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पुष्पम प्रिया चौधरी रणनीति: दरभंगा, महिला कार्ड और PK पर सीधा वार

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रणनीतिक बदलाव: दरभंगा क्यों? और TPP की विचारधारा

द प्लूरल्स पार्टी (TPP) की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी (PPC) ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपनी राजनीतिक रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया है। 2020 के पिछले चुनाव में, TPP ने खूब प्रचार किया था, लेकिन यह प्रचार वोटों में बदल नहीं पाया और पार्टी को निराशा हाथ लगी “। इस असफलता से सबक लेते हुए, PPC ने अब बाँकीपुर जैसी शहरी सीट को छोड़कर, अपने गृह जिले की प्रतिष्ठित दरभंगा सीट को चुना है। यह फैसला दर्शाता है कि TPP अब केवल एक विचार बनकर नहीं रहना चाहती, बल्कि ज़मीन से जुड़कर एक मज़बूत क्षेत्रीय आधार बनाना चाहती है। दरभंगा सीट से चुनाव लड़ने का मतलब है कि पार्टी को अपनी विचारधारा को बूथ स्तर तक ले जाने और स्थानीय संगठन को सक्रिय करने के लिए मज़बूर होना पड़ेगा। TPP की राजनीतिक यात्रा का मूल सिद्धांत, ‘राजनीति एक विचारधारा है, प्लान बी नहीं’, उनकी इस ‘अकेले चलो’ की नीति का दार्शनिक आधार है । उनकी यह कठोर वैचारिक शुद्धता का मुख्य लक्ष्य केवल तुरंत सत्ता पाना नहीं है, बल्कि बिहार की दशकों पुरानी, पुरुष-प्रधान और जाति-आधारित राजनीति को मौलिक रूप से बदलकर एक दीर्घकालिक परिवर्तन लाना है।

दरभंगा का किला: भाजपा के गढ़ में हाई-रिस्क चुनौती

दरभंगा विधानसभा सीट से लड़ना पुष्पम प्रिया चौधरी के लिए भावनात्मक और रणनीतिक, दोनों ही पहलुओं से एक अत्यंत जोखिम भरा कदम है। दरभंगा मिथिलांचल क्षेत्र का प्रमुख शहर और सांस्कृतिक केंद्र है। यहाँ से चुनाव लड़कर, उन्हें पूरे क्षेत्र के मतदाताओं को सीधे संबोधित करने का मौका मिलेगा। हालाँकि, इस सीट पर जीत हासिल करना TPP के लिए बहुत मुश्किल साबित हो सकता है, क्योंकि दरभंगा भाजपा का एक दुर्जेय किला रहा है , जहाँ से भाजपा के नेता संजय सरावगी 2010 से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। 2015 में महागठबंधन की लहर के बावजूद सरावगी अपनी सीट बचाने में सफल रहे थे । PPC के लिए यह चुनौती केवल एक नेता से नहीं, बल्कि एक गहरी संगठनात्मक विरासत से मुकाबला है। TPP के लिए, यहाँ हारना 2020 की असफलता को दोहरा सकता है। लेकिन रणनीतिक रूप से, यदि PPC यहाँ 20,000 से अधिक वोट हासिल करती हैं और अपनी ज़मानत बचा पाती हैं, तो यह पूरे मिथिलांचल में TPP को एक विश्वसनीय क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा। TPP यहाँ ‘वोट कटवा’ की भूमिका भी निभा सकती है, यदि वह 5 से 10 प्रतिशत विकास-उन्मुख वोट काटती है, तो यह मुख्य दलों के चुनावी समीकरणों को बिगाड़ने का काम करेगा।

महिला कार्ड: 122 उम्मीदवार का संकल्प और चुनावी गणित

द प्लूरल्स पार्टी का 243 विधानसभा सीटों में से 122 पर महिला उम्मीदवारों को उतारने का संकल्प भारतीय चुनावी इतिहास में अब तक का सबसे अनोखा और साहसिक दाँव है—यह लगभग 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है। बिहार विधानसभा चुनावों के पिछले विश्लेषण स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि महिला मतदाता किसी भी पार्टी की जीत-हार में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । पिछले दो चुनावों से, बिहार में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में ज़्यादा बढ़-चढ़कर मतदान कर रही हैं । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से महिला-केंद्रित योजनाएँ चलाकर एक मज़बूत 'लाभार्थी' वर्ग तैयार कर चुके हैं, जिसे अक्सर NDA का 'साइलेंट वोटर' कहा जाता है । TPP का यह ‘महिला कार्ड’ सीधे नीतीश कुमार के स्थापित महिला वोट बैंक को वैचारिक रूप से चुनौती देता है। TPP महिलाओं को केवल ‘लाभार्थी’ के बजाय ‘नेतृत्वकर्ता’ के रूप में पेश करती है। यह सीधे उन महिला मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश है, जो पारंपरिक पार्टियों की जातिगत या पुरुष-केंद्रित राजनीति से थक चुकी हैं। हालाँकि, 2020 के कमज़ोर प्रदर्शन “ को देखते हुए, इस पैमाने पर योग्य, गैर-आपराधिक पृष्ठभूमि और वित्तीय रूप से मज़बूत 122 महिला उम्मीदवारों को ढूँढना TPP के लिए सबसे बड़ी संगठनात्मक चुनौती होगी।

प्रशांत किशोर से वैचारिक युद्ध: ‘स्वच्छ राजनीति’ पर कौन खरा?

बिहार की राजनीति में TPP और चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (PK) के जन सुराज के बीच वैचारिक स्वामित्व की लड़ाई तेज़ हो गई है। PPC ने PK पर सीधा हमला करते हुए आरोप लगाया है कि वह TPP के विचारों और नारों की ‘नकल’ कर रहे हैं । TPP खुद को इस वैचारिक बदलाव का मूल प्रवर्तक बताती है, जिसने सबसे पहले ‘मीनिंगफुल चेंज’ की बात की थी । यह वैचारिक युद्ध इसलिए मायने रखता है क्योंकि दोनों ही ताकतें खुद को पारंपरिक राजनीति से अलग एक ‘स्वच्छ विकल्प’ के रूप में पेश कर रही हैं। PK खुद भी दावा करते हैं कि उनके उम्मीदवार ईमानदार और योग्य हैं, जबकि उनके विरोधी बालू माफिया, शराब माफिया और दंगाई हैं । लेकिन TPP का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली हमला PK के इसी ‘स्वच्छ राजनीति’ के दावे पर है। पुष्पम प्रिया ने आरोप लगाया है कि PK ने अपनी पहली उम्मीदवार सूची में अपराधियों को टिकट दिया है , जो उनके दावों को खोखला साबित करता है। यह आरोप दस्तावेज़ी साक्ष्यों पर भी आधारित है, क्योंकि बिहार उपचुनावों के विश्लेषण से पता चला था कि जन सुराज के 4 में से 3 उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड था “। यह मुद्दा TPP को नैतिक रूप से उच्च आधार प्रदान करता है, जिससे वह खुद को प्रशांत किशोर के मुकाबले ‘ईमानदार विकल्प’ के तौर पर स्थापित कर सकती है।

गठबंधन से इनकार: अकेले सफर का जोखिम और 2030 का निवेश

पुष्पम प्रिया चौधरी की राजनीतिक विचारधारा का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ यह है कि वह बड़े राजनीतिक गठबंधनों से पूरी तरह दूर रहती हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि बिहार की राजनीति में ‘तीसरे मोर्चे’ की कोई जगह नहीं है , और उनकी पार्टी किसी भी परिस्थिति में NDA या महागठबंधन—दोनों में से किसी के साथ भी—गठबंधन नहीं करेगी । यह ‘अकेले चलो’ की नीति उनकी दीर्घकालिक सोच को दर्शाती है, जहाँ 2025 का चुनाव सत्ता पाने का अंतिम लक्ष्य नहीं, बल्कि एक मज़बूत वैचारिक विचारधारा स्थापित करने का एक ‘निवेश’ है। यह नीति TPP को उन अस्थिर और अवसरवादी गठबंधनों के ऐतिहासिक जाल से बचाती है। हालाँकि, इसका एक बड़ा जोखिम यह है कि बिहार की द्विपक्षीय (Bipolar) राजनीतिक व्यवस्था में यह नीति TPP को ‘वोट कटवा’ की भूमिका तक सीमित कर सकती है, जिससे वह सीटों के मामले में अप्रासंगिक हो सकती है। लेकिन TPP का उद्देश्य केवल सीटें जीतना नहीं है। उनकी सफलता का मापदंड इस बात में होगा कि क्या वे बिहार की राजनीतिक बहस को पारंपरिक जातिगत आधार से हटाकर ‘विकास’, ‘स्वच्छता’, और ‘महिला प्रतिनिधित्व’ के मुद्दों पर केंद्रित कर पाती हैं। PPC की रणनीति 2030 के चुनावों के लिए एक मजबूत ब्रांड पहचान स्थापित करेगी, जब पारंपरिक राजनीतिक ताक़तें शायद और कमज़ोर हो चुकी होंगी, और TPP एक अनछुआ, वैचारिक रूप से मजबूत विकल्प बनकर सामने आ सकती है।

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