हर साल दिवाली और छठ पूजा के समय, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में रहने वाले लाखों बिहारी लोग अपने गाँव लौटना चाहते हैं। यह उनके लिए एक ज़रूरी सामाजिक और सांस्कृतिक यात्रा है । लेकिन इसी समय, ट्रेन और फ़्लाइट के किराए इतने ज़्यादा बढ़ जाते हैं कि यह यात्रा, ख़ासकर गरीब प्रवासी मज़दूरों के लिए, एक बड़ी मुसीबत बन जाती है । एक तरफ़ तो बिहार को गरीब राज्य माना जाता है, वहीं दूसरी तरफ़ त्योहारों पर वहाँ जाने का खर्च सबसे ज़्यादा होता है। यह संकट सिर्फ़ भारी भीड़ का नहीं है, बल्कि किराए को बढ़ाने वाली नीतियों का नतीजा है, जिससे यात्रियों का शोषण होता है।

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किराए में भारी बढ़ोतरी का सच और वित्तीय मार
त्योहारी मौसम में यात्रा की कीमतें आम दिनों की तुलना में कई गुना बढ़ जाती हैं। आमतौर पर, दिल्ली से पटना के लिए स्लीपर क्लास का किराया लगभग ₹515 से ₹670 और AC 3-टियर का किराया ₹1,320 से ₹1,740 के आस-पास रहता है ।
लेकिन त्योहार के दौरान कीमतें आसमान छूती हैं। हवाई जहाज़ का किराया ₹10,000 से शुरू होकर ₹21,000 तक पहुँच जाता है , जो सामान्य किराए से 2 से 4 गुना ज़्यादा है। यहाँ तक कि दिल्ली-पटना रूट पर प्राइवेट AC स्लीपर बसों का किराया भी ₹4,750 से ज़्यादा हो जाता है । यह बढ़ती कीमत प्रभावी रूप से गरीब यात्रियों पर एक वार्षिक “गरीबी टैक्स” की तरह काम करती है, क्योंकि यह उनकी बचत का बड़ा हिस्सा ख़त्म कर देती है ।
प्रीमियम तत्काल (PT): मजबूरी का सौदा
भारतीय रेलवे ने हवाई जहाज़ कंपनियों के समान गतिशील मूल्य निर्धारण (Dynamic Pricing) का तरीका अपनाया है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है प्रीमियम तत्काल (Premium Tatkal – PT) कोटा। प्रीमियम तत्काल में सीटें जैसे-जैसे बिकती हैं, उनका किराया बढ़ता जाता है, यानी ‘जितनी ज़्यादा माँग, उतना ज़्यादा दाम’ ।
यह सिस्टम उन लोगों को निशाना बनाता है जो अपनी कम आमदनी या काम की अनिश्चितता के कारण 120 दिन पहले टिकट बुक नहीं कर पाते हैं। वे मजबूरी में आखिरी वक़्त में इस महँगे कोटे का सहारा लेते हैं। रेलवे का यह तरीका, जिसमें वह एकाधिकार (Monopoly) होने के बावजूद एक ‘निजी कंपनी’ की तरह काम करती है , प्रवासी मज़दूरों की सामाजिक ज़रूरत को ऊँचे मुनाफ़े वाले बिज़नेस में बदल देता है । इसके अलावा, कन्फर्म प्रीमियम तत्काल टिकट रद्द करने पर कोई रिफंड (पैसा वापस) नहीं मिलता । यह नियम उन मज़दूरों पर बड़ा वित्तीय जोखिम डालता है जिनकी यात्रा आखिरी वक़्त में बदल सकती है।
रेलवे के प्रयास और क्षमता में कमी
भीड़ को संभालने के लिए रेलवे हर साल प्रयास करती है। उत्तरी रेलवे ने पिछले साल के मुक़ाबले लगभग 23% ज़्यादा, यानी 4,718 स्पेशल ट्रेन यात्राएँ चलाने की घोषणा की है । इसके अलावा, 2,70,532 अतिरिक्त सीटें और बर्थ बनाई गई हैं । इनमें से 1,76,400 सीटें जनरल क्लास (सस्ती) के लिए हैं, जो दिखाता है कि रेलवे किफायती यात्रा पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
परिणाम: इतनी कोशिशों के बावजूद भी, दिल्ली से बिहार जाने वाली कई महत्वपूर्ण ट्रेनें (जैसे श्रमजीवी एक्सप्रेस, मगध एक्सप्रेस, और पीएनबीई फेस्टिवल स्पेशल) पूरी तरह से फुल हैं और उनमें लंबी वेटिंग लिस्ट चल रही है । इसका मतलब है कि मौसमी मांग में वृद्धि की दर संरचनात्मक रूप से अवसंरचना वृद्धि की दर से कहीं ज़्यादा है।
मजबूरी में अपनाया गया नया रास्ता: कार-पूलिंग
सरकारी और निजी परिवहन, दोनों में बेतहाशा महँगाई के कारण यात्रियों ने अनौपचारिक समाधान ढूँढ लिए हैं। अब हज़ारों प्रवासी मज़दूरों ने ट्रेन और महँगी बसों को छोड़कर कार-पूलिंग (Car-Pooling) और साझा SUV बुक करना शुरू कर दिया है। एक्सप्रेसवे अब उनके लिए त्योहारों पर घर जाने की “नई जीवनरेखा” बन गए हैं । लखनऊ से पटना जैसे लोकप्रिय मार्गों पर भी प्राइवेट एसी बसों का किराया ₹3,500 से ₹4,000 तक बढ़ जाता है ।
सरकारी हस्तक्षेप का सफ़ल उदाहरण (BSRTC मॉडल)
इस शोषणकारी बाज़ार के विपरीत, बिहार सरकार ने बिहार राज्य सड़क परिवहन निगम (BSRTC) के माध्यम से एक सफल नीतिगत उदाहरण पेश किया है। सरकार ने दिल्ली-पटना AC बस के किराए में सीधे सब्सिडी दी।
- सब्सिडी का असर: दिल्ली-पटना AC बस का वास्तविक किराया ₹1,873 था, लेकिन सरकार ने प्रति यात्री ₹619 का भार उठाकर किराया ₹1,254 पर तय कर दिया ।
यह मॉडल एक महत्वपूर्ण बेंचमार्क प्रदान करता है, जो दर्शाता है कि प्रत्यक्ष सरकारी सब्सिडी और भागीदारी के माध्यम से प्रवासी श्रमिकों के लिए सस्ती और गुणवत्तापूर्ण यात्रा प्रदान करना संभव है, जिससे उनका शोषण रोका जा सके ।
मजबूरी में अपनाया गया नया रास्ता: कार-पूलिंग
सरकारी और निजी परिवहन, दोनों में बेतहाशा महँगाई के कारण यात्रियों ने अनौपचारिक समाधान ढूँढ लिए हैं। अब हज़ारों प्रवासी मज़दूरों ने ट्रेन और महँगी बसों को छोड़कर कार-पूलिंग (Car-Pooling) और साझा SUV बुक करना शुरू कर दिया है। एक्सप्रेसवे अब उनके लिए त्योहारों पर घर जाने की “नई जीवनरेखा” बन गए हैं । लखनऊ से पटना जैसे लोकप्रिय मार्गों पर भी प्राइवेट एसी बसों का किराया ₹3,500 से ₹4,000 तक बढ़ जाता है ।
इस वार्षिक संकट को ख़त्म करने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए साहसिक नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है:
- किराए पर अधिकतम सीमा (Price Capping): त्योहारों के दौरान सभी कन्फर्म ट्रेन टिकटों पर अधिकतम किराए की सीमा (उदाहरण के लिए, सामान्य किराए का 1.5 गुना) लगाने के लिए सरकारी अधिदेश (mandate) लागू किया जाना चाहिए।
- रियायती कोटा: सरकार को प्रवासी मज़दूरों के लिए ट्रेनों में एक समर्पित, सब्सिडी वाला कोटा (Subsidized Quota) स्थापित करना चाहिए, जैसा कि BSRTC बस मॉडल में किया गया है ।
- लचीली टिकटिंग (Flexible Tickets): रेलवे को ऐसी सुविधा देनी चाहिए कि यात्री अपना कन्फर्म टिकट रद्द किए बिना यात्रा की तारीख या ट्रेन बदल सकें । उन्हें सिर्फ़ किराए का अंतर (अगर कोई हो) चुकाना पड़े। यह सुविधा प्रवासी मज़दूरों की अनिश्चित काम की समय सारणी के लिए बहुत ज़रूरी है।
- प्राइवेट बसों का नियमन: निजी बस ऑपरेटरों के लिए भी त्योहारों के दौरान कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकतम किराया सीमा तय की जानी चाहिए, ताकि वे यात्रियों की अत्यावश्यक आवश्यकता का शोषण न कर सकें ।














