यह कहानी पुणे की शीतल विजय शिंदे की है, एक ऐसी महिला जो अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखती थीं। लेकिन 19 जनवरी को उनकी जान चली गई। उनकी मौत का कारण कोई आम बीमारी नहीं थी, बल्कि एक ऐसा खतरा था जो हमारे शहरों की छतों और बालकनियों पर है, पर हम उससे अनजान हैं: कबूतर।
शीतल की बीमारी की शुरुआत 2017 में एक मामूली “खांसी” से हुई। जब दवाइयों का असर नहीं हुआ, तो एक डॉक्टर ने एक ज़रूरी सवाल पूछा: “आप जहां रहती हैं, क्या वहां कबूतर हैं?” यह एक बड़ा इशारा था। शीतल की बिल्डिंग में कबूतरों ने घोंसले बना रखे थे और उनकी गंदगी हर जगह फैली थी। डॉक्टर ने बताया कि शीतल की खांसी का कारण यही कबूतर थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
उनकी सेहत तेज़ी से बिगड़ने लगी और जल्द ही वह 24 घंटे ऑक्सीजन के सहारे रहने लगीं। डॉक्टरों ने बताया कि उनके फेफड़े कबूतरों की गंदगी से हुए इन्फेक्शन के कारण पूरी तरह खराब हो गए थे। इस बीमारी का नाम हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (Hypersensitivity Pneumonitis – HP) है। फेफड़ों के ट्रांसप्लांट के दर्दनाक इंतज़ार के बाद, शीतल ज़िंदगी की जंग हार गईं। अब उनके पिता ने इस दुखद घटना को लोगों को जगाने का एक अभियान बना लिया है, ताकि किसी और परिवार को यह दर्द न झेलना पड़े।

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छिपा हुआ दुश्मन: हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (HP)
हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस, जिसे “बर्ड फैंसीर्स लंग” भी कहते हैं, कोई बड़ी एलर्जी नहीं, बल्कि यह शरीर की अपनी ही रक्षा प्रणाली का फेफड़ों पर हमला है। खतरा कबूतरों से नहीं, बल्कि उनकी सूखी गंदगी और पंखों की धूल में मौजूद बहुत छोटे प्रोटीन से होता है। जब यह धूल सांस के साथ फेफड़ों के अंदर तक जाती है, तो कुछ लोगों का शरीर इसे खतरनाक हमलावर समझकर फेफड़ों में बहुत ज़्यादा सूजन पैदा कर देता है। यह सूजन फेफड़ों की ऑक्सीजन सोखने की ताकत को खत्म कर देती है।
इसके लक्षण धोखा देने वाले हो सकते हैं:
- तेज़ी से होने वाला HP: यह फ्लू जैसा लगता है, जिसमें बुख़ार, ठंड लगना और खांसी होती है। ये लक्षण खतरनाक धूल के पास जाने के कुछ घंटों बाद शुरू होते हैं और उस जगह से दूर जाने पर अक्सर ठीक हो जाते हैं, जिससे असली वजह पकड़ में नहीं आती।
- धीरे-धीरे होने वाला HP: यह शीतल के मामले में हुआ था। यह लंबे समय तक कम मात्रा में धूल के संपर्क में रहने से धीरे-धीरे बनता है। इसके लक्षण हैं- लगातार खांसी, थकावट, वज़न कम होना और काम करते समय सांस फूलना। इसका आखिरी स्टेज पल्मोनरी फाइब्रोसिस है, जिसमें फेफड़े हमेशा के लिए सख्त और खराब हो जाते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज नहीं है, जिसके बाद फेफड़ों का ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता बचता है।
कबूतरों से फैलने वाली दूसरी बीमारियाँ
HP के अलावा, कबूतरों की गंदगी कई खतरनाक कीटाणुओं का घर होती है, जिनसे ये बीमारियां हो सकती हैं:
- हिस्टोप्लाज्मोसिस: एक फंगल इन्फेक्शन जो फेफड़ों पर असर करता है।
- क्रिप्टोकोकोसिस: यह फंगस फेफड़ों से दिमाग़ तक पहुंचकर जानलेवा दिमाग़ी बुख़ार का कारण बन सकता है।
- सिटाकोसिस (“तोता बुख़ार”): एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन जो खतरनाक निमोनिया पैदा कर सकता है।
- ई. कोलाई और साल्मोनेला: यदि गंदगी भोजन या पानी को गंदा कर दे, तो पेट की खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं।
सावधानी ही सबसे बड़ा इलाज है
शीतल की कहानी सिखाती है कि जानकारी और सावधानी ही सबसे बड़ा हथियार है।
- कबूतरों को दाना डालना बंद करें: यह सबसे ज़रूरी कदम है। दाना डालने से उनकी संख्या बिना रोक-टोक के बढ़ती है और बीमारियां फैलने का खतरा भी।
- गंदगी की सही तरीके से सफ़ाई: सूखी गंदगी पर कभी झाड़ू न लगाएं, इससे खतरनाक धूल हवा में फैल जाती है। सफ़ाई से पहले हमेशा मास्क और ग्लव्स पहनें। गंदगी को पानी से गीला करें, फिर खुरचकर एक बंद थैली में फेंक दें।
- अपने घर को सुरक्षित बनाएं: बालकनियों और खिड़कियों पर पक्षियों से बचाने वाली जाली (बर्ड नेटिंग) लगवाएं।
- डॉक्टर को ज़रूर बताएं: अगर आपको लगातार खांसी या सांस फूलने की शिकायत है और आपके घर के पास कबूतर हैं, तो यह जानकारी अपने डॉक्टर को ज़रूर दें।
बिहार के लिए सबक
पुणे की यह कहानी पटना गया, मुज़फ़्फ़रपुर जैसे बिहार के हर शहर के लिए एक चेतावनी है, जहां कबूतरों की भीड़ आम बात है। पक्षियों को दाना खिलाना एक अच्छा काम माना जाता है, लेकिन आज असली दया अपने परिवार और समाज की सेहत का बचाव करने में है। इसके लिए अपनी ज़िम्मेदारी और मिलकर कोशिश करना, दोनों ज़रूरी हैं। शहर की नगर पालिका को भी आम जगहों पर जानकारी देने वाले प्रोग्राम चलाने चाहिए।