बिहार की राजनीति में संजय कुमार झा का नाम आज जनता दल यूनाइटेड(JDU) के सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में लिया जाता है। मधुबनी के एक छोटे से गांव अररिया संग्राम से निकलकर राज्यसभा और जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष तक पहुंचने की उनकी यात्रा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। लेकिन इस सफर में सिर्फ महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि निष्ठा, त्याग और दूरदर्शिता की भी कहानी है।

JNU से झंझारपुर तक: शुरुआती दिन
1 दिसंबर 1967 को झंझारपुर के एक साधारण मैथिल ब्राह्मण परिवार में जन्मे संजय कुमार झा ने अपनी पढ़ाई जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से मध्यकालीन इतिहास में की। जेएनयू उस दौर में राजनीतिक विचारों का केंद्र था, और झा की राजनीतिक समझ भी यहीं तैयार हुई। विश्वविद्यालय से लौटने के बाद उन्होंने बिहार में भाजपा के साथ अपना राजनीतिक सफर शुरू किया।
उनकी पत्नी Enakshi Jha से 1993 में शादी हुई और तीन बच्चे हैं। उनकी दोनों बेटियां – सत्या झा और आद्या झा – कानून की पढ़ाई कर चुकी हैं। सत्या ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से और आद्या ने हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम किया है। अक्टूबर 2024 में दोनों को केंद्र सरकार ने एक ही दिन सर्वोच्च न्यायालय में ग्रुप ए पैनल काउंसल नियुक्त किया, जिस पर राजद ने नेपोटिज्म के आरोप लगाए।
अरुण जेटली का साया और JDU में प्रवेश
2004-05 में संजय झा भाजपा में शामिल हुए और जल्द ही अरुण जेटली के करीबी बन गए। उस समय बिहार में भाजपा-जेडीयू का गठबंधन था और झा दोनों पार्टियों के बीच बैकचैनल की भूमिका निभाते थे। 2006 में उन्हें भाजपा के सदस्य के रूप में विधान परिषद के लिए चुना गया।
लेकिन 2009 में दरभंगा से लोकसभा टिकट नहीं मिलने पर वह नीतीश कुमार के और करीब आ गए। जुलाई 2012 में उन्होंने औपचारिक रूप से जेडीयू ज्वाइन किया। यह निर्णय उस समय बड़ा माना गया क्योंकि उन्होंने पार्टी बदलने के लिए अपनी विधान परिषद की सदस्यता छोड़ दी और अगले सात साल तक कोई पद नहीं मिला।
2014 का दान: जब राजनीति भुला दी गई
संजय झा की राजनीतिक यात्रा में एक घटना उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है। सितंबर 2014 में, जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं थे (जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री थे), जब JDU का भविष्य अंधकार में था और झा खुद विधान परिषद के सदस्य भी नहीं थे, तब उन्होंने अपनी पैतृक 1.90 एकड़ जमीन (कीमत लगभग 7 करोड़ रुपये) मधुबनी जिले में एक सरकारी अस्पताल के लिए दान कर दी।
इस दान को लेकर उन्होंने कहा कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी थी और राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए एक ट्रॉमा सेंटर बेहद जरूरी था। स्वास्थ्य विभाग की योजना के अनुसार, जमीन दान करने वाले को अस्पताल का नाम तय करने का अधिकार मिलता है, और झा ने अपने परदादा मुरली भेदी झा के नाम का प्रस्ताव दिया।
यह घटना झा के चरित्र की सबसे बड़ी पहचान बन गई। जब अधिकांश नेता अपनी संपत्ति बढ़ाने में लगे होते हैं, झा ने अपनी करोड़ों की जमीन समाज के लिए दान कर दी – वह भी तब जब उन्हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला था।
जल संसाधन मंत्री: बाढ़ से जूझता बिहार
जून 2019 में संजय झा को बिहार सरकार में जल संसाधन विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। यह जिम्मेदारी किसी चुनौती से कम नहीं थी। बिहार के 38 में से 28 जिले बाढ़ग्रस्त हैं और 15 गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। उत्तरी बिहार की 76% आबादी बाढ़ से प्रभावित होती है।
बाढ़ प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
अगस्त 2021 में झा ने “बिहार में बाढ़ प्रबंधन और सिंचाई सुधार पर पुनर्विचार” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया, जिसमें नेपाल, इटली और दुनिया भर के विशेषज्ञों ने भाग लिया। उन्होंने स्वीकार किया कि “बिहार की सघन आबादी और सीमित भूमि के कारण हम दुनिया में इस्तेमाल की जाने वाली कई तकनीकें जैसे स्पंज सिटी या बड़े जलाशय नहीं बना सकते।”
राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति की मांग
दिसंबर 2022 में झा ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति (National Silt Management Policy) जल्द लागू करने की मांग की। उन्होंने कहा, “गंगा नदी पर बने कई बांधों और बैराजों ने बिहार में बाढ़ की समस्या को बढ़ा दिया है। हिमालय से आने वाली नदियों में भारी मात्रा में पानी आना प्राकृतिक है, लेकिन नदी तल में भारी गाद जमाव ही हमारे मैदानों में बाढ़ का मुख्य कारण है।”
झा ने बिहार में नदियों को आपस में जोड़ने की योजना पर भी जोर दिया। उन्होंने केंद्र से बागमती, कमला और कोसी बेसिन को उत्तरी बिहार में और पुनपुन, किऊल हरोहर बेसिन को जोड़ने की मंजूरी मांगी। कोसी-मेची नदी जोड़ो परियोजना को वह बाढ़ और सिंचाई समस्या का स्थायी समाधान मानते हैं।
गंगा जल आपूर्ति योजना: एक अनूठी पहल
झा की सबसे प्रमुख उपलब्धि 4,500 करोड़ रुपये की गंगा जल आपूर्ति योजना (हर घर गंगाजल) है। इस अनूठी परियोजना में गंगा के बाढ़ के अतिरिक्त पानी को मोकामा (पटना) से लिफ्ट करके 151 किलोमीटर की पाइपलाइन के जरिए राजगीर, गया, बोधगया और नवादा जैसे पानी की कमी वाले शहरों में पीने के पानी के रूप में पहुंचाया जाता है।
नवंबर 2022 में नीतीश कुमार ने इस परियोजना का उद्घाटन किया और इसे “भारत में पहली बार” बताया। इस अनूठी पहल के लिए 2022 में बिहार सरकार को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2022 में सर्वश्रेष्ठ राज्य की श्रेणी में तीसरा स्थान मिला।
मिथिला हाट: गांव को पर्यटन स्थल बनाना
संजय झा ने अपने पैतृक गांव अररिया संग्राम को एक पर्यटन केंद्र में बदलने का सपना देखा। राष्ट्रीय राजमार्ग-57 पर 26 एकड़ में फैला ‘मिथिला हाट’ दिल्ली हाट की तर्ज पर बनाया गया है।
जनवरी 2023 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका उद्घाटन किया। यहां 50 आधुनिक दुकानें, फूड कोर्ट, ओपन एयर थिएटर, वाटरफॉल, पार्किंग और बोटिंग की सुविधा है। मधुबनी पेंटिंग, सिक्की कला, लकड़ी की कला और भागलपुरी सिल्क की दुकानें मिथिला की संस्कृति को जीवंत रखती हैं।
आज मिथिला हाट हर दिन 4,000-5,000 पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह स्थानीय कारीगरों को रोजगार देने के साथ-साथ मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर ले जा रहा है।
नीतीश कुमार का विश्वासपात्र और भाजपा से सेतु
संजय झा को नीतीश कुमार का “man Friday” कहा जाता है। जनवरी 2024 में नीतीश कुमार को दोबारा एनडीए में लाने में झा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इंडिया गठबंधन की मुंबई बैठक में नीतीश को राष्ट्रीय संयोजक नहीं बनाने के बाद झा ने समझा कि नीतीश के लिए भाजपा के साथ रहना बेहतर है।
2024 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू की 12 सीटें जीतने की सफलता को झा की रणनीति का परिणाम माना जाता है। एक जेडीयू नेता ने कहा, “आरसीपी सिंह ने राष्ट्रपति पद छोड़कर मोदी कैबिनेट में मंत्री बनना चुना। लालन सिंह के कार्यकाल में भाजपा-जेडीयू संबंध बिगड़े। लेकिन झा ने अपने दोहरे मंत्रिपद छोड़कर राज्यसभा जाना स्वीकार किया ताकि दिल्ली में रहकर दोनों पार्टियों के बीच संबंधों को सुचारू रख सकें।”
JDU के पहले कार्यकारी अध्यक्ष
जून 2024 में झा को जेडीयू का पहला राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। यह पद पहले कभी नहीं बना था, और इसका निर्माण ही झा के लिए किया गया। यह नियुक्ति नीतीश कुमार के झा पर पूरे भरोसे का संकेत है।
सितंबर 2024 में एक रिपोर्ट के अनुसार, “झा अब जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद दूसरी सबसे शक्तिशाली शख्सियत बन चुके हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि झा को केंद्रीय अधिकार के रूप में देखा जा रहा है और नीतीश खुद उनके फैसलों का समर्थन करते हैं।”
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में टिकट वितरण जैसे अहम मामले में झा की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है। एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने कहा, “इस समय जेडीयू में हर नेता संजय झा को खुश रखने के लिए कमर कस रहा है, क्योंकि उन्हें पता है कि उम्मीदवारों की अंतिम सूची तैयार करते समय झा की सिफारिश का असाधारण वजन होगा।”
ऑपरेशन सिंदूर: अंतरराष्ट्रीय मंच पर बिहार का चेहरा
मई 2025 में पहलगाम हमले के बाद केंद्र सरकार ने संजय झा के नेतृत्व में एक सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और जापान भेजा।
झा ने कहा, “हमारा काम पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने लाना है कि वह कैसे राज्य-प्रायोजित आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। आज भारत है, कल आप हो सकते हैं। इसलिए तटस्थ मत बनिए। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सभी के लिए है।”
विदेश मंत्री जयशंकर से मुलाकात के बाद झा ने बताया, “सबसे मजबूत संदेश जो हमने विश्व स्तर पर भेजा वह यह था कि भारत एकजुट है। जब मैंने बताया कि प्रतिनिधिमंडल में केरल, असम, बंगाल, गुजरात से और विभिन्न दलों के सदस्य हैं, तो इससे यह संकेत गया कि पूरा राष्ट्र और राजनीतिक स्पेक्ट्रम एक स्वर में बोल रहा था।”
संसदीय समिति के अध्यक्ष और संसद में हस्तक्षेप
सितंबर 2024 में झा को परिवहन, पर्यटन और संस्कृति की संसदीय स्थायी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। यह समिति सड़क, नागरिक उड्डयन, शिपिंग, पर्यटन और संस्कृति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाती है।
जुलाई 2024 में राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने पहले भाषण में झा ने आपातकाल के इतिहास की याद दिलाई। उन्होंने बिहार में 2005 के राष्ट्रपति शासन का जिक्र किया और कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने तीसरी बार सरकार बनाई है।
अप्रैल 2025 में वक्फ संशोधन बिल पर उनका हस्तक्षेप चर्चा में रहा। उन्होंने कहा कि बिहार की मुस्लिम आबादी का 73% हिस्सा पसमांदा समुदाय से है और पहली बार उन्हें वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा।
विवाद और आलोचनाएं
जून 2025 में राजद ने झा की दोनों बेटियों को एक ही दिन सर्वोच्च न्यायालय में ग्रुप ए पैनल काउंसल नियुक्त करने पर नेपोटिज्म का आरोप लगाया। राजद सांसद मनोज कुमार झा ने कहा, “क्या पिछड़ा, दलित और अति पिछड़ा वर्ग से कोई बेहतर योग्य उम्मीदवार नहीं था? यह सीधे-सीधे नेपोटिज्म है।”
सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि सामान्यतः 10 साल के अनुभव वाले वकीलों को ग्रुप ए काउंसल के रूप में नियुक्त किया जाता है, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में अपवाद हो सकता है।
हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि झा की बेटियां उच्च शैक्षणिक योग्यता रखती हैं – दोनों ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, कोलकाता से कानून की पढ़ाई की और फिर स्टैनफोर्ड और हार्वर्ड से एलएलएम किया है।
नीतीश के बाद बिहार : Sanjay Kumar Jha झा का भविष्य
अक्टूबर 2025 में प्रकाशित एक विश्लेषण में कहा गया कि नीतीश कुमार के स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण धीरे-धीरे राजनीति से पीछे हटने की संभावना है। इस स्थिति में संजय झा को जेडीयू का भावी नेता माना जा रहा है।
हालांकि, चुनौतियां भी हैं। भाजपा बिहार में लगातार अपना विस्तार कर रही है और जेडीयू के परंपरागत वोट बैंक को अपनी ओर खींच रही है। 2025 के चुनाव में एनडीए ने भाजपा और जेडीयू दोनों को 101-101 सीटें दी हैं।
अक्टूबर 2025 में झा ने स्पष्ट किया, “नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे और हम उनके नेतृत्व में काम करेंगे।” लेकिन लंबे समय में, झा को जेडीयू को भाजपा के समक्ष एक मजबूत सहयोगी के रूप में बनाए रखना होगा, न कि भाजपा में समाहित होने देना होगा।
व्यक्तित्व: शांत, संयमित और दूरदर्शी
संजय झा की सबसे बड़ी खूबी उनका कम बोलना और ज्यादा काम करना है। वह मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं और अपनी छवि बनाने में विश्वास नहीं करते।
2021 में इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में उन्हें “लो-प्रोफाइल पूर्व भाजपा नेता जिन्हें नीतीश ने अपनी पसंदीदा सिंचाई परियोजना के लिए चुना” कहा गया था। रिपोर्ट में कहा गया, “झा सामाजिक सेवा और राजनीतिक समझ का दुर्लभ संयोजन हैं। वह जेडीयू में सबसे लंबे ब्राह्मण चेहरे के रूप में देखे जाते हैं।”
झा की वफादारी अद्वितीय है। 2013 में जब नीतीश ने भाजपा से संबंध तोड़े, 2014 में जेडीयू की करारी हार के बाद जब नीतीश ने इस्तीफा दिया, 2015 में जीतन राम मांझी के साथ संघर्ष के दौरान – हर मुश्किल समय में झा नीतीश के साथ खड़े रहे।
















