एक समय की बात है जब बिहार के मिथिला इलाके में भगवान श्रीकृष्ण रहते थे। उनके पास एक बहुत ही प्यारी और मेहनती बेटी थी जिसका नाम था सामा। सामा की माता का नाम जाम्बवती था और सामा का एक भाई भी था जिसका नाम था चकेवा (या साम्ब)।

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कहानी का मोड़
सामा का विवाह चक्रवाक नाम के एक अच्छे लड़के से हुआ। दोनों की शादी के बाद सामा और चक्रवाक वृंदावन में एक आश्रम में रहने लगे, वहीं कई महान ऋषि-मुनि भी रहते थे। एक दिन सामा का भाई चकेवा और उसका पति कहीं बाहर जाने वाले थे। उस दिन सामा आश्रम में रहने वाले ऋषियों से मिलने गई क्योंकि वह उन्हें सम्मान देना चाहती थी। लेकिन तभी वहीं पर एक चुगलखोर नाम का आदमी आ गया। उसने जो कुछ देखा, उसे गलत तरीके से समझ लिया। चुगलखोर बस झूठ फैलाना चाहता था। वह सीधे भगवान श्रीकृष्ण के पास दौड़ा गया और उन्हें झूठा आरोप लगा दिया। उसने कहा कि सामा का किसी के साथ अनुचित संबंध है, जो बिल्कुल झूठ था।
क्रोध और श्राप
यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण को बहुत क्रोध आ गया। वह यह अफवाह सुनकर इतने नाराज हो गए कि उन्होंने अपनी बेटी सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। फौरन ही सामा एक सुंदर पक्षी बन गई और वृंदावन के जंगलों में उड़ने लगी। जब सामा का पति चक्रवाक को पता चला कि उसकी प्रिय पत्नी एक पक्षी बन गई है, तो उसका दिल टूट गया। वह रो रो कर सामा के पास गया और सोच-विचार के बाद वह भी स्वेच्छा से पक्षी का रूप धारण कर लिया।
भाई की तपस्या
जब सामा का भाई चकेवा को यह सब पता चला, तो उसके लिए यह खबर बहुत दुखदायक थी। वह समझ गया कि कोई चुगलखोर अपनी बहन की बदनामी कर गया है और अब सामा को यह भारी सज़ा भुगतनी पड़ रही है।चकेवा ने सोच लिया कि भले ही भगवान का श्राप टलना मुश्किल है, पर एक तरीका है — तपस्या। वह भगवान को खुश करने के लिए कठोर तपस्या करने चला गया। दिन-रात, वर्षों तक वह तपस्या में लगा रहा। न सो, न खाना, बस भगवान का नाम लेता रहा। क्योंकि उसे अपनी बहन बहुत प्यारी थी।
खुशी की बात
चकेवा की तपस्या और भाई का प्रेम देखकर भगवान श्रीकृष्ण आखिरकार प्रसन्न हो गए। भगवान ने उससे पूछा, “बेटा, तुम मुझसे क्या वरदान मांगते हो?”चकेवा ने तुरंत कहा: “भगवान, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी बहन सामा को फिर से मनुष्य का रूप दे दीजिए। मेरा भाई-बहन का रिश्ता बचा लीजिए। “भगवान ने मुस्कुराते हुए सामा को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि कार्तिक महीने की सातवीं तारीख से पूर्णिमा तक (लगभग नौ दिन) अगर लोग मिट्टी से सामा और चकेवा की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करें, गीत गाएं, और अपने भाई-बहन के प्रेम को दिल से महसूस करें, तो सामा को हमेशा के लिए श्राप से मुक्ति मिल जाएगी और तब से लेकर आज तक, बिहार के मिथिला इलाके में सामा-चकेवा का पर्व हर साल मनाया जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशियों की कामना करती हैं। चुगलखोर की मूर्ति को जलाया जाता है, क्योंकि झूठ और अफवाह समाज में कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह सिखाने के लिए।
यह कहानी क्यों जरूरी है
यह कहानी सिखाती है कि भाई-बहन का प्रेम कितना खास होता है। यह बताती है कि कैसे चकेवा ने अपनी पूरी ताकत अपनी बहन के लिए लगा दी। और यह भी दिखाती है कि किसी के बारे में झूठ बोलना या अफवाह फैलाना कितना बुरा है। इसलिए हमेशा याद रखो — सच्चाई और प्यार ही जीवन का असली धन है।
सामा-चकेवा के बारे में (FAQ)
1. Sama chakeva kab hai 2025
सामा-चकेवा पर्व की शुरुआत: लगभग बुधवार, 29 अक्टूबर, 2025 से (यह छठ पूजा के अगले दिन से शुरू होता है)। सामा-चकेवा पर्व का समापन (कार्तिक पूर्णिमा): बुधवार, 05 नवंबर, 2025 को।
2. सामा और चकेवा की कहानी में मुख्य पात्र कौन हैं?
- सामा: भगवान श्रीकृष्ण की बेटी
- चकेवा: सामा का भाई (कुछ कथाओं में साम्ब भी कहा जाता है)
- भगवान श्रीकृष्ण: सामा के पिता
- चुगलखोर: जो अफवाहें फैलाता है
- चक्रवाक: सामा का पति (कुछ कहानियों में) के दौरान की मुख्य गतिविधियां:
3.सामा-चकेवा पर्व का मुख्य संदेश क्या है?
- भाई-बहन का प्रेम: यह पर्व भाई-बहन के बीच गहरे रिश्ते को दर्शाता है।
- बलिदान और समर्पण: चकेवा की तपस्या और कठोर परिश्रम से पता चलता है कि प्रेम के लिए कितना बलिदान करना पड़ सकता है।
- सच्चाई की जीत: अफवाहें और झूठ को जलाना यह दिखाता है कि सच्चाई हमेशा जीतती है।
- प्रकृति के साथ जुड़ाव: यह पर्व पक्षियों के प्रवास के मौसम से भी जुड़ा है।























