, NDA ने इस सीट को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यदि तेजस्वी यादव की जीत का अंतर 2020 की तुलना में कम होता है, तो विपक्ष इसे उनके जनाधार में कमी के रूप में पेश करेगा, भले ही वे सीट जीत जाएं। इस सीट पर यादव वोटों का ध्रुवीकरण RJD के पक्ष में होता है, लेकिन गैर-यादव ओबीसी और अगड़े वोटों का गोलबंद होना मुकाबले को हमेशा कड़ा बना देता है।   

महुआ (Mahua): तेज प्रताप यादव परिवार बनाम जनाधार की कसौटी

महुआ सीट पर 2015 में लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने जीत हासिल की थी। हालांकि, 2020 में RJD ने यहां से मुकेश कुमार रौशन को टिकट दिया, जो विजयी हुए थे । इस चुनाव में तेज प्रताप यादव ‘पारिवारिक उपेक्षा’ का भावनात्मक कार्ड खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं ।   

महुआ सीट का चुनावी समीकरण काफी जटिल है। इस सीट पर अनुसूचित जाति (SC) के लगभग 21% और मुस्लिम मतदाताओं की लगभग 15% आबादी है, साथ ही यादव मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं । तेज प्रताप यादव की निजी महत्वाकांक्षाएं और उनका संभावित बागी रुख, महागठबंधन के लिए एक आंतरिक खतरे के रूप में उभरता है। यदि तेज प्रताप RJD के आधिकारिक उम्मीदवार (या महागठबंधन के सहयोगी) के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं, तो यह सीधे तौर पर RJD के कोर मुस्लिम-यादव (M-Y) वोट बैंक को विभाजित कर सकता है । यह तनाव RJD के वोट ट्रांसफर तंत्र की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है और NDA या जन सुराज जैसे तीसरे पक्ष को कम अंतर से जीत हासिल करने का मौका दे सकता है ।   

विधानसभा सीटनेतृत्वकर्ताप्रमुख प्रतिद्वंद्वी2020 जीत का अंतर2025 में प्रमुख चुनौती
राघोपुरतेजस्वी यादव (RJD)सतीश कुमार (BJP)38,174 मुख्यमंत्री उम्मीदवार की साख और जीत का मार्जिन बनाए रखना
महुआ(RJD/तेज प्रताप)मुकेश कुमार रौशन (RJD) 2020 विजेता13,770 (लगभग) पारिवारिक विवाद, M-Y वोट विभाजन का खतरा

बाहुबलियों का गढ़ : मोकामा और भूमिहार वोटों की गोलबंदी

मोकामा (Mokama): JDU से अनंत सिंह की वापसी और सियासी ध्रुवीकरण

मोकामा सीट ‘छोटे सरकार’ के नाम से चर्चित बाहुबली अनंत सिंह का प्रभाव क्षेत्र रही है। अनंत सिंह 2005 से लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । 2020 में उन्होंने RJD के टिकट पर जीत हासिल की, और 2022 के उपचुनाव में उनकी सजा के बाद उनकी पत्नी नीलम देवी ने RJD के टिकट पर जीत दर्ज की थी ।   

इस बार स्थिति बदल गई है; अनंत सिंह अब JDU के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं । यह सीट अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति का केंद्र बन गई है। मोकामा और आस-पास की सीटों पर भूमिहार (अगड़ा) वोटर्स अच्छी संख्या में हैं, और अनंत सिंह को भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत वोटों का समर्थन मिलने की उम्मीद है । RJD इस बार भी ओबीसी और दलित वोटों को एकजुट करने की कोशिश करेगी, जो अनंत सिंह की पारंपरिक राजनीति के विरोध में है ।   

यह सीट NDA के ‘जंगलराज’ के भावनात्मक नैरेटिव में एक विरोधाभास पैदा करती है। भाजपा और उसके सहयोगी लगातार RJD पर ‘जंगलराज’ के आरोप लगा रहे हैं । ऐसे में, JDU द्वारा अनंत सिंह (जो बिहार में बाहुबल की राजनीति का प्रतीक माने जाते हैं) को टिकट दिया जाना, NDA की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है। महागठबंधन इसे चुनावी मंच पर भुनाने की कोशिश करेगा, जिससे गैर-भूमिहार ओबीसी और दलित वोटों का महागठबंधन के पक्ष में मजबूत ध्रुवीकरण हो सकता है, जो मोकामा और आस-पास की लखीसराय जैसी सीटों के चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेगा ।   

NDA मंत्रियों का शक्ति परीक्षण: किसकी साख दांव पर?

पहले चरण में NDA के चार प्रमुख मंत्री (विजय चौधरी, संजय सरावगी, जीवेश मिश्रा, और मदन सहनी) मैदान में हैं । यह चरण सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के प्रदर्शन पर जनता का जनमत संग्रह माना जा रहा है।   

सरायरंजन (Sarairanjan) : मंत्री विजय चौधरी और बेरोजगारी का मुद्दा

JDU के कद्दावर नेता और जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी सरायरंजन सीट से उम्मीदवार हैं । मंत्री चौधरी ने इस क्षेत्र में सड़क, बिजली और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं पर काम किया है, जो क्षेत्र में प्रवेश करते ही महसूस होता है । हालांकि, यह एक कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहाँ उद्योगों और रोजगार के अवसरों की भारी कमी है, जिसके कारण बेरोजगारी और पलायन की समस्या बनी हुई है। RJD ने उनके खिलाफ अरविंद साहनी को टिकट दिया है ।   

मंत्री चौधरी को स्थानीय विरोधी लहर (एंटी-इन्कंबेंसी) के साथ-साथ बदले हुए जातिगत समीकरणों की भी चुनौती झेलनी पड़ रही है। मुकेश सहनी के महागठबंधन में आने से मल्लाह वोट बैंक में जो हलचल हुई है, वह सीधे तौर पर विजय चौधरी जैसे JDU नेताओं के लिए खतरा है, क्योंकि यह वोटबैंक पारंपरिक रूप से JDU के साथ जुड़ा रहा है ।   

दरभंगा की हॉट सीटें: BJP/JDU के गढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला

दरभंगा प्रमंडल NDA का मजबूत गढ़ रहा है, जहाँ 2020 में गठबंधन ने 10 में से 9 सीटें जीती थीं । इस क्षेत्र की चार सीटें विशेष रूप से हाई-प्रोफाइल हैं:   

  1. दरभंगा शहरी (Darbhanga Urban): संजय सरावगी बनाम जन सुराज का शहरी दखल मंत्री संजय सरावगी (BJP) इस सीट से पांचवी बार जीत दर्ज करने की कोशिश में हैं । इस बार उनके लिए मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। उनके सामने जन सुराज के आर.के. मिश्रा और वीआईपी के उमेश साहनी हैं । जन सुराज की एंट्री से चुनावी गणित जटिल हो गया है। प्रशांत किशोर की पार्टी शिक्षित और शहरी मतदाताओं के बीच एक गैर-पारंपरिक विकल्प तलाश रही है। आर.के. मिश्रा भाजपा के पारंपरिक शहरी सवर्ण वोटों में सेंध लगा सकते हैं, जबकि उमेश साहनी मल्लाह वोटों को विभाजित करेंगे, जिससे मंत्री सरावगी के जीत के मार्जिन पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।   
  2. जाले (Jale): जीवेश मिश्रा—छात्र राजनीति की नई टक्कर नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा (BJP) इस सीट से उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के ललित नारायण मिश्र के पोते ऋषि मिश्रा से है । 2020 में भी यहाँ NDA और महागठबंधन दोनों के उम्मीदवार छात्र राजनीति की उपज थे । यह युवा नेताओं के बीच प्रतिष्ठा का कड़ा मुकाबला है।   
  3. बहादुरपुर (Bahadurpur): मदन सहनी बनाम लालू के वफादार मंत्री मदन सहनी (JDU) के सामने RJD ने लालू यादव के करीबी माने जाने वाले भोला यादव को उतारा है । यह सीट मल्लाह (सहनी) और यादव वोटों के बीच सीधे टकराव का केंद्र बन गई है। महागठबंधन में शुरुआती दौर में यहां उम्मीदवार को लेकर भ्रम था (RJD और माकपा दोनों के दावे से) , जिसने स्थानीय कार्यकर्ताओं में मतभेद पैदा किए, जिसका फायदा JDU उठाने की कोशिश करेगी।   
  4. अलीनगर (Alinagar) यह सीट लोक गायिका मैथिली ठाकुर की संभावित उम्मीदवारी से चर्चा में आई है । उनकी उम्मीदवारी जन सुराज के टिकट पर हो सकती है ।   

जमीन के मुद्दे: बेरोजगारी, पलायन और जातिगत समीकरण

मुख्य चुनावी मुद्दे: जंगलराज बनाम गुंडाराज का भावनात्मक दांव

इस चुनावी प्रचार में राष्ट्रीय सुरक्षा और भावनात्मक नैरेटिव हावी रहे हैं। NDA ने RJD शासन को ‘जंगलराज’ बताकर घेरा है, जबकि महागठबंधन ने सत्ता पक्ष पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए ‘गुंडाराज’ का मुद्दा उठाया ।   

इसके बावजूद, जनता की मुख्य चिंताएं जमीनी स्तर पर बेरोजगारी, पलायन  और स्थानीय आपदाएं हैं। उदाहरण के लिए, कटिहार जिले की बरारी विधानसभा में हर साल आने वाली गंगा-कोसी की बाढ़, कटाव और शिक्षा का अभाव प्रमुख स्थानीय मुद्दे हैं । बिहार की जनता बेरोजगारी और विकास जैसे मुद्दों पर बदलाव चाहती है, भले ही जाति-धर्म के पुराने समीकरण अब भी हावी हों ।   

वोटों का ट्रांसफर और महिला मतदाताओं का रुझान

बिहार चुनाव में कई सीटें बहुत कम वोटों के अंतर से तय होती हैं—2020 में हिलसा सीट मात्र 12 वोटों के अंतर से जीती गई थी । इसलिए, गठबंधन के भीतर वोटों का सफल ट्रांसफर निर्णायक साबित होता है। भाजपा, राजद और भाकपा-माले अपने सहयोगी दलों के वोट पाने में अपेक्षाकृत सफल रहे हैं ।   

महिला मतदाताओं का रुझान एक महत्वपूर्ण कारक बना हुआ है। मुकेश सहनी के महागठबंधन में आने के बावजूद, महिला मतदाताओं का झुकाव अब भी राजग की ओर बताया जाता है , जिसका श्रेय नीतीश कुमार की महिला सशक्तिकरण की योजनाओं को दिया जाता है ।   

चूँकि जीत का अंतर मामूली होता है, प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’  या चिराग पासवान के उम्मीदवारों जैसे छोटे दलों की थोड़ी सी वोट कटौती भी हार-जीत का फैसला कर सकती है । छोटे दलों की यह अति-महत्वपूर्ण भूमिका पारंपरिक गठबंधनों को तोड़ने और हाई-प्रोफाइल सीटों पर उलटफेर की उच्च संभावना पैदा करती है।   

पहले चरण का परिणाम क्या संकेत देगा?

पहला चरण एक उच्च दांव वाला खेल है जो NDA के मंत्रियों की साख और महागठबंधन के नेतृत्व की मजबूती को तय करेगा। इस चरण में NDA के दरभंगा और पटना जैसे पारंपरिक गढ़ों में सेंध लगाने की महागठबंधन की कोशिश सफल होती है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ‘जंगलराज’ का भावनात्मक नैरेटिव बेरोजगारी और स्थानीय एंटी-इंकम्बेंसी के सामने कितना मजबूत ठहरता है ।   

मोकामा में बाहुबली अनंत सिंह को JDU का टिकट मिलना एक बड़ा गेमचेंजर है । यह कदम NDA के विरोधी नैरेटिव को कमजोर करता है लेकिन साथ ही, अगड़े वोटों को निर्णायक रूप से गठबंधन की ओर ध्रुवीकृत भी करता है। वहीं, प्रशांत किशोर का शहरी सीटों पर दखल JDU/BJP के पारंपरिक वोटों को विभाजित कर सकता है। पहले चरण के परिणाम बहुत कम अंतर से तय होंगे, और छोटे दलों का प्रदर्शन चुनावी भविष्य को निर्णायक रूप से प्रभावित करेगा।   

विधानसभा सीट2020 विजेता (पार्टी)जीत का अंतर (Votes)प्रमुख जातिगत/सियासी फैक्टर2025 में मुकाबला
राघोपुरतेजस्वी यादव (RJD)38,174 यादव बहुल, सीएम चेहरातेजस्वी बनाम NDA की साख की लड़ाई
मोकामा (उपचुनाव 2022)नीलम देवी (RJD)(उपचुनाव में जीतीं) भूमिहार (अनंत सिंह प्रभाव), अगड़ा बनाम पिछड़ाबाहुबली की JDU से वापसी
सरायरंजनविजय चौधरी (JDU)(कड़ी टक्कर) कुर्मी/कोइरी, मल्लाह (सहनी प्रभाव)मंत्री के विकास कार्यों और बेरोजगारी की समीक्षा
दरभंगा शहरीसंजय सरावगी (BJP)(स्पष्ट बढ़त) शहरी, अगड़े मतदाताJan Suraaj की एंट्री से त्रिकोणीय चुनौती
जालेजीवेश मिश्रा (BJP)(तंग मुकाबला) छात्र राजनीति, अगड़े बनाम अगड़ेमंत्री की साख दांव पर

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