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खाजा क्या है और यह कहाँ मिलता है
बिहार की मिठाइयों में खाजा का एक खास स्थान है। यह अपनी परतों (लेयर्स) और कुरकुरी बनावट के लिए बहुत मशहूर है । खाजा को अक्सर तुर्की की ‘बकलावा’ मिठाई जैसा ही माना जाता है । खाजा मैदा, चीनी और घी जैसी आम चीजों से बनता है । सबसे अच्छा और असली खाजा नालंदा जिले के सिलाव शहर में मिलता है । सिलाव का खाजा इसलिए खास है क्योंकि इसे कारीगर 52 परतों तक का बनाते हैं । इतनी परतें बनाना एक कला है। सिलाव के खाजा को दिसंबर 2018 में भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग (GI Tag) मिला था । यह टैग बताता है कि खाजा सिर्फ सिलाव का ही असली है और इसकी क्वालिटी वहीं की मिट्टी और पानी से आती है ।
खाजा का पुराना इतिहास और धार्मिक महत्व
खाजा कोई नई मिठाई नहीं है, इसका इतिहास बहुत पुराना है । पुरानी खोजों से पता चला है कि यह मिठाई मौर्य साम्राज्य (320 ईसा पूर्व) के समय भी थी। महान विचारक चाणक्य ने अपनी मशहूर किताब ‘अर्थशास्त्र’ में भी खाजा का जिक्र किया है । कहानियों के मुताबिक, खाजा मिठाई मौर्य राजाओं को भी बहुत पसंद आती थी । धर्म से भी इसका गहरा संबंध है। कहा जाता है कि नालंदा यूनिवर्सिटी के प्रिंसिपल शीलभद्र ने भगवान गौतम बुद्ध को यह मिठाई भेंट की थी । बिहार के अलावा, खाजा का महत्व ओडिशा के पुरी शहर में भी है, जहाँ इसे भगवान जगन्नाथ को ‘महाप्रसाद’ के रूप में चढ़ाया जाता है । यह बताता है कि खाजा सिर्फ बिहार की नहीं, बल्कि पूरे भारत की एक पुरानी और पवित्र मिठाई है ।
खाजा बनाने का खास तरीका
खाजा का कुरकुरापन और परतदार ढाँचा (52 परतें) एक खास पाककला तकनीक का परिणाम है, जिसके लिए मैदा, घी/तेल और शक्कर जैसी मूलभूत सामग्रियों का प्रयोग होता है । खाजा की परतों को तलने पर खुलने के लिए कारीगर ‘सट्टा’ नाम का एक पेस्ट लगाते हैं, जो मैदा और घी/तेल से बना होता है । फिर इसे बेलकर और काटकर, धीमी आँच पर तलते हैं । धीमी आँच पर तलना ज़रूरी है, ताकि यह अंदर तक कुरकुरा हो जाए और इसकी परतें खुल जाएँ । तलने के बाद, खाजा को तुरंत हल्का गरम (गुनगुना) चाशनी में डालते हैं । खाजा को चाशनी में सिर्फ 10 से 15 सेकंड के लिए ही डुबोना चाहिए । अगर इसे ज्यादा देर चाशनी में रखेंगे, तो इसका कुरकुरापन खत्म होकर यह नरम हो जाएगा ।
सांस्कृतिक महत्व और कहाँ मिलता है
खाजा बिहार के त्योहारों और सामाजिक कामों का एक बहुत ज़रूरी हिस्सा है । बिहार के बड़े त्योहार छठ पूजा में खाजा को प्रसाद (भोग) के रूप में चढ़ाया जाता है , चूँकि यह मैदा, घी और शक्कर से बनता है, इसलिए यह व्रत के बाद शरीर को तुरंत ताकत देता है । शादी-विवाह जैसे बड़े कार्यक्रमों में भी इसे शुभ माना जाता है । खाजा ज्यादा दिन तक खराब नहीं होता । बिना चाशनी वाला खाजा एयरटाइट डिब्बे में एक महीने तक रखा जा सकता है । इसी वजह से इसे दूर के शहरों और यहाँ तक कि विदेशों (जैसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया) में भी भेजा जाता है । खाजा की पहचान सिर्फ सिलाव से है और वहीं सबसे अच्छी क्वालिटी मिलती है। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और लेखक फणीश्वर नाथ रेणु जैसी बड़ी हस्तियों ने भी सिलाव खाजा का स्वाद चखा है और इसकी खूब तारीफ की है ।
वैश्विक पहचान और मार्केटिंग में चुनौतियाँ
खाजा का इतिहास, इसका 52 परतों वाला खास कारीगरी का हुनर और इसे मिला जीआई टैग इसे बड़ी पहचान दिलाने के लिए काफी हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2015 में खाजा को एक उद्योग का दर्जा भी दिया था। सिलाव के कुछ कारीगरों ने अब ऑनलाइन ऐप्स बनाकर खाजा को लंदन, दुबई और अमेरिका जैसे दूर के देशों में भेजना भी शुरू कर दिया है। लेकिन, कई लोगों का मानना है कि खाजा को अभी तक वह बड़ी अंतर्राष्ट्रीय पहचान नहीं मिल पाई है, जिसका यह हकदार है। इसे देश-विदेश में मशहूर बाकी चीज़ों की तरह बड़े पैमाने पर ब्रांडिंग और मार्केटिंग की ज़रूरत है, ताकि यह दुनिया के कोने-कोने तक पहुँच सके। अगर सरकार और बनाने वाले लोग मिलकर इसे सही तरह से मार्केट करें, तो यह बिहार की खास मिठाई दुनिया भर में और भी ज़्यादा प्रसिद्ध हो सकती है।


















