भारतीय राजनीति में कुछ ही नेता दशकों तक सत्ता में अपनी जगह बनाए रख सकते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे ही एक राजनीतिक व्यक्ति हैं जो पिछले दो दशकों से राज्य की राजनीति के केंद्र में रहे हैं। 74 साल के नीतीश कुमार ने न केवल बिहार के शासन को नई दिशा दी है बल्कि अपनी पार्टी बदलने की नीति के कारण देशभर में चर्चा में रहे हैं।

ताकत की कहानी: राजनीतिक सफर
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा 2000 में मुख्यमंत्री बनने के साथ शुरू हुई, हालांकि यह पहला कार्यकाल केवल सात दिनों का रहा। असली बदलाव 2005 में आया जब उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लालू प्रसाद यादव के राजद का 15 साल का शासन खत्म किया। तब से लेकर अब तक नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड नौ बार मुख्यमंत्री की शपथ ली है।
उनकी राजनीतिक चालाकी का सबसे दिलचस्प हिस्सा यह है कि वे कभी भी विधानसभा चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री नहीं बने हैं, बल्कि हमेशा विधान परिषद के रास्ते से “पिछले दरवाजे” से सत्ता में पहुंचे हैं। यह तरीका उन्हें लोगों की सीधी जांच से बचने में मदद करता है।
पार्टी बदलने के माहिर
नीतीश कुमार की राजनीतिक होशियारी का मुख्य उदाहरण उनकी पार्टी बदलने की आदत है। 1994 से 2025 तक के तीन दशकों में उन्होंने कई बार राजनीतिक रुख बदला है:
- 1994: लालू प्रसाद यादव के जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई
- 2000-2013: बीजेपी के साथ एनडीए में
- 2013-2017: एनडीए छोड़ा
- 2015: राजद-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया
- 2017: महागठबंधन छोड़कर फिर एनडीए में शामिल
- 2022: एनडीए छोड़कर राजद के साथ गठबंधन
- 2024: वापस एनडीए में शामिल
इस कारण उन्हें “पलटू कुमार” का नाम मिला है। हालांकि, हाल ही में सितंबर 2025 में उन्होंने वादा किया है कि “अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा”।
विकास का काम: बिहार का कायाकल्प
नीतीश कुमार के शासनकाल में बिहार में बुनियादी ढांचे का बहुत विकास हुआ है। 2005 में सत्ता संभालते समय उनके मुख्य लक्ष्य साफ थे: “शासन, शासन, शासन”।
आर्थिक तरक्की
बिहार की जीडीपी नीतीश कुमार के समय में 2004-05 के 77,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 6.1 लाख करोड़ रुपये हो गई है। 2023-24 में बिहार की अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी 9.2% रही, जो देश में तीसरे स्थान पर है। जानकारों का अनुमान है कि 2030-31 तक बिहार की अर्थव्यवस्था 219 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी और 2046-47 तक यह 1.1 खरब डॉलर का आंकड़ा छू सकती है।
सड़क और बुनियादी ढांचे में सुधार
बिहार में सड़क व्यवस्था में भारी सुधार हुआ है:
- 2005 में 3,629 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग था जो 2025 में बढ़कर 6,147 किमी हो गया
- मुख्य जिला सड़कें 8,457 किमी से बढ़कर 16,296 किमी हो गईं
- मुख्यमंत्री ग्राम संपर्क योजना के तहत दो लाख किमी से अधिक सड़कों का निर्माण
- गांधी सेतु का नवीकरण और नए पुलों का निर्माण
बिजली और शिक्षा
घरों में बिजली पहुंचना 2005 के 22% से बढ़कर 2023 में 95% हो गया है। शिक्षा के क्षेत्र में “बेटियों को साइकिल” योजना जैसी पहलों से लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा मिला है।
विवाद और समस्याएं
सेहत की चिंताएं
हाल के सालों में नीतीश कुमार की सेहत को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। कुछ आलोचकों ने उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमता पर सवाल उठाया है। पार्टी के अंदरूनी लोगों का कहना है कि वे पहले की तुलना में शांत और संयमित नहीं रहे।
भ्रष्टाचार के आरोप
नीतीश सरकार के कुछ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इन आरोपों पर उनकी चुप्पी को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जबकि वे अपनी “शून्य भ्रष्टाचार” की नीति के लिए जाने जाते हैं।
जाति की राजनीति
नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं जो बिहार की आबादी का केवल 2.87% है। अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने के लिए उन्होंने बहुत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के साथ गठजोड़ बनाया है, जो राज्य की आबादी का 36% हिस्सा हैं। 2023 की जाति गणना उनकी इसी रणनीति का हिस्सा थी।
भविष्य की राजनीति
2025 चुनाव की तैयारी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए के चेहरे के रूप में चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। हाल की कैबिनेट बैठक में 129 जरूरी फैसले लिए गए हैं, जिनमें छात्रवृत्ति दोगुनी करना, कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाना और 12,000 करोड़ रुपये की सड़क योजनाओं की मंजूरी शामिल है।
चुनावी हालात
अलग-अलग सर्वेक्षणों में मिले-जुले नतीजे दिख रहे हैं:
- जेवीसी सर्वे: एनडीए को 131-150 सीटें मिलने का अनुमान
- लोक पोल सर्वे: महागठबंधन को 118-126 सीटें मिलने की संभावना
- जन सुराज पार्टी को 4-6 सीटें मिल सकती हैं
देश की राजनीति पर असर
नीतीश कुमार की पार्टी बदलने का असर सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहता। 2024 में उनकी एनडीए में वापसी ने राष्ट्रीय विपक्ष को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। उनकी राजनीतिक चाल अक्सर देश की रणनीति को प्रभावित करती है।
निष्कर्ष: एक दौर का अंत या नई शुरुआत?
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा एक जटिल कहानी है जिसमें विकास की उपलब्धियां, पार्टी बदलने की चालाकी और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा शामिल हैं। उनके नेतृत्व में बिहार ने साफ तौर पर तरक्की की है—सड़कों से लेकर स्कूलों तक, बिजली से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं तक। उन्होंने राज्य को “बिमारू” की श्रेणी से निकालकर तेज आर्थिक विकास के रास्ते पर लगाया है।
हालांकि, उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हैं। “पलटू कुमार” का नाम और हाल की सेहत की चिंताएं उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े करती हैं। 74 साल की उम्र में, 2025 का चुनाव शायद उनके राजनीतिक करियर का फैसलाकुन मोड़ हो सकता है।
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की जगह अनोखी है। वे न सिर्फ एक प्रशासक रहे हैं बल्कि एक कुशल राजनीतिज्ञ भी हैं जो हालात के हिसाब से खुद को बदल लेते हैं। आने वाला चुनाव यह तय करेगा कि क्या वे अपनी राजनीतिक विरासत को और मजबूत बना पाएंगे या फिर एक दौर का अंत होगा। उनका भविष्य न सिर्फ बिहार की राजनीति को प्रभावित करेगा बल्कि देश की राजनीति के समीकरण को भी बदल सकता है।