मिट्टी के खुरदुरे मैदान पर नंगे पैर दौड़ती लड़कियां, जिन्होंने कभी ‘रग्बी’ शब्द भी नहीं सुना था। आज वे एशिया में भारत का परचम लहरा रही हैं। यह कहानी सिर्फ एक खेल की नहीं, बल्कि उन लड़कियों के हौसले की है जिन्होंने समाज की दीवारें तोड़कर अपने सपनों को हकीकत में बदल दिया।

शुरुआती संघर्ष
नवादा, बाढ़, सुपौल, नालंदा – बिहार के ये छोटे गांव और कस्बे, जहां लड़कियों के लिए घर की चौखट से आगे निकलना ही एक जंग है। इन्हीं जगहों से निकली हैं वे लड़कियां जो आज भारतीय रग्बी की रीढ़ बन चुकी हैं।
स्वीटी कुमारी की कहानी बाढ़ के नवादा गांव से शुरू होती है। बैंक एजेंट पिता और आंगनवाड़ी सेविका मां की बेटी स्वीटी को 14 साल की उम्र में पहली बार रग्बी के बारे में पता चला। जब उसने दौड़ने के लिए शॉर्ट्स पहने, तो गांव में तूफान आ गया – “लड़कियां ऐसे कपड़े नहीं पहनती हैं!” लेकिन पिता ने साथ दिया और आज स्वीटी ‘एशिया की सबसे तेज़ खिलाड़ी’ कहलाती हैं।
श्वेता शाही की कहानी तो और भी अनोखी है। नालंदा के भदारी गांव की किसान की बेटी श्वेता ने पिता के फोन पर YouTube खोला और रग्बी के वीडियो देखकर मंत्रमुग्ध हो गई। घंटों वीडियो देखती, खिलाड़ियों की नकल करती। कोच नहीं था, तो पिता ने कोच का काम किया। इंग्लैंड के स्टार डैन नॉर्टन को देखकर उसने अपनी स्पीड में सुधार किया। हर सुबह 6 किलोमीटर साइकिल चलाकर पत्थरों भरे मैदान तक जाती थी प्रैक्टिस के लिए।
अंशु कुमारी सुपौल के मिठाई विक्रेता की बेटी हैं। महज दो साल की मेहनत में उन्होंने जिला स्तर से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान बना ली। 2025 में उन्हें भारतीय U-18 टीम का कप्तान बनाया गया।
सलोनी कुमारी फेरीवाले की बेटी हैं और अल्पना कुमारी ने सड़क दुर्घटना और कॉलरबोन फ्रैक्चर के बावजूद हर बार मैदान में वापसी की। “चोटें आती-जाती रहती हैं, लेकिन हौसला नहीं टूटना चाहिए,” अल्पना कहती हैं।
संसाधनों की कमी: जब हौसले ने सब कुछ पूरा किया
बिहार में न तो ढंग के मैदान थे, न ही उपकरण। स्वीटी कोचों से कहती थीं – “मुझे स्पाइक्स उधार दे दीजिए, मैं जीतकर साबित कर दूंगी कि मैं उन्हें डिज़र्व करती हूं”। श्वेता के पिता ने अपनी फसल समय से पहले बेच दी ताकि बेटी के टूर्नामेंट का खर्च निकल सके।लेकिन पिछले तीन सालों में ASMITA लीग ने सब कुछ बदल दिया। यह खेलो इंडिया की पहल है जो जमीनी स्तर पर प्रतिभाओं की पहचान करती है। 2025 में बिहार की स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के 12 में से 10 खिलाड़ी ASMITA लीग से आई हैं।
व्यक्तिगत कहानियां: टर्निंग पॉइंट्स
स्वीटी: भारत की ‘स्कोरिंग मशीन’
2019 में स्वीटी को ‘इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ द ईयर’ चुना गया। फिलीपींस के खिलाफ मैच में उन्होंने 6 डिफेंडरों को पीछे छोड़ते हुए ट्राई स्कोर किया। सिंगापोर के खिलाफ भारत ने अपनी पहली टेस्ट मैच जीत दर्ज की, और स्वीटी ने दो शानदार ट्राई किए।”जब मैं शॉर्ट्स पहनकर निकली, तो गांव वालों ने कहा – कौन शादी करेगा तुमसे? लेकिन आज वही लोग ऑटोग्राफ मांगने आते हैं,” स्वीटी मुस्कुराती हैं।
श्वेता: YouTube से सीखकर बनी एशियन गेम्स की खिलाड़ी
2013 में श्वेता बिहार से राष्ट्रीय कैंप के लिए चुनी गई एकमात्र लड़की थीं। 2023 में 17 साल बाद बिहार से किसी खिलाड़ी को एशियन गेम्स के लिए चुना गया – वो थीं श्वेता।वर्ल्ड रग्बी ने श्वेता को अपनी ग्लोबल कैंपेन ‘अनस्टॉपेबल्स’ के लिए चुना – 15 महिलाओं की वैश्विक टीम जिन्होंने बड़ी बाधाओं को पार किया। “मुझे कभी नहीं लगा था कि YouTube से सीखी हुई चीज़ मुझे इतना आगे ले जाएगी,” श्वेता भावुक होकर कहती हैं।आज श्वेता नालंदा में 100 खिलाड़ियों को मुफ्त में रग्बी कोचिंग देती हैं। “अगर मैं आगे बढ़ी हूं, तो मेरी जिम्मेदारी है कि और लड़कियों को भी आगे लाऊं,” वह कहती हैं।
अंशु: मिठाई विक्रेता की बेटी से भारतीय कप्तान तक
2025 में अंशु को एशिया रग्बी एमिरेट्स U-18 चैंपियनशिप के लिए कप्तान बनाया गया। “यह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है। हम बिना किसी भय के मैदान में उतरेंगे,” कप्तान बनने के बाद अंशु ने कहा।पिता पवन कुमार की आंखों में गर्व झलकता है – “अंशु ने कठिनाइयों के बावजूद यह मुकाम हासिल किया। उसकी सफलता युवा पीढ़ी को प्रेरणा देगी”।
मैदान पर सफलता: 2025 का स्वर्णिम वर्ष
अप्रैल 2025 में गुवाहाटी में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप के फाइनल में बिहार ने ओडिशा को 21-12 से हराया। यह बिहार का दूसरा राष्ट्रीय खिताब था।मई 2025 में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में बिहार की लड़कियों ने ओडिशा को 22-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। उसी शाम लड़कों ने भी गोल्ड जीता – बिहार ने पहली बार डबल गोल्ड जीता।जुलाई 2025 में देहरादून में U-18 चैंपियनशिप में बिहार ने फिर से डबल खिताब जीता।अगस्त 2025 में राजगीर में पहली बार बिहार ने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट की मेजबानी की – एशिया रग्बी U-20 सेवेंस चैंपियनशिप। भारतीय महिला टीम ने कांस्य पदक जीता, जिसमें बिहार के 6 खिलाड़ी थे।
सामाजिक प्रभाव: जब गांव की सोच बदल गई
“पहले गांव वाले कहते थे – लड़कियों को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए। अब वही लोग अपनी बेटियों को रग्बी सिखाने लाते हैं,” स्वीटी कहती हैं।श्वेता बताती हैं, “मेरे गांव में लड़कियां 16-17 साल में शादी कर लेती थीं। अब वे कहती हैं – हम भी श्वेता दीदी जैसा बनना चाहते हैं”।बिहार रग्बी एसोसिएशन के सचिव पंकज कुमार ज्योति कहते हैं, “2017-19 में सिर्फ एक-दो लड़कियां बिहार से राष्ट्रीय टीम में जाती थीं। आज 12 में से 3-5 खिलाड़ी बिहार से हैं”।बिहार सरकार की ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ योजना ने खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियां दीं। 2024 में श्वेता शाही को सब-इंस्पेक्टर की नौकरी मिली। 2025 तक 77 खिलाड़ियों को नौकरी मिल चुकी है।यह सिर्फ नौकरी नहीं है, यह सम्मान है। यह साबित करता है कि खेलकर भी हम अपना भविष्य बना सकते हैं,” एक खिलाड़ी कहती हैं।
भविष्य की राह
जब अंशु, सलोनी और अल्पना को खेलो इंडिया में गोल्ड मेडल मिला, तो उनकी आंखों में आंसू थे। “यह गोल्ड हर उस लड़की का है जो सीमाओं से परे सपने देखने की हिम्मत करती है”।”मेरा सपना है 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में खेलना। भारत को रग्बी में पहला ओलंपिक मेडल दिलाना,” अंशु की आंखों में चमक है।स्वीटी कहती हैं, “हमने भारत की पहली टेस्ट जीत दिलाई। अब हम दुनिया में जाना चाहते हैं। अगर किसी में टीम को ऊंचाई पर ले जाने की ताकत है, तो वह हम बिहार की लड़कियां हैं”।बिहार सरकार ने कदम उठाना शुरू कर दिया है। खेल बजट 30 करोड़ से बढ़कर 680 करोड़ रुपये हो गया है। राजगीर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं बन रही हैं। ASMITA लीग जमीनी स्तर पर प्रतिभाओं की पहचान कर रही है।
ये लड़कियां केवल ट्राई नहीं करतीं, ये रूढ़ियों की दीवारों को तोड़कर एक नया इतिहास लिख रही हैं। मिट्टी के मैदानों से निकली ये बेटियां आज एशिया में भारत का सिर ऊंचा कर रही हैं। उनकी कहानी सिर्फ रग्बी की नहीं – यह हौसले, संघर्ष, और अटूट इरादों की कहानी है।जैसा कि अंशु ने कहा – “यह सिर्फ शुरुआत है। ASMITA ने नींव रखी है, खेलो इंडिया ने मंच दिया है, और अब बिहार की बेटियां एक उज्ज्वल भविष्य की ओर दौड़ रही हैं”।














