अदाणी ग्रुप का यह प्रोजेक्ट बिहार के औद्योगिक इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा एकल निवेश (Single Largest Investment) है। ₹30,000 करोड़ की लागत से बन रहा यह प्लांट बिहार की ऊर्जा जरूरतों और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है।

क्या यह वाकई ‘एशिया का सबसे बड़ा’ है? (Fact Check)
स्थानीय मीडिया में इसे ‘एशिया का सबसे बड़ा’ बताया जा रहा है, जिसकी तुलना अक्सर झारखंड के गोड्डा पावर प्लांट (1,600 MW) से की जा रही है।
- हकीकत: 2,400 मेगावाट (MW) की क्षमता के साथ यह बिहार का सबसे बड़ा पावर प्लांट जरूर होगा और गोड्डा (Godda) प्लांट से भी बड़ा होगा।
- संदर्भ: तकनीकी रूप से, एशिया का सबसे बड़ा चालू पावर प्लांट चीन का ‘तुओकेतुओ’ (6,700 MW) है। लेकिन, ‘ग्रीनफील्ड’ (नई जमीन पर शून्य से शुरुआत) श्रेणी में और अत्याधुनिक तकनीक (Ultra-Supercritical) के मामले में, यह भारत के सबसे विशाल और आधुनिक प्रोजेक्ट्स में से एक है।
प्रोजेक्ट का खाका (Project Snapshot)
- स्थान: पीरपैंती (मिर्जाचौकी क्षेत्र), जिला भागलपुर।
- क्षमता: 2,400 मेगावाट (800 मेगावाट की 3 यूनिट्स)।
- निवेश: लगभग ₹30,000 करोड़ ($3 Billion)।
- तकनीक: अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल टेक्नोलॉजी (Ultra-supercritical)। यह तकनीक पुराने प्लांट्स के मुकाबले कम कोयले में ज्यादा बिजली बनाती है और प्रदूषण कम करती है।
- लक्ष्य: पहली यूनिट 2028 (दीवाली) तक चालू होने की उम्मीद है।
बिहार के लिए इसके मायने (Why it Matters)
यह प्रोजेक्ट सिर्फ बिजली बनाने के बारे में नहीं है, इसका असर कई स्तरों पर दिखेगा:
- आर्थिक बूस्टर (Economic Impact):
- बिहार में निजी क्षेत्र का इतना बड़ा निवेश (₹30,000 करोड़) राज्य की छवि (Brand Bihar) को बदलने का काम करेगा। यह संदेश देगा कि बिहार बड़े उद्योगों के लिए तैयार है।
- निर्माण के दौरान करीब 10,000 से 12,000 लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है।
- ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security):
- समझौते (PPA) के तहत, यहाँ बनने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा बिहार को मिलेगा।
- इससे पीक डिमांड के दौरान बिहार को केंद्रीय कोटे या महंगी बिजली खरीद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
- 24×7 बिजली: राज्य के सुदूर गांवों और कृषि फीडरों को निर्बाध बिजली देने का सपना पूरा करने में यह प्लांट रीढ़ की हड्डी बनेगा।
- सस्ती बिजली: चूंकि यह प्लांट ‘पिट-हेड’ (कोयला खदानों के करीब) जैसा है, तो कोयले की ढुलाई का खर्च कम होगा, जिससे बिहार को तुलनात्मक रूप से सस्ती दरों पर बिजली मिल सकती है।
चुनौतियां और निष्पक्ष राय (Neutral Perspective)
उत्साह के बीच कुछ जमीनी चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता:
- पर्यावरण (Environment): भागलपुर का यह क्षेत्र गंगा के करीब है। इतने बड़े प्लांट से निकलने वाली राख (Fly Ash) का प्रबंधन और पानी का उपयोग एक बड़ी चुनौती होगी। आधुनिक तकनीक का दावा है कि प्रदूषण न्यूनतम होगा, लेकिन इसका कड़ाई से पालन होना जरूरी है।
- जमीन और मुआवजा: हालांकि जमीन अधिग्रहण का बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है, लेकिन स्थानीय विस्थापितों के पुनर्वास और उचित मुआवजे को लेकर पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी है ताकि गोड्डा जैसी रस्साकशी यहाँ न हो।
पीरपैंती प्रोजेक्ट बिहार के लिए एक ‘नई उड़ान’ का रनवे तैयार कर रहा है। अगर इसे पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हुए समय पर पूरा किया गया, तो यह बिहार को ‘ऊर्जा उपभोक्ता’ से ‘ऊर्जा उत्पादक’ राज्य बनाने की दिशा में सबसे बड़ा कदम होगा।















