बिहार सरस मेला पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान पर 12 दिसंबर से 28 दिसंबर तक लगा है। यह मेला ग्रामीण विकास विभाग की ओर से आयोजित किया जा रहा है और इस बार यह अपने सबसे बड़े रूप में प्रस्तुत है। इसे “हुनरमंद हाथों से सजता बिहार” थीम के साथ मनाया जा रहा है।

क्या है खास इस बार
इस वर्ष का सरस मेला पिछले सालों से कहीं बड़ा हो गया है। देश के 25 राज्यों से आई महिलाएं अपने उत्पाद लेकर आई हैं। गांधी मैदान पर 500 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं जहां बिहार समेत पूरे देश की स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपना सामान बेच रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि बिहार के सभी 38 जिलों से महिलाएं इस मेले में भाग ले रही हैं।
देखने लायक क्या-क्या है
यहां पहुंचने वाले लोगों को विविधता की दावत मिलती है। आप देश भर की हस्तशिल्प, हैंडलूम साड़ियां, मधुबनी पेंटिंग, जूट और बांस से बने उत्पाद देख सकते हैं। खाने के शौकीनों के लिए “दीदी की रसोई” का विशेष जोन बनाया गया है जहां बिहार के पारंपरिक व्यंजन—लिट्टी-चोखा, दही-भल्ले, गुलाब जामुन और कई तरह की खीर मिलती है। सब कुछ हाथ से बना होता है।
मेले में आर्गेनिक मसालों, घर का बना अचार-पापड़, मिलेट प्रोडक्ट्स, प्राकृतिक उत्पाद, घर के उपयोग की सामग्री भी दिखाई देते हैं। एक खास स्टॉल “दीदी की पौधशाला” भी है जहां से आप अपने बगीचे के लिए शिमला मिर्च, लेमन ग्रास और अन्य सजावटी पौधे खरीद सकते हैं।
महिलाएं कैसी सफल हो रहीं
यह मेला बस एक खरीदारी की जगह नहीं है—यह महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक है। जीविका (ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति) इन महिलाओं को मार्केटिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग की प्रशिक्षण देती है। शहरी ग्राहकों से सीधा संपर्क होने से इन महिलाओं को अपने उत्पादों की सही कीमत मिलती है और साथ ही बाजार की समझ भी बढ़ती है।
मेले में और क्या है
सिर्फ खरीद-बिक्री नहीं, मेले में हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक, सेमिनार होते हैं। बच्चों के लिए फन जोन है, परिवार के साथ फोटो खिंचवाने के लिए सेल्फी जोन बनाया गया है। भीड़ को संभालने के लिए फूड कोर्ट और राहत के लिए बुजुर्गों के लिए कार्ट सेवा भी उपलब्ध है।
सभी स्टॉलों पर कैशलेस खरीदारी की सुविधा दी गई है और जीविका दीदियों द्वारा ग्राहक सेवा केंद्र भी चलाए जा रहे हैं।
सरकार का मकसद क्या है
ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि सरस मेला ग्रामीण महिलाओं को बड़े बाजार तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। इससे ये महिलाएं सीधे शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं से जुड़ती हैं और उनकी आय भी बढ़ती है। बिहार सरकार आने वाले समय में इन उत्पादों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी, ई-मार्केटिंग और राज्य स्तर पर स्थाई बिक्री केंद्र स्थापित करने पर काम करना चाहती है।
आप भी जा सकते हैं
मेला गांधी मैदान, पटना में 28 दिसंबर तक खुला है और प्रवेश बिल्कुल मुफ्त है। परिवार और दोस्तों के साथ जाएं, बिहार की संस्कृति को जानें, सस्ते दामों पर हाथ से बना सामान खरीदें और महिला उद्यमियों को सीधे प्रोत्साहित करें।
बिहार सरस मेला पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान पर 12 दिसंबर से 28 दिसंबर तक लगा है। यह मेला ग्रामीण विकास विभाग की ओर से आयोजित किया जा रहा है और इस बार यह अपने सबसे बड़े रूप में प्रस्तुत है। इसे “हुनरमंद हाथों से सजता बिहार” थीम के साथ मनाया जा रहा है।
क्या है खास इस बार
इस वर्ष का सरस मेला पिछले सालों से कहीं बड़ा हो गया है। देश के 25 राज्यों से आई महिलाएं अपने उत्पाद लेकर आई हैं। गांधी मैदान पर 500 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं जहां बिहार समेत पूरे देश की स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपना सामान बेच रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि बिहार के सभी 38 जिलों से महिलाएं इस मेले में भाग ले रही हैं।
देखने लायक क्या-क्या है
यहां पहुंचने वाले लोगों को विविधता की दावत मिलती है। आप देश भर की हस्तशिल्प, हैंडलूम साड़ियां, मधुबनी पेंटिंग, जूट और बांस से बने उत्पाद देख सकते हैं। खाने के शौकीनों के लिए “दीदी की रसोई” का विशेष जोन बनाया गया है जहां बिहार के पारंपरिक व्यंजन—लिट्टी-चोखा, दही-भल्ले, गुलाब जामुन और कई तरह की खीर मिलती है। सब कुछ हाथ से बना होता है।
मेले में आर्गेनिक मसालों, घर का बना अचार-पापड़, मिलेट प्रोडक्ट्स, प्राकृतिक उत्पाद, घर के उपयोग की सामग्री भी दिखाई देते हैं। एक खास स्टॉल “दीदी की पौधशाला” भी है जहां से आप अपने बगीचे के लिए शिमला मिर्च, लेमन ग्रास और अन्य सजावटी पौधे खरीद सकते हैं।
महिलाएं कैसी सफल हो रहीं
यह मेला बस एक खरीदारी की जगह नहीं है—यह महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक है। जीविका (ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति) इन महिलाओं को मार्केटिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग की प्रशिक्षण देती है। शहरी ग्राहकों से सीधा संपर्क होने से इन महिलाओं को अपने उत्पादों की सही कीमत मिलती है और साथ ही बाजार की समझ भी बढ़ती है।
मेले में और क्या है
सिर्फ खरीद-बिक्री नहीं, मेले में हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक, सेमिनार होते हैं। बच्चों के लिए फन जोन है, परिवार के साथ फोटो खिंचवाने के लिए सेल्फी जोन बनाया गया है। भीड़ को संभालने के लिए फूड कोर्ट और राहत के लिए बुजुर्गों के लिए कार्ट सेवा भी उपलब्ध है।
सभी स्टॉलों पर कैशलेस खरीदारी की सुविधा दी गई है और जीविका दीदियों द्वारा ग्राहक सेवा केंद्र भी चलाए जा रहे हैं।
सरकार का मकसद क्या है
ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि सरस मेला ग्रामीण महिलाओं को बड़े बाजार तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। इससे ये महिलाएं सीधे शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं से जुड़ती हैं और उनकी आय भी बढ़ती है। बिहार सरकार आने वाले समय में इन उत्पादों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी, ई-मार्केटिंग और राज्य स्तर पर स्थाई बिक्री केंद्र स्थापित करने पर काम करना चाहती है।
आप भी जा सकते हैं
मेला गांधी मैदान, पटना में 28 दिसंबर तक खुला है और प्रवेश बिल्कुल मुफ्त है। परिवार और दोस्तों के साथ जाएं, बिहार की संस्कृति को जानें, सस्ते दामों पर हाथ से बना सामान खरीदें और महिला उद्यमियों को सीधे प्रोत्साहित करें।


















