जब पुरानी चीजें नई संभावनाएं बन जाएं
सहारनपुर के निवासी अरुण कुमार ने ऐसा ही एक सफर तय किया है। जो लोग पुरानी गाड़ियों के हिस्से, सिलाई मशीन के पुर्जे और टूट-फूट चुकी मशीनरी को कचरे की नजर से देखते हैं, अरुण उन्हें कला के रूप में रूपांतरित कर देते हैं। उनकी यह खूबसूरत दृष्टि ने उन्हें भारत से परे एक अंतरराष्ट्रीय कलाकार बना दिया है।

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सिर्फ हाथों से, सिर्फ पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए
अरुण की खूबसूरती उनकी धातु की कलाकृतियों में है। हर रचना पूरी तरह हाथ से बनाई जाती है, और सबसे महत्वपूर्ण बात—ये पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल हैं। शून्य कार्बन फुटप्रिंट। यह कोई झूठा दावा नहीं है, बल्कि उनके काम का वास्तविक सार है। जब आप किसी छोड़ी हुई चीज को नई जिंदगी देते हो, तो आप न सिर्फ कला बनाते हो, बल्कि पृथ्वी को भी बचाते हो।
विश्व के बाजारों में भारतीय कला की पहचान
आज अरुण की धातु की कलाकृतियां सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूएई जैसे देशों में निर्यात होती हैं। हर टुकड़ा एक कहानी है—कहानी उस सामग्री की, जो कभी किसी कूड़ेदान में होने वाली थी, पर अब किसी के घर की शोभा बढ़ा रही है। कीमत में भी विविधता है—1,000 रुपये से लेकर 40 लाख रुपये तक। हर बजट के लिए कुछ न कुछ है।
भारतीय हस्तशिल्प का वैश्विक पहचान
यह सिर्फ अरुण की कहानी नहीं है। भारत के हस्तशिल्प सेक्टर में ऐसे सैकड़ों कारीगर हैं जो पर्यावरण के साथ, परंपरा के साथ, और आधुनिकता के साथ तालमेल बैठा रहे हैं। भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र 30 लाख से अधिक कारीगरों को रोजगार देता है, जो इसे देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बनाता है। यूएसए से लेकर यूरोप तक, दुनिया भारतीय कला की गुणवत्ता को समझ रही है और सराह रही है।
इको-फ्रेंडली कला में पैसे भी हैं, जिम्मेदारी भी
धातु को पुनर्चक्रित करने से न सिर्फ कला बनती है, बल्कि पर्यावरण भी बचता है। नई धातु को निकालने और तैयार करने की प्रक्रिया ऊर्जा-गहन है और प्रदूषण भी फैलाती है। लेकिन जब आप पुरानी धातु को कला में बदलते हो, तो आप ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करते हो और ऊर्जा की बचत करते हो। यह सिर्फ सुंदरता नहीं है, यह जिम्मेदारी है।
एक आंदोलन जो बढ़ रहा है
विश्व भर में, ऐसे कलाकार बढ़ रहे हैं जो कूड़ेदान को क्यूरेटर मानते हैं। स्क्रैप मेटल आर्ट (scrap metal art) एक आंदोलन बन गया है। लोग जंग खाई बाइक, टूटी जंजीरें, और पुरानी हीट्स को देखते हैं और कल्पना में उन्हें मूर्तियों, पक्षियों, या सार रचनाओं में बदल देते हैं। यह कला नहीं है, यह एक बयान है—पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का, मानवीय कल्पना की शक्ति का।
भारतीय निर्यात में बढ़ता ट्रेंड
2021-22 में भारतीय हस्तशिल्प का कुल निर्यात 4.35 अरब डॉलर का था, जो पिछले साल से 25.7% अधिक था। आर्ट मेटलवेयर (कलात्मक धातु सामग्री) इस निर्यात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यूके, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, और दक्षिण एशिया से हजारों खरीद आते हैं। अरुण के जैसे कारीगर सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि एक संपूर्ण इकोसिस्टम के लिए काम कर रहे हैं।
डिजिटल अर्थव्यवस्था में स्थानीय कारीगरों का उदय
इंटरनेट ने सहारनपुर जैसे कस्बों से आने वाली कला को विश्व मंच दे दिया है। अरुण जैसे कारीगर अब सीधे विदेशी ग्राहकों से जुड़ सकते हैं। ऑनलाइन मार्केटप्लेस, सोशल मीडिया, और डिजिटल पेमेंट सिस्टम ने परंपरागत कला को आधुनिक बाजार में ला दिया है। यह “वोकल फॉर लोकल” का असली मतलब है।
सतत विकास के साथ समृद्धि
अरुण की सफलता केवल आर्थिक नहीं है। यह सामाजिक है, पर्यावरणीय है, और सांस्कृतिक है। हर टुकड़ा जो वह बनाता है, वह बताता है कि कैसे परंपरा और आधुनिकता एक साथ काम कर सकते हैं। कैसे सीमित संसाधनों से असीम संभावनाएं निकलती हैं। और कैसे भारत की कला, भारत की बुद्धि, दुनिया को बदल सकती है।
हर बार जब आप उसकी कला को देखते हो, तो आप सिर्फ एक सुंदर वस्तु नहीं देख रहे—आप एक संदेश देख रहे हो, एक प्रेरणा देख रहे हो, एक संभावना देख रहे हो। और शायद यही कला की सबसे बड़ी शक्ति है।

















