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बिहार के 10 सबसे खतरनाक गैंगस्टर

बिहार की धरती पर अपराध और राजनीति का गहरा रिश्ता रहा है। यहां के कुछ गैंगस्टर ऐसे रहे जिन्होंने पूरे इलाके को दहशत में रखा। आइए जानते हैं बिहार के उन 10 खूंखार अपराधियों के बारे में जिनके नाम सुनकर आज भी लोग कांप जाते हैं।

बिहार के डॉन

AI Image

1. मोहम्मद शहाबुद्दीन – सिवान का सुल्तान

सिवान के मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम बिहार में आतंक का पर्याय बन गया था। लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी से जुड़े शहाबुद्दीन ने सिवान को अपनी जागीर बना लिया था। 1996 में पहली बार लोकसभा सांसद बने शहाबुद्दीन के खिलाफ हत्या, अपहरण और धमकी के दर्जनों मामले दर्ज थे। उनका खौफ इतना था कि पुलिस भी उनसे डरती थी। शहाबुद्दीन पुलिस अधिकारियों को पीटते थे और गोली भी चलाते थे। सिवान में उन्होंने समानांतर सरकार चला रखी थी। लोग अपनी समस्याओं के साथ उनके पास आते और वे फैसला सुनाते थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में जेल से ही चुनाव लड़े और अस्पताल में “दरबार” लगाते रहे। सांसद रहते हुए भी वे जेल में बंद रहे। 2018 में दिल्ली के तिहाड़ जेल में उनकी मौत हो गई।

2. अनंत सिंह – मोकामा के छोटे सरकार

पटना के मोकामा से ताल्लुक रखने वाले अनंत कुमार सिंह, जिन्हें “छोटे सरकार” के नाम से जाना जाता है, बिहार के सबसे ताकतवर बाहुबलियों में से एक हैं। मोकामा में उनका इतना दबदबा है कि वहां सिर्फ उनकी ही चलती है। अनंत सिंह के खिलाफ 28 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें हत्या, अपहरण, हमला और हथियारों का अवैध इस्तेमाल शामिल है। उनकी संपत्ति करीब 38 करोड़ रुपये है। 2019 में उनके घर से एके-47 राइफल, 22 कारतूस और दो बम बरामद हुए थे। अनंत सिंह जेल भी जा चुके हैं और पिछले 20 सालों से मोकामा की राजनीति पर उनका कब्जा है। वे कभी जदयू से तो कभी आरजेडी से चुनाव लड़ते रहे हैं। 2025 के बिहार चुनाव से ठीक पहले उन्हें हत्या के आरोप में फिर से गिरफ्तार किया गया।

3. मुन्ना शुक्ला – जेल से सत्ता चलाने वाला डॉन

विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला का नाम बिहार के सबसे खतरनाक गैंगस्टरों में शुमार है। उनके बड़े भाई चोटन शुक्ला और भुटकुन शुक्ला भी गैंगस्टर थे। 1994 में चोटन की हत्या हुई और 1997 में भुटकुन को उनके अंगरक्षक ने ही मार दिया। इसके बाद मुन्ना शुक्ला ने बदला लेने का फैसला किया। 1998 में आरजेडी के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की अस्पताल में दिनदहाड़े हत्या करवा दी गई, जिसमें मुन्ना शुक्ला आरोपी बने। 2000 में जेल में रहते हुए भी वे लालगंज सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते और विधायक बने। जेल से ही उन्होंने अपना नेटवर्क चलाया। सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में बृज बिहारी हत्याकांड में उन्हें दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा दी। आज भी वे जेल में बंद हैं।​

4. सूरजभान सिंह – बेगूसराय का सूरज

पटना के मोकामा में जन्मे सूरजभान सिंह का अपराध जगत में राज रहा। 1980 के दशक में छोटे-मोटे अपराधों से शुरुआत करने वाले सूरजभान 1990 के दशक में बड़े गैंगस्टर बन गए। रेलवे ठेके और कोयले के कारोबार पर उनका वर्चस्व था। बेगूसराय के अशोक सम्राट से उनकी खूनी लड़ाई चली। 1992 में रामी सिंह की हत्या में सूरजभान आरोपी बने और निचली अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 1998 में बृज बिहारी प्रसाद की हत्या में भी उनका नाम आया लेकिन हाई कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में उन्हें बरी कर दिया। सूरजभान 1990 में पहली बार विधायक बने और बाद में सांसद भी रहे। आज भी बेगूसराय की राजनीति में उनका और उनके परिवार का दबदबा है।​​

5. अशोक महतो – नवादा का सम्राट

नवादा जिले का अशोक महतो गैंग बिहार का सबसे खूंखार गिरोह रहा। अशोक महतो और उनके साथी पिंटू महतो ने 1990 के दशक से लेकर 2006 तक नवादा, शेखपुरा और नालंदा जिलों में खूब खून-खराबा किया। कोएरी जाति से ताल्लुक रखने वाले महतो का गिरोह भूमिहार जाति के अखिलेश सिंह गैंग से पत्थर तोड़ने और रेत खनन के कारोबार को लेकर भिड़ गया। 1998 से 2006 के बीच इस दुश्मनी में 200 से ज्यादा लोग मारे गए। 2005 में अशोक महतो गैंग ने कांग्रेस सांसद राजो सिंह की हत्या कर दी। अशोक महतो 2002 में नवादा जेल से भाग निकले थे। पिंटू महतो को 2006 में आईपीएस अमित लोढ़ा ने देवघर से गिरफ्तार किया था। नेटफ्लिक्स की सीरीज “खाकी द बिहार चैप्टर” इसी गैंग पर आधारित है। अशोक महतो 17 साल जेल में रहने के बाद बाहर आए और 2024 में उन्होंने शादी की।

6. अखिलेश सिंह – झारखंड-बिहार का आतंक

जमशेदपुर के अखिलेश सिंह बिहार और झारखंड के सबसे खतरनाक गैंगस्टरों में से एक रहे। एक पुलिसकर्मी के बेटे अखिलेश ने ट्रांसपोर्ट का कारोबार शुरू किया लेकिन जल्द ही अपराध की दुनिया में उतर गए। उनके खिलाफ 56 से ज्यादा मामले दर्ज हैं जिनमें 10 हत्याएं भी शामिल हैं। 2002 में उन्होंने जेलर उमा शंकर पांडेय की हत्या की और आजीवन कारावास की सजा मिली। लेकिन पैरोल पर बाहर आकर वे फरार हो गए। अखिलेश सिंह का अशोक महतो गैंग से खूनी संघर्ष चला जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। उन्होंने रियल एस्टेट में भारी निवेश किया और उनकी संपत्ति करीब 500 करोड़ रुपये बताई जाती है। दिल्ली, नोएडा, देहरादून और जबलपुर में उनकी प्रॉपर्टी है। 2017 में गुरुग्राम से पुलिस मुठभेड़ में उन्हें गिरफ्तार किया गया।

7. कामदेव सिंह – बिहार का पाब्लो एस्कोबार

बेगूसराय के कामदेव सिंह को “बिहार का पाब्लो एस्कोबार” और स्थानीय लोग “सम्राट” तथा “रोबिन हुड” कहते थे। 1930 में जन्मे कामदेव सिंह ने 1950 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखा। भूमिहार परिवार से ताल्लुक रखने वाले कामदेव ने डकैती, तस्करी और राजनीतिक हिंसा से अपना साम्राज्य खड़ा किया। वे कम्युनिस्टों के खिलाफ थे और कांग्रेसी नेताओं के लिए बूथ कैप्चरिंग करते थे। 1957 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 34 पोलिंग बूथ कब्जा किए। नेपाल से कोलकाता और मुंबई तक उनका स्मगलिंग नेटवर्क फैला था। वे गुंडों की पूरी फौज रखते थे और गरीबों की शादियां करवाते थे। 1979 तक उनके सिर पर 10,000 रुपये का इनाम था। 15 मई 1980 को उनकी हत्या कर दी गई।

8. रीतलाल यादव – दानापुर का दबंग

दानापुर के रीतलाल यादव बिहार के बाहुबली विधायकों में से एक हैं। 1990 के दशक में उन्होंने जमीन के कारोबार से शुरुआत की और फिर रेलवे ठेकों में हाथ आजमाया। पटना से बनारस और हाजीपुर से समस्तीपुर तक रेलवे के ज्यादातर टेंडर रीतलाल के नाम होने लगे। उन पर 30 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें हत्या, रंगदारी, जबरन वसूली और जमीन पर अवैध कब्जा शामिल है। दानापुर में बिल्डरों को उनके दुकान से ही सामान खरीदना पड़ता था। झारखंड से आने वाले ट्रकों से उनके गुर्गे अवैध रूप से लाखों रुपये वसूलते थे। 2025 में बिल्डर से रंगदारी मांगने के मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया और वर्तमान में वे जेल में बंद हैं। वे आरजेडी से विधायक रह चुके हैं।

9. धूमल सिंह – सारण का मोस्ट वॉन्टेड

मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह बिहार के उन बाहुबलियों में से हैं जो अपराध की दुनिया से निकलकर राजनीति में सफल हुए। सारण के बनियापुर और एकमा से तीन बार विधायक रह चुके धूमल सिंह के खिलाफ 174 आपराधिक मामले दर्ज थे। उन पर बिहार के अलावा दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र में भी मामले दर्ज हैं। लोहे के कारोबार और स्क्रैप के ठेकों पर उनका वर्चस्व था। 2004 में बोकारो में लोहे के व्यापारी अशोक चौधरी की हत्या में धूमल सिंह आरोपी बने। हत्या, अपहरण, रंगदारी और जबरन वसूली के आरोपों के बाद भी वे जदयू से विधायक बने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं। 2000 में वे पहली बार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विधायक बने। 2025 के चुनाव में भी वे जदयू के उम्मीदवार हैं।

10. सुनील पांडे – डॉक्टर डॉन

नरेंद्र कुमार पांडे, जिन्हें सुनील पांडे के नाम से जाना जाता है, “डॉक्टर डॉन” के नाम से मशहूर हुए। रोहतास के सुनील पांडे ने भगवान महावीर के अहिंसा के दर्शन पर पीएचडी की थी, लेकिन उनकी पहचान एक गैंगस्टर की रही। 2003 में पटना के न्यूरोसर्जन रमेश चंद्रा के अपहरण में उनका नाम आया। 2012 में रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में भी वे आरोपी बने। रेत ठेकेदार के बेटे सुनील पांडे के खिलाफ 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और लूट शामिल है। उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और 2000 में पीरो से समता पार्टी के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद 2005 और 2010 में भी वे विधायक रहे। उनका भाई हुलास पांडे भी विधायक रहा है। शाहाबाद क्षेत्र पर उनका दबदबा रहा। 2022 में गायिका सपना चौधरी के स्टेज शो के दौरान उन्होंने गोलीबारी की थी।

बिहार में इन गैंगस्टरों ने 1980 से लेकर अब तक अपराध और राजनीति का खेल खेला। कुछ जेल में बंद हैं, कुछ की मौत हो चुकी है और कुछ आज भी सक्रिय राजनीति में हैं। इन सभी ने अपने दौर में बिहार को दहशत में रखा और अपराध को राजनीति से जोड़कर एक अलग ही परंपरा बनाई।

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