अगर आप बिहार में जमीन या फ्लैट खरीदने का प्लान बना रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए बहुत जरूरी है। हो सकता है कि आपको अपना फैसला थोड़ा जल्दी लेना पड़े। बिहार सरकार लगभग एक दशक के बाद जमीन की सरकारी दरों (सर्किल रेट या MVR) में बड़ा बदलाव करने जा रही है। इसका सीधा मतलब है—जमीन की रजिस्ट्री अब पहले से काफी महंगी पड़ने वाली है ।
आज के इस ब्लॉग में हम आसान भाषा में समझेंगे कि आखिर क्या बदलने वाला है, रेट कितना बढ़ेगा और इसका आपकी जेब पर क्या असर होगा।
क्यों मच रही है खलबली? (300% से 400% की बढ़ोतरी)
सबसे बड़ी खबर यह है कि जमीन की सरकारी कीमत (MVR) में 3 से 4 गुना यानी 300% से 400% तक की बढ़ोतरी हो सकती है । सुनने में यह आंकड़ा बहुत बड़ा लगता है, और यह है भी।
पिछले 10-12 सालों से बिहार के कई इलाकों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी रेट नहीं बढ़ा था। 2013 के बाद से ग्रामीण और 2016 के बाद से शहरी इलाकों में रेट लगभग स्थिर थे । लेकिन इस बीच बाजार में जमीन के दाम आसमान छूने लगे। सरकार अब इसी अंतर को खत्म करना चाहती है।
पटना और आसपास के इलाकों का हाल
राजधानी पटना और इसके आसपास के इलाकों में इसका सबसे ज्यादा असर दिखने वाला है। यहाँ के कुछ प्रमुख उदाहरणों से समझिए:
- पटना (फ्रेजर रोड और बोरिंग रोड): शहर के पॉश इलाकों में अभी सरकारी रेट लगभग 1.5 करोड़ रुपये प्रति कट्ठा है, जबकि बाजार में इसकी कीमत 5 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। नई व्यवस्था में सरकारी रेट को बढ़ाकर बाजार भाव के बराबर यानी करीब 5 करोड़ रुपये किया जा सकता है ।
- बिहटा (Bihta): यहाँ अभी तक कृषि भूमि मानकर रजिस्ट्री हो रही थी, लेकिन एयरपोर्ट और विकास के कारण यहाँ जमीन के दाम बहुत बढ़ गए हैं। खबर है कि बिहटा में सरकारी रेट 70-80 हजार रुपये प्रति कट्ठा तक तय किया जा सकता है, जो पहले नाममात्र था ।
- दानापुर और सगुना मोड़: यहाँ भी रेट 2 से 3 गुना बढ़ने की उम्मीद है। दानापुर में नई दरें 2 करोड़ रुपये प्रति कट्ठा तक जा सकती हैं ।
ग्रामीण इलाके अब ‘शहरी’ रेट पर
इस बार सरकार का फोकस सिर्फ शहरों पर नहीं है। पिछले कुछ सालों में बिहार में कई नई नगर पंचायतें और नगर परिषद बनी हैं। जो इलाके पहले गाँव थे, अब वे शहर बन गए हैं।
अगर आपकी जमीन किसी ऐसी जगह है जो हाल ही में ‘नगर पंचायत’ बनी है, तो अब वहाँ ‘खेतिहर जमीन’ वाला सस्ता रेट नहीं चलेगा। वहाँ अब ‘आवासीय’ (Residential) या ‘व्यावसायिक’ (Commercial) रेट लागू होगा, जो कृषि भूमि से कई गुना ज्यादा होता है ।
आपकी जेब पर कितना असर पड़ेगा? (गणित समझिए)
जमीन महंगी होने का मतलब सिर्फ जमीन की कीमत नहीं, बल्कि रजिस्ट्री का खर्चा बढ़ना है। बिहार में रजिस्ट्री का खर्च (स्टाम्प ड्यूटी और निबंधन शुल्क) जमीन की सरकारी कीमत (MVR) का लगभग 8% (पुरुषों के लिए) होता है ।
उदाहरण के लिए: मान लीजिए आप एक जमीन खरीद रहे हैं जिसकी सरकारी कीमत अभी 10 लाख रुपये है।
- अभी खर्चा: 10 लाख का 8% = 80,000 रुपये।
अब अगर 2026 में सरकारी रेट 3 गुना बढ़कर 30 लाख रुपये हो जाता है:
- बाद में खर्चा: 30 लाख का 8% = 2.40 लाख रुपये।
यानी जमीन वही है, लेकिन रजिस्ट्री कराने के लिए आपको 1.60 लाख रुपये ज्यादा देने होंगे। यही कारण है कि लोग 1 अप्रैल 2026 से पहले रजिस्ट्री कराने की सोच रहे हैं ।
सरकार ऐसा क्यों कर रही है?
सरकार के इस फैसले के पीछे दो मुख्य कारण हैं:
- काले धन (Black Money) पर रोक: अभी सरकारी रेट कम होने की वजह से लोग कागजों पर कम कीमत दिखाते हैं और बाकी पैसा ‘कैश’ (ब्लैक) में देते हैं। रेट बढ़ने से पूरा पैसा चेक या बैंक से देना होगा, जिससे पारदर्शिता आएगी ।
- राजस्व (Revenue) बढ़ाना: सरकार का खजाना भरने के लिए यह जरूरी है। मेट्रो, गंगा पथ और नए हाईवे बनने से जमीन की कीमत बढ़ी है, तो सरकार भी उसका फायदा चाहती है ।
अन्य जिलों का क्या होगा?
सिर्फ पटना ही नहीं, मुजफ्फरपुर, गया, भागलपुर, और दरभंगा जैसे शहरों में भी रेट बढ़ेंगे।
- मुजफ्फरपुर: स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और शहरी विस्तार के कारण यहाँ के बाहरी इलाकों (Periphery) में जमीन महंगी होगी।
- गया: बोधगया और शहर के मुख्य बाजारों में कमर्शियल रेट बढ़ने की पूरी संभावना है ।
- औरंगाबाद और पूर्णिया: यहाँ भी ग्रामीण और शहरी दरों के बीच के अंतर को पाटा जाएगा ।
जानकारों की मानें तो नई दरें 1 अप्रैल 2026 से लागू होने की संभावना है । अभी जिला स्तर पर सर्वे चल रहा है और प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं।
















