गया जिले में एक छोटा सा गाँव है पटवा टोली – ये गाँव आजकल पूरे भारत में “IIT का गाँव” या “IIT फैक्ट्री” के नाम से फेमस हो गया है। और सुनो, ये नाम बिल्कुल सही है! यहाँ की हर घर में कम से कम एक इंजीनियर जरूर होता है। सोचो जरा, एक छोटे से गाँव में इतने सारे IITians! यह बात ही कितनी अद्भुत है।

बुनकरों का गाँव कैसे बना इंजीनियरों का अड्डा?
पहले तो पटवा टोली की पहचान बिल्कुल अलग थी। यह “बिहार का मैनचेस्टर” के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहाँ की ज्यादातर आबादी बुनकरी का काम करती थी। घरों से चरकी की खटखट की आवाज निकलती रहती थी – यही तो पहचान थी पटवा टोली की। लेकिन आज वही खटखट-खटखट करते बुनकरों के बेटे-बेटियों ने IIT जैसे संस्थानों में अपनी जगह बना ली है।
यह सब शुरू हुआ एक लड़के के सपने से
साल 1991 में पटवा टोली का एक लड़का जितेंद्र पटवा था। वह IIT में अंदर आ गया – और बस यहीं से सब कुछ बदल गया। जब गाँव के लोगों को पता चला कि हाँ, हमारे गाँव से भी कोई IIT में जा सकता है, तो सभी के सपनों के पँख खुल गए।
उसके बाद यह सिलसिला शुरू हो गया। 1998 में तीन छात्र IIT में गए। 1999 में सात। और फिर तो यह धारा बहती ही चली गई। आज पटवा टोली से करीब 500 से ज्यादा छात्र IIT में दाखिल हो चुके हैं – और यह संख्या लगातार बढ़ रही है! 2014 से लेकर अब तक हर साल दर्जनों छात्र IIT में जाते हैं।
“वृक्ष” – वह संगठन जिसने यह चमत्कार किया
लेकिन सबसे अहम बात यह है कि गरीब बुनकरों के बच्चों को यह सफलता कैसे मिली? इसका जवाब है एक संगठन – “वृक्ष” (Vriksh Veda Chain)।
साल 2013 से यह संगठन काम कर रहा है। इसकी खासियत? पूरी तरह निःशुल्क कोचिंग! दिल्ली और मुंबई में काम करने वाले IIT के सीनियर इंजीनियरों ने वापस आकर अपने गाँव के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा ले लिया। ये सीनियर लोग ऑनलाइन क्लासेस लेते हैं, बेहतरीन किताबें मुहैया कराते हैं – और सब कुछ बिल्कुल फ्री!
गाँव में एक लाइब्रेरी मॉडल बनाया गया। डिजिटल क्लास सेटअप हुआ। देश के बेहतरीन शिक्षकों का ऑनलाइन माध्यम से कनेक्शन हुआ। जो छात्र आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें विशेष ध्यान दिया जाता है।
“खटखट” के बीच IIT की तैयारी
एक बात सुनो – यह गाँव अभी भी बुनकरी का काम करता है। तो उन बच्चों की स्थिति कैसी होगी? घर में चरखे की खटखट चलती है, गरीबी है, साधनों की कमी है। लेकिन फिर भी ये बच्चे IIT की तैयारी कर रहे हैं! एक छात्र ने कहा कि “खटखट-खटखट के इसी माहौल में पढ़कर हम सफल हुए हैं।” कितनी शक्तिशाली बात है न!
हर साल की सफलता
हर साल की कहानी अलग है:
और सिर्फ IIT नहीं, NIT और अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी पटवा टोली के बच्चे हर साल जाते हैं।
दुनिया में पटवा टोली का नाम
सबसे अच्छी बात? पटवा टोली के इंजीनियरों ने 18 देशों में अपने पैर जमा दिए हैं। करीब 500 छात्र! ये तो कोई छोटी बात नहीं है।
और हाल ही में, Zoho के मालिक श्रीधर वेम्बु को जब इस गाँव की कहानी सुनी, तो वो कहने लगे कि “यह देखो, बिहार में कितनी प्रतिभा है!” उन्होंने कहा कि अगर कोई सीरीयस उद्यमी बनना चाहता है तो बिहार के ऐसे गाँवों में युवा प्रतिभा देखनी चाहिए।
गाँव के इंजीनियर बन गए शिक्षक
सबसे सुंदर हिस्सा यह है कि जो IITians आगे बढ़ गए, वो वापस अपने गाँव के लिए काम कर रहे हैं। वो सीनियर-जूनियर सिस्टम में एक-दूसरे को पढ़ाते हैं। बड़े भैया-दीदी छोटों को सिखाते हैं। ये तो सुंदर परंपरा है!
असली सफलता क्या है?
देखो, यह सिर्फ IIT में दाखिले की संख्या नहीं है। असली सफलता यह है कि एक ऐसे गाँव में, जहाँ पिछले दशकों में सिर्फ बुनकरी होती थी, वहाँ अब शिक्षा की संस्कृति बन गई है। माता-पिता अपने बेटे-बेटियों को पढ़ाना चाहते हैं। हर परिवार में यह आशा है कि हाँ, मेरा बेटा भी IIT जा सकता है।
और सबसे बड़ी बात? यह सब कुछ बिना किसी बड़े सरकारी योजना के हुआ। बस एक गाँव ने, एक संगठन ने, और कुछ समर्पित IITians ने यह किया।
पटवा टोली आज सिर्फ एक गाँव नहीं है – यह एक प्रेरणा है। एक सबूत है कि हाँ, सही पढ़ाई, सही मार्गदर्शन, और सामुदायिक समर्थन से कुछ भी असंभव नहीं है। भले ही आप बुनकर का बेटा हो या गरीब परिवार से आते हो, आपके सपनों की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए।


















