
जब हम बिहार में बड़े बिज़नेस लगाने की बात करते हैं, तो मुजफ्फरपुर के Chandan Raj का मामला हमें सच्चाई दिखाता है। उनकी कंपनी, सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर, की कहानी से पता चलता है कि सरकार के बड़े वादों (जैसे कि नई औद्योगिक नीति 2025 और रिकॉर्ड ₹1.81 लाख करोड़ के निवेश समझौते ) और ज़मीन पर काम करने की हकीकत में कितना अंतर है।
Chandan Raj विदेश में सैमसंग और इंटेल जैसी कंपनियों में काम करके लौटे थे। उनका सपना था कि अपनी जन्मभूमि पर सेमीकंडक्टर प्लांट लगाकर यहाँ के युवाओं को रोज़गार देंगे । लेकिन जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि बिहार में प्लांट लगाना उनके जीवन का “सबसे बुरा निर्णय” था , तो साफ़ हो गया कि सिस्टम में कहीं गहरी गड़बड़ है, जिसकी वजह से राज्य को उन्होंने “निराशा की भूमि” कहा ।
इसकी सबसे बड़ी वजह है बिहार का कम क्रेडिट-डिपॉजिट (CDR) अनुपात, जो मार्च 2025 तक सिर्फ 56.67% है । इसका सीधा और सरल मतलब यह है कि बिहार का पैसा बिहार में ही इस्तेमाल नहीं हो रहा है, बल्कि दूसरे राज्यों में चला जाता है। अनुमान है कि इस वजह से हर साल ₹2 से ₹2.5 लाख करोड़ की पूंजी बिहार से बाहर निकल जाती है । यह पूंजी का बहिर्वाह स्थानीय छोटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) को पंगु बना देता है। बिजली जैसी बुनियादी चीज़ों में सुधार हुआ है, लेकिन लोकल प्रशासन की धीमी रफ़्तार, छोटे ज़मीन के झगड़े , और बाज़ार में पैसे की कमी—ये सब मिलकर हाई-टेक कंपनियों के लिए काम करना पहाड़ जैसा बना देते हैं।
सुरेश चिप्स की कहानी : एक बिज़नेसमैन का दर्द

इस सेक्शन में देखते हैं कि एक अंतर्राष्ट्रीय उद्यमी को आखिर इतनी निराशा क्यों हुई।
Chandan Raj मूल रूप से बिहार के ही थे। उन्होंने चीन के शंघाई में नोकिया बेल लैब्स और मलेशिया और इज़राइल में इंटेल जैसी जगहों पर इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट का काम किया था । इतना बड़ा अनुभव लेकर, दिसंबर 2020 में, उन्होंने मुजफ्फरपुर में अपनी कंपनी ‘सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर’ की नींव रखी । यह बिहार की पहली सेमीकंडक्टर कंपनी थी, जिसका मकसद यहाँ के यूथ को रोज़गार देना था ।
सेमीकंडक्टर और VLSI (वेरी-लार्ज-स्केल इंटीग्रेशन) उद्योग में क्लाइंट को डील करना होता है, जिसके लिए विश्वसनीयता और बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर ज़रूरी है । राज ने सोशल मीडिया पर अपनी निराशा ज़ाहिर की। उनकी मुख्य शिकायत थी कि उनकी कंपनी के परिसर के आसपास बुनियादी सुविधाओं का अभाव है—खासकर टूटी हुई मुख्य सड़कें और स्ट्रीट लाइटें नहीं होना । उन्होंने बताया कि इस कमी के कारण उनके कई क्लाइंट्स ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया ।
लोकल झगड़े ने रोकी राह
Chandan Raj की शिकायत के बाद, स्थानीय ज़िला प्रशासन हरकत में आया । तब सच्चाई सामने आई कि राज का ऑफिस बीआईएडीए (BIADA) के इंडस्ट्रियल पार्क में नहीं, बल्कि गाँव के एक प्राइवेट ज़मीन पर बना था । बीआईएडीए ने उन्हें पटना या मुजफ्फरपुर के इंडस्ट्रियल एरिया में जगह देने की पेशकश भी की थी, लेकिन उन्होंने अपनी बिल्डिंग से काम करना चुना था ।
उनकी शिकायत का मेन पॉइंट—ऑफिस के ठीक सामने की 100 मीटर सड़क का खराब होना —दरअसल लोकल ज़मीन के झगड़े में फंसा था। पड़ोसियों ने सड़क बनाने के लिए ज़मीन देने से मना कर दिया था, जबकि सरकार के पास फंड मौजूद था । मुजफ्फरपुर के ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) ने बाद में दखल दिया और सड़क निर्माण का काम शुरू कराने का आश्वासन दिया ।
यह मामला साबित करता है कि समस्या बड़ी प्रशासनिक नाकामी से ज़्यादा अंतिम-मील की गवर्नेंस की है। अगर ‘सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम’ जैसी नीतियाँ भी छोटे, स्थानीय भूमि विवादों को जल्दी नहीं सुलझा पातीं, तो परियोजनाएँ सामाजिक प्रतिरोध के सामने फंस जाती हैं।
कंपनी, सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर प्राइवेट लिमिटेड, आज भी सक्रिय है । वित्तीय वर्ष 2024 में कंपनी ने ₹1.54 करोड़ कमाए । लेकिन पिछले एक साल में उसकी ग्रोथ रेट -51% की भारी गिरावट दिखाती है । यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि लोकल ऑपरेशनल दिक्कतों ने बिज़नेस को गंभीर वित्तीय नुकसान पहुँचाया।
ग्रोथ तेज़, पर आमदनी कम
बिहार देश के सबसे तेज़ी से बढ़ते राज्यों में गिना जाता है। 2025–26 में राज्य की जीडीपी (GDP) वृद्धि दर 22% तक होने का अनुमान है । 2023-24 में, बिहार की जीएसडीपी 14.4% की दर से बढ़ रही थी, जो राष्ट्रीय वृद्धि दर (12%) से ज़्यादा थी 。
लेकिन यह तेज़ ग्रोथ बहुत निचले स्तर से शुरू हुई है। 2024-25 के लिए यहाँ की अनुमानित प्रति व्यक्ति आय लगभग ₹69,321 है , जो लगभग उतनी ही है, जितनी एक दशक पहले (2012-13) पूरे भारत की औसत आय थी । पड़ोसी राज्य जैसे झारखंड (₹79,396) और उत्तर प्रदेश (₹88,535) भी (2021-22 डेटा) कमाई के मामले में बिहार से आगे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश देश के सबसे गरीब राज्यों में बने हुए हैं ।
फ़ैक्टरियाँ क्यों नहीं लगतीं?
बिहार की अर्थव्यवस्था सर्विस सेक्टर (सेवा) पर ज़्यादा निर्भर है (58.6%), जबकि उद्योगों का योगदान सिर्फ 21.5% है (2023-24) । रजिस्टर्ड फ़ैक्टरियों की संख्या 2015-16 में 3,623 से घटकर 2022-23 में 3,307 हो गई है ।
यह बताता है कि राज्य की तेज़ ग्रोथ सरकारी खर्च और खपत से हो रही है, न कि बड़ी फ़ैक्टरियाँ लगाने से। निजी निवेश बहुत कम है । यही कारण है कि हाई-टेक कंपनियों के लिए लोकल सप्लाई चेन या सहायक कंपनियाँ नहीं हैं।
इस वजह से पलायन (Migration) की समस्या गंभीर बनी हुई है। हुनरमंद लोग काम की तलाश में बाहर जा रहे हैं , जिससे Chandan Raj जैसे उद्यमियों को लोकल स्तर पर योग्य कर्मचारी नहीं मिल पाते।
सीडी अनुपात का मतलब: पैसे का बाहर जाना
किसी भी उद्योग के लिए सबसे ज़रूरी है कि उसे आसानी से बैंक से लोन (पूंजी) मिल जाए। बिहार का क्रेडिट-डिपॉजिट (CD) अनुपात इस कमी को साफ़ दिखाता है। मार्च 2025 तक, यह अनुपात सिर्फ 56.67% है , जबकि देश का औसत 75%-80% है । बैंक और बाज़ार के लिए 70-75% का अनुपात सही माना जाता है । महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और दिल्ली जैसे औद्योगिक राज्यों में सीडी रेशियो 100% से ऊपर है ।
बिहार का यह कम अनुपात बताता है कि बिहार के बैंकों में जमा हर ₹100 में से, सिर्फ़ ₹57 ही राज्य के अंदर लोन के रूप में दिए जा रहे हैं । बाकी पैसा दूसरे राज्यों में चला जाता है, जहाँ बैंकों को लोन देने के अच्छे मौके मिलते हैं । अनुमान है कि इस वजह से बिहार से हर साल ₹2 से ₹2.5 लाख करोड़ की पूंजी बाहर चली जाती है ।
छोटे उद्योगों पर असर (MSMEs)
जब लोकल लोन ही नहीं मिलता, तो छोटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) पर सीधा असर पड़ता है। उन्हें काम शुरू करने या बढ़ाने के लिए पैसा नहीं मिल पाता । यह पैसे की कमी निवेश और नई नौकरियाँ पैदा करने में रुकावट डालती है।
रिसर्च बताती है कि बिहार में औद्योगिक क्षेत्र को लोन देने का आर्थिक विकास पर “लगभग कोई असर नहीं” होता । इसका मतलब है कि या तो बैंक जोखिम लेने से बचते हैं, या फिर बिहार में औद्योगिक लोन प्रस्तावों की गुणवत्ता खराब होती है।
सरकार बिहार स्टार्टअप नीति के तहत ₹10 लाख तक का ब्याज-मुक्त लोन देकर मदद कर रही है । लेकिन ये पहलें बड़े पूंजी बहिर्वाह के सामने बहुत छोटी हैं। औद्योगिक नीति एक तरफ फ़ैक्टरी लगाने के लिए ज़मीन पर सब्सिडी देती है , लेकिन दूसरी तरफ कम सीडीआर की वजह से काम चलाने के लिए (वर्किंग कैपिटल) लोन नहीं मिलता।
इंफ्रास्ट्रक्चर: अंतिम मील की चुनौती
Chandan Raj के मामले में, एक छोटी सी सड़क की खराबी ने सारा काम बिगाड़ दिया। यह बताता है कि सरकार की बड़ी कोशिशों (मैक्रो) और ज़मीनी हकीकत (माइक्रो) में कितना अंतर है।
बिजली और सुविधाएँ: बड़ी जीत
बिजली के क्षेत्र में बिहार ने बहुत अच्छा काम किया है। 2018 तक 100% घरों में बिजली पहुंचा दी गई थी । शहरों में लगभग 24 घंटे और गाँवों में औसतन लगभग 22 घंटे बिजली रहती है । ये उपलब्धियां दिखाती हैं कि उद्योग के लिए बिजली अब बड़ी समस्या नहीं रही।
सामान पहुँचाना (लॉजिस्टिक्स) और रास्ते
सामान को लाने-ले जाने के मामले में भी बिहार ने सुधार किया है। LEADS 2024 की रिपोर्ट में बिहार ‘आकांक्षी’ श्रेणी से ‘तेजी से बढ़ने वाली’ श्रेणी में आ गया है । राज्य ने बिहार लॉजिस्टिक्स नीति 2023 भी लागू की है।
लेकिन Chandan Raj का मामला बताता है कि नेशनल हाईवे सुधरने के बावजूद, लोकल रोड (अंतिम-मील कनेक्टिविटी) बहुत खराब है । लॉजिस्टिक्स नीति में ‘रास्ते की रुकावटें दूर करने’ की बात है, पर ज़मीन पर यह लागू नहीं हो रहा।
इंडस्ट्रियल ज़मीन की नाकामी
सरकार उद्योगपतियों को सस्ती ज़मीन और बड़ी परियोजनाओं के लिए मुफ़्त ज़मीन भी दे रही है (₹1000 करोड़ से ज़्यादा निवेश पर 25 एकड़ तक) । राज्य में 75 इंडस्ट्रियल एरिया हैं ।
लेकिन Chandan Raj ने सरकारी जगह छोड़कर प्राइवेट ज़मीन चुनी, जो दर्शाता है कि शायद मौजूदा इंडस्ट्रियल पार्क हाई-टेक कंपनियों की ज़रूरतों (जैसे हाई-स्पीड इंटरनेट) को पूरा नहीं कर पाए।
सिस्टम और प्रशासन: काम करने में मुश्किल
यह सेक्शन बताता है कि बिज़नेस को आसान बनाने की कोशिशें ज़मीन पर क्यों फेल हो जाती हैं।
सरकार के वादे और निवेश की मांग
बिहार सरकार लगातार इंडस्ट्रियल ग्रोथ को बढ़ाने के लिए नीतियां बना रही है । इसमें सब्सिडी और छूट शामिल हैं ।
‘बिहार बिजनेस कनेक्ट-2024’ में 423 कंपनियों ने रिकॉर्ड ₹1.81 लाख करोड़ के निवेश के समझौते (MOUs) पर दस्तखत किए । उद्योग मंत्री ने दावा किया कि बिहार के बारे में ख़राब सोचने की पुरानी धारणा अब ख़त्म हो गई है ।
सुरक्षा और कानून व्यवस्था का डर
निवेशकों के लिए सुरक्षा और कानून व्यवस्था आज भी एक चिंता का विषय है। भले ही पहले कानून व्यवस्था में सुधार का श्रेय नीतीश कुमार को मिला था , लेकिन विपक्ष लगातार बिगड़ती स्थिति पर चिंता जताता रहा है । अपराधियों के बेखौफ घूमने और व्यापारियों के असुरक्षित महसूस करने की धारणा बनी हुई है ।
इस डर को कम करने के लिए, सरकार ने 2024 में बिहार लोक सुरक्षा विधेयक लाने की बात की है, जिसके तहत व्यापारिक जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाना ज़रूरी होगा ।
रिकॉर्ड MOU बताते हैं कि लोग बिहार में निवेश करना चाहते हैं। लेकिन फ़ैक्टरियों की घटती संख्या और चंदन राज जैसे मामले बताते हैं कि इन समझौतों को असली परियोजना में बदलने की दर बहुत कम है।
बिज़नेस को बेहतर बनाने के लिए 4 ज़रूरी काम
Chandan Raj के मामले से जो कमियाँ सामने आईं, उन्हें दूर करने के लिए ये कदम उठाने होंगे:
पैसों की कमी तुरंत दूर करना
राज्य में पैसों की कमी दूर करने के लिए, सीडी अनुपात को सुधारने का लक्ष्य (जैसे 3 साल में 70% तक पहुँचाना) तय करना होगा । बैंकों पर दबाव डालना होगा कि वे बिहार के लोकल MSMEs को ज़्यादा लोन दें। साथ ही, सरकार को अपनी तरफ़ से खास फंड बनाने चाहिए, ताकि बिज़नेस शुरू करने वाली कंपनियों को काम चलाने के लिए आसानी से पैसा मिल सके ।
इंफ्रास्ट्रक्चर में ‘अंतिम मील’ को ठीक करना
स्थानीय झगड़ों को रोकने के लिए, हमें ‘अंतिम-मील प्रोटोकॉल’ बनाना होगा। BIADA पार्कों में अच्छी सड़कें, जल निकासी, 24 घंटे बिजली और हाई-स्पीड इंटरनेट की गारंटी देनी होगी। सबसे ज़रूरी है: ज़मीन के झगड़ों के लिए एक तेज़ समाधान प्रक्रिया (LDR) लागू हो। हर इंडस्ट्रियल ज़िले में खास प्रशासनिक टीमें बनाई जाएं, जो ज़मीन के विवादों को 90 दिनों जैसी तय समय सीमा में सुलझाएं।
शासन को जवाबदेह बनाना
सिंगल विंडो सिस्टम को पूरी तरह डिजिटल बनाना होगा और हर काम की जवाबदेही तय करनी होगी । हर अप्रूवल के लिए समय सीमा तय हो (समय पर न मिलने पर अपने आप ‘अप्रूव्ड’ माना जाए)। सरकारी अधिकारियों के काम का हिसाब भी रखा जाए, जो EODB प्रक्रिया में शामिल हैं।
रणनीतिक सेक्टर चुनना और हुनरमंद लोग पैदा करना
राज्य को सिर्फ खेती-बाड़ी पर नहीं, बल्कि आईटी, सेमीकंडक्टर डिज़ाइन और लॉजिस्टिक्स हब जैसे खास इंडस्ट्रियल क्लस्टर विकसित करने चाहिए । इसके लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम और हुनरमंद लोगों की सप्लाई पर ध्यान देना होगा । शिक्षा व्यवस्था को बिज़नेस की ज़रूरत के हिसाब से बदलना होगा , ताकि पलायन कम हो और उद्योगों को योग्य कर्मचारी मिलें।














