बिहार सिर्फ महात्मा बुद्ध और महावीर की धरती नहीं है, बल्कि यह सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी की जन्मस्थली भी है। पटना शहर में 22 दिसंबर 1666 को गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था। आज पटना और आसपास के इलाकों में कई पवित्र गुरुद्वारे हैं जो उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं की याद दिलाते हैं। बिहार सरकार ने इन सभी धार्मिक स्थलों को जोड़कर “सिख सर्किट” बनाया है।
तख्त पटना साहिब – सबसे खास जगह
तख्त श्री हरमंदिर साहिब, जिसे लोग पटना साहिब कहते हैं, पूरे सिख सर्किट का दिल है। यह सिखों के पांच तखतों में से एक है – मतलब सबसे ऊंचे धार्मिक स्थानों में से एक।
पहले यह जगह सालिस राय जौरी नाम के एक अमीर सुनार का घर था, जो गुरु नानक जी का भक्त बन गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 में यहां एक भव्य इमारत बनवाई। आज जो गुरुद्वारा दिखता है, वो 1954 से 1957 के बीच बना।
इस गुरुद्वारे में गुरु गोविंद सिंह जी की निजी चीजें और पुरानी पांडुलिपियां संभालकर रखी गई हैं। यहां एक म्यूजियम भी है जहां उनके जीवन से जुड़ी चीजें देख सकते हैं।

गैं घाट गुरुद्वारा – सबसे पुराना
गुरुद्वारा गैं घाट पटना का सबसे पुराना गुरुद्वारा माना जाता है। इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है। पहले यह भगत जैताल का घर था। 1509 में गुरु नानक देव जी यहां आए थे, और फिर 1666 में गुरु तेग बहादुर जी भी यहां ठहरे।
लोग कहते हैं कि जैताल बूढ़े हो गए थे और गंगा किनारे तक नहीं जा पाते थे। तो गुरु तेग बहादुर जी ने उनके लिए गंगा को गाय (गैं) के रूप में उनके घर भेज दिया। इसलिए इस जगह का नाम “गैं घाट” पड़ा।
यहां भाई मर्दाना की रबाब और माता गुजरी की चक्की जैसी पुरानी चीजें आज भी सुरक्षित हैं।
हांडी साहिब गुरुद्वारा – खिचड़ी वाली जगह
पटना से करीब 20 किलोमीटर दूर दानापुर में यह गुरुद्वारा है। जब गुरु गोविंद सिंह जी पंजाब जा रहे थे, तो यहां रुके थे। एक बूढ़ी महिला ने उन्हें खिचड़ी की हांडी (बर्तन) खाने को दी। गुरु साहब ने आशीर्वाद दिया कि जब तक यहां खिचड़ी बनेगी और परोसी जाएगी, उनका आशीर्वाद बना रहेगा।
गुरु का बाग – चमत्कारी बगीचा
तख्त पटना साहिब से करीब 3 किलोमीटर दूर दौलपुरा में यह गुरुद्वारा है। पहले यह सूखा-उजाड़ बगीचा हुआ करता था। जब गुरु तेग बहादुर जी यहां आए, तो कहानी है कि पूरा बगीचा हरा-भरा हो गया।
यहां एक कुआं भी है। माना जाता है कि गुरु तेग बहादुर जी ने अपना कड़ा (कंगन) इस कुएं में डाल दिया था, और उसके बाद से इसका पानी चमत्कारी हो गया।
बाल लीला साहिब – बचपन की यादें
यह गुरुद्वारा मारुफगंज इलाके में है, तख्त साहिब के बिल्कुल पीछे। यहां छोटे गोविंद राय (गुरु गोविंद सिंह जी) खेला करते थे।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां एक 350 साल पुराना करौंदे का पेड़ है। लोग कहते हैं कि बचपन में गुरु जी ने दातुन करके जमीन में गाड़ दिया था, और वहीं से यह पेड़ उग आया। यहां गुरु जी की बचपन की जूतियां भी रखी हैं।
कंगन घाट – सोने की चूड़ी वाली जगह
तख्त पटना साहिब से कुछ ही दूरी पर यह घाट है। कहानी है कि नन्हे गोविंद राय ने यहां अपनी सोने की चूड़ी नदी में फेंक दी थी। यह उनका संदेश था कि सोना-चांदी जैसी चीजें ज्यादा मायने नहीं रखतीं।
कब और कैसे जाएं
समय: सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुले रहते हैं
टिकट: कोई एंट्री फीस नहीं – बिल्कुल फ्री
कैसे पहुंचें: पटना जंक्शन से ऑटो, टैक्सी या सिटी बस आसानी से मिल जाएंगी। पटना का एयरपोर्ट भी 10-12 किलोमीटर की दूरी पर है।
घूमने का बढ़िया समय: सितंबर से अप्रैल के बीच मौसम अच्छा रहता है।
जाने से पहले ध्यान रखें
सभी गुरुद्वारों में सिर ढककर जाना जरूरी है। जूते बाहर उतारने होते हैं और अंदर शांति बनाए रखनी होती है। ये सिर्फ घूमने की जगहें नहीं, बल्कि पूजा-अर्चना की पवित्र जगहें हैं।
क्यों जाएं बिहार का सिख सर्किट
बिहार का सिख सर्किट सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि इतिहास के पन्नों में झांकने का मौका है। हर गुरुद्वारे की अपनी कहानी है – कोई चमत्कार की, कोई भक्ति की, कोई त्याग की। यहां आकर लगता है कि गुरु गोविंद सिंह जी का बचपन कैसा रहा होगा, वो कैसे खेलते होंगे, और कैसे वो महान योद्धा और संत बने।
हर साल हजारों सिख श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। लेकिन यह सिर्फ सिखों के लिए नहीं – कोई भी यहां आ सकता है। यह बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है।
पटना में सिख सर्किट की यात्रा आपको शांति, आध्यात्मिकता और इतिहास का अनोखा अनुभव देगी।


















