
ऐतिहासिक उपलब्धि और प्रामाणिकता
अप्रैल 2023 का महीना बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लेकर आया, जब यहाँ के अत्यंत सुगंधित मर्चा धान (Marcha Rice) को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication – GI) टैग प्राप्त हुआ । यह उपलब्धि 4 अप्रैल 2023 को हासिल हुई , जिसका आधिकारिक पंजीकरण जीआई रजिस्ट्री द्वारा 31 जुलाई 2023 को किया गया । यह प्रमाणन स्थानीय किसानों और निवासियों के लिए गर्व और उत्साह का कारण बना है ।
यह टैग ‘मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह’ की ओर से किए गए आवेदन का परिणाम है , जिसमें राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (RPCAU), पूसा के वैज्ञानिकों ने अपनी महत्वपूर्ण तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान की । यह कानूनी एकाधिकार ब्रांड की रक्षा करता है, यह सुनिश्चित करता है कि ‘मर्चा चावल’ नाम का उपयोग केवल अधिकृत उपयोगकर्ता ही कर सकते हैं ।
मर्चा धान बिहार का छठा कृषि उत्पाद है, जिसे यह विशिष्ट पहचान मिली है । कतरनी चावल के बाद, यह बिहार की दूसरी चावल की किस्म है जिसे यह सम्मान मिला है । जीआई टैग की अवधि आमतौर पर 10 वर्षों के लिए होती है और यह वैश्विक मंच पर इसकी गुणवत्ता और उत्पत्ति का प्रमाण है, जो उपभोक्ताओं को ‘मिलावट-मुक्त’ उत्पाद की गारंटी देता है ।
बिहार के GI-टैग प्राप्त प्रमुख कृषि उत्पाद:
- शाही लीची (मुजफ्फरपुर)
- जर्दालू आम (भागलपुर)
- कतरनी चावल/धान (भागलपुर)
- मगही पान (नवादा/गया)
- मिथिला मखाना (मिथिला क्षेत्र)
- मर्चा चावल/धान (पश्चिमी चंपारण)
मर्चा की विशिष्टता: स्वाद, सुगंध और पाक कला
मर्चा चावल की पहचान उसके नामकरण में छिपी है। इसे ‘मर्चा’ (या स्थानीय रूप से ‘मिर्चा’, ‘मर्चैया’, ‘मारीचै’) कहा जाता है क्योंकि इसका दाना हूबहू काली मिर्च (Black Pepper) के दाने के आकार और रूप जैसा दिखाई देता है । मर्चा एक गैर-बासमती, छोटे दाने वाली (short-grained) सुगंधित किस्म है । इसके दाने अंडाकार (oval), छोटे और मजबूत होते हैं।
अद्वितीय सुगंध और चूड़ा निर्माण
मर्चा चावल का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी ‘त्रिपक्षीय सुगंध’ है—जो धान के पौधे, अनाज और प्रसंस्कृत गुच्छे (चूड़ा) तीनों में मौजूद होती है । यह चावल फूला हुआ (fluffy), चिपचिपा रहित (non-sticky), और स्वाभाविक रूप से मीठा होता है, तथा कई स्रोतों के अनुसार, पके हुए मर्चा चावल की सुगंध पॉपकॉर्न जैसी होती है ।
यह किस्म विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाले, मुलायम और अत्यंत सुगंधित चावल के गुच्छे (चूड़ा या पोहा) बनाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है । मर्चा चूड़ा की उत्कृष्ट बनावट और सुगंध इसे प्रीमियम मूल्य प्राप्त करने में मदद करती है ।
सांस्कृतिक महत्व और व्यंजन
अपनी प्राकृतिक मिठास और सुगंध के कारण, मर्चा चावल बिहार की पारंपरिक थाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसकी प्राकृतिक मिठास इसे खीर और लड्डू जैसे पकवानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाती है । सुगंध और स्वाद में यह विशिष्टता इसे उच्च गुणवत्ता वाली बिरयानी के लिए भी उपयुक्त बनाती है । यह आसानी से पचने योग्य होता है , इसलिए दाल पीठा जैसे पारंपरिक व्यंजनों में भी इसका उपयोग किया जाता है ।
चंपारण की माटी का जादू : भौगोलिक रहस्य
मर्चा चावल की विशिष्टता सीधे तौर पर पश्चिम चंपारण की माटी और जलवायु से जुड़ी हुई है। स्वाद और सुगंध के लिए जिले के केवल छह प्रखंड ही सबसे उपयुक्त हैं, जिनमें मुख्य रूप से चनपटिया, मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर और लौरिया शामिल हैं ।
सुगंध का कृषि-जलवायु विज्ञान
मर्चा चावल की असाधारण सुगंध का रहस्य इस क्षेत्र की अनूठी कृषि-जलवायु परिस्थितियों में निहित है। मर्चा की सुगंध का विकास विशेष रूप से बूढ़ी-गंडक (सिकरहना) नदी के किनारे के क्षेत्रों में होता है । इस क्षेत्र की मिट्टी को हिमालयी क्षेत्र से बहकर आने वाले पानी के अपवाह से खनिजों का पोषण मिलता है, जो सुगंध के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसके अलावा, अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान पाया जाने वाला कम तापमान वाला स्थानीय सूक्ष्म वातावरण (microclimate) मर्चा में सुगंध के निर्माण को बढ़ाता है ।
पारंपरिक खेती और आर्थिक क्रांति
मर्चा धान एक स्वदेशी, मध्यम अवधि की फसल है, जो लगभग 140 से 150 दिनों में परिपक्व हो जाती है । इसकी औसत उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है । किसान गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जैविक खेती पद्धति को प्राथमिकता देते हैं । किसान मानते हैं कि रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने पर पौधे में अप्रत्याशित बढ़वार (लॉजिंग) होती है , जो उत्पादन के हिसाब से बेहतर नहीं है, और न्यूनतम उर्वरकों का उपयोग करना पसंद करते हैं । यह धान चिकनी और चिकनी बलुई मिट्टी में बेहतर ढंग से उगाई जाती है ।
बाज़ार में प्रीमियम मूल्य और विस्तार
जीआई टैग ने मर्चा चावल को आर्थिक रूप से एक बड़ी ताकत दी है। जीआई टैग मिलने से किसानों को अब मर्चा धान का बेहतर दाम मिल पाएगा , जिससे उनकी आय दुगनी होने की उम्मीद है । मर्चा चूड़ा, जिसकी मांग सबसे अधिक है, वह प्रीमियम बाज़ार मूल्य पर बेचा जा रहा है। वर्तमान में, मर्चा चूड़ा का खुदरा मूल्य ₹120 से ₹250 प्रति किलोग्राम के बीच है ।
जीआई टैग मिलने के बाद मर्चा धान की खेती में अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। जो खेती पहले अनुमानित रूप से 150-200 हेक्टेयर क्षेत्र तक सीमित थी , अब बढ़कर लगभग 2000 हेक्टेयर तक पहुँच चुकी है । यह विस्तार किसानों के बढ़ते आत्मविश्वास को दर्शाता है।
निर्यात और वैश्विक बाज़ार
मर्चा चावल की मांग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और उड़ीसा सहित कई भारतीय राज्यों में है, और अब विदेशों में भी इसकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है । किसान समूहों ने बताया है कि उन्हें विदेशों से भी फोन आ रहे हैं, खासकर अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले बिहारी डायस्पोरा से । यह वैश्विक मांग संकेत देती है कि निर्यात की अपार संभावनाएं हैं ।
सरकारी सहयोग और भविष्य की राह
मर्चा चावल की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार कई योजनाएं बना रही है। कृषि विभाग द्वारा किसानों को मर्चा धान की खेती पर प्रति एकड़ ₹1000 का अनुदान (सब्सिडी) देने की सिफारिश की गई है ।
हालांकि, किसानों के सामने सबसे बड़ी प्राथमिकता गुणवत्ता को बनाए रखते हुए उत्पादन बढ़ाना है, जिसके लिए उन्होंने मर्चा धान के उच्च गुणवत्ता वाले ‘ब्रीडर सीड’, ‘फाउंडेशन सीड’ और ‘सर्टिफाइड सीड’ की उपलब्धता सुनिश्चित करने की मांग की है । आईसीआर (ICAR) को निर्देश दिया गया है कि वह तत्काल शोध करे , ताकि ऐसी बीज किस्में विकसित की जा सकें जो पारंपरिक विशेषताओं को बनाए रखें और बेहतर उत्पादन भी दें । सरकार ने मर्चा चावल, गोविंद भोग और सोना चूर जैसी पारंपरिक, दुर्लभ किस्मों की रक्षा के लिए एक व्यापक संरक्षण योजना शुरू करने का भी निर्णय लिया है ।
पश्चिमी चंपारण के मर्चा चावल को जीआई टैग मिलना बिहार की सदियों पुरानी कृषि विरासत और स्थानीय किसान विज्ञान की जीत है। यह टैग केवल एक लेबल नहीं, बल्कि एक आर्थिक शक्ति है जिसने इस काली मिर्च जैसे दाने वाले धान को पॉपकॉर्न जैसी अद्भुत सुगंध दी है । सरकारी प्रोत्साहन और किसानों के सहयोग से, मर्चा चावल—बिहार के गौरव की वह सुगंध है—जो अब विश्व भर के कोनों में फैलने के लिए तैयार है ।














