भारत के पूर्वी राज्यों—बिहार और झारखंड—की रसोई में एक ऐसी सुगंध है जो केवल त्योहारों पर ही नहीं, बल्कि हर यात्रा और हर याद में बसती है। यह सुगंध है Thekua की। जिसे खजूरिया (Khajuria) या ठोकुआ (Thokwa) भी कहा जाता है , यह केवल एक मीठा पकवान नहीं है; यह सदियों पुरानी विरासत, आस्था और प्रेम से तैयार किया गया एक कुरकुरा निमंत्रण है।
जब भी हम Thekua को देखते हैं, हमें तुरंत छठ पूजा (Chhath Puja) के शुद्ध प्रसाद की याद आ जाती है । लेकिन इस साधारण सी दिखने वाली Cookie का इतिहास जितना गहरा है, उतना ही समृद्ध इसका स्वाद भी है।

इतिहास की गहराई: 3700 साल पुरानी विरासत
क्या आप जानते हैं कि Thekua का इतिहास लगभग 3,700 साल पुराना है? इसकी जड़ें ऋग्वैदिक काल (Rigvedic period) (1500-1000 ईसा पूर्व) तक जाती हैं, जहाँ इसे ‘आपूपा’ (Apupa) के नाम से जाना जाता था । शुरुआत में, यह गेहूं के आटे, गुड़, घी और दूध से बनाया जाता था और इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाने से पहले इसके Medicinal benefits के लिए इस्तेमाल किया जाता था ।
समय के साथ, इस नुस्खे में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया: दूध को हटा दिया गया । यह बदलाव साधारण नहीं था; यह Thekua को लंबी यात्रा और त्योहारों के लिए एकदम सही बनाने की कारीगरी थी। दूध निकालने से नमी कम हो गई, और Thekua एक महीने तक चलने वाला , अत्यंत टिकाऊ और यात्रा के लिए आदर्श मिठाई बन गया । यही गुण इसे आज भी खास बनाता है।
आस्था का केंद्र: छठ पूजा का प्रसाद
Thekua का सबसे गहरा भावनात्मक जुड़ाव छठ पूजा से है । यह चार दिवसीय महापर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है । इस दौरान, भक्त 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत (Nirjala Vrat)—पानी की एक बूँद भी नहीं—रखते हैं । इस कठोर तपस्या के बाद, Thekua एक साधारण प्रसाद नहीं रहता; यह व्रत करने वालों को फिर से शक्ति देने वाला, पोषण से भरपूर भोजन बन जाता है ।
Thekua बनाने की प्रक्रिया भी आस्था से भरी है। इसकी पहचान है इस पर बने सुंदर, पारंपरिक नक्काशीदार पैटर्न । आटे को लकड़ी के साँचे (Saancha) पर जोर से दबाकर इन कलाकृतियों को उकेरा जाता है । माना जाता है कि इसी ‘ठोकने’ या ‘दबाने’ की क्रिया से इसका नाम ‘Thekua’ पड़ा । हर साँचे में उकेरा गया Pattern क्षेत्रीय कला और परंपरा का प्रतीक होता है, जो इसे सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान देता है।
स्वाद का विज्ञान: ‘मोयन’ की तकनीक
Thekua का Crispy बाहर और अंदर से नरम (Soft) होना, इसकी बनावट का जादू है । यह जादू छुपा है इसकी तैयारी के विज्ञान में—जिसे ‘Moyan‘ कहते हैं ।
Moyan का मतलब है आटे में घी (Fat) को मिलाना । पारंपरिक रूप से, गर्म घी को सूखे आटे में मिलाकर अच्छी तरह रगड़ा जाता है, जब तक कि वह ‘Breadcrumb‘ जैसा न दिखने लगे । गेहूं के आटे में मौजूद Gluten जब पानी के संपर्क में आता है, तो वह पकवान को सख्त और रबर जैसा बना सकता है। लेकिन Moyan की तकनीक में, घी के कण आटे के Protein को घेर लेते हैं । इससे जब गुड़ का गाढ़ा घोल मिलाया जाता है, तो Gluten पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता, और हमें वह वांछित खस्तापन और नरम, भुरभुरी बनावट मिलती है ।
गुड़ का Syrup धीरे-धीरे मिलाया जाता है ताकि आटा एकदम कड़ा और कसकर गूंथा जाए । अंत में, तलने (Deep Frying) का तरीका भी खास है—इसे धीमी या मध्यम-धीमी आँच पर पकाया जाता है । यह धीमी प्रक्रिया Thekua के अंदर की सारी नमी को भाप बनाकर उड़ा देती है । इसी नमी नियंत्रण के कारण Thekua खराब नहीं होता और एक महीने तक ताज़ा बना रहता है ।
बदलते स्वाद और सेहत का ध्यान
पारंपरिक Thekua हमेशा साबुत गेहूं के आटे (Atta) और गुड़ (Gud) से बनता है । गुड़ इसे एक गहरा, मिट्टी जैसा (Earthy) और पौष्टिक स्वाद देता है । हालांकि, आज लोग स्वाद और बनावट के आधार पर कई तरह के बदलाव करते हैं :
- चीनी का प्रयोग: कुछ लोग गुड़ की जगह चीनी का इस्तेमाल करते हैं। चीनी से बना Thekua अक्सर हल्का, मीठा और ज्यादा कुरकुरा होता है ।
- सूजी का मिश्रण: सूजी (Sooji या Semolina) मिलाने से Thekua में दानेदार बनावट और एक अतिरिक्त Crunch आ जाता है ।
- Baked Thekua: सेहत के प्रति जागरूक लोगों के लिए अब Baked Thekua भी एक बेहतरीन विकल्प बन गया है । यह तेल में तले हुए Thekua की तुलना में वसा (Fat) में कम होता है ।
Thekua सही मायने में एक ‘प्राचीन भारतीय Cookie‘ है, जो हर बार हमें बताता है कि कैसे हमारे पूर्वजों ने पोषण, स्वाद और लंबी Shelf Life को एक ही पकवान में कुशलता से बांध दिया था । यह विरासत आज भी हमारे त्योहारों और हमारे दिलों में जिंदा है।


















