मेरे प्यारे भोले भक्तों, बिहार की यह प्यारी धरती, जिसे सदियों पहले मगध कहा जाता था, हमेशा से ही हमारी संस्कृति और धर्म का केंद्र रही है. देखिए, गंगा और गंडक जैसी पवित्र नदियाँ जब यहाँ एक-दूसरे से मिलती हैं, तो यह जगह साक्षात देवलोक जैसी हो जाती है, जहाँ शिवजी की कृपा हर क्षण बरसती है.

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आप जानकर खुश होंगे कि बिहार की इस धरती में शिवजी की भक्ति की जड़ें बहुत पुरानी हैं. यहाँ के मंदिरों की सबसे खास बात यह है कि कई जगह तो शिवजी खुद-ब-खुद स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए हैं, यानी उन्हें किसी इंसान ने नहीं बनाया. इन सभी मंदिरों को भक्तों पर भोलेनाथ की अपार दया और चमत्कारों के लिए जाना जाता है. मुंडेश्वरी धाम जैसी कई पवित्र जगहें हमें बताती हैं कि शिवजी, विष्णुजी और माँ शक्ति, सब यहाँ प्रेम से साथ में पूजे जाते रहे हैं. यही कारण है कि हज़ारों सालों से यहाँ के मंदिर अडिग खड़े हैं और हमारी आस्था कभी नहीं टूटी.
मुंडेश्वरी धाम (कैमूर): दुनिया का सबसे पुराना चलता मंदिर!

मुंडेश्वरी धाम हमारे कैमूर जिले में मुंडेश्वरी पहाड़ी के ऊपर बसा हुआ है. आप सोचिए, यह मंदिर दुनिया के सबसे पुराने “चलते रहने वाले मंदिरों” में से एक है! यानी हज़ारों सालों से यहाँ कभी पूजा-पाठ रुका ही नहीं. पुरानी चीज़ों की जाँच करने वाले लोग (पुरातत्व विभाग) भी मानते हैं कि यह मंदिर लगभग 108 ईस्वी का है, कितना पुराना!
इस मंदिर की बनावट सबसे निराली है; यह आठ कोनों वाला बना हुआ है, जो इसे बहुत खास बनाता है. मंदिर में शिवजी का चतुर्मुख (चार मुख वाला) शिवलिंग बीचों-बीच स्थापित है, जिसके साथ ही माँ मुंडेश्वरी देवी की भी पूजा होती है. भक्त बताते हैं कि यहाँ के पंचमुखी शिवलिंग का रंग तो दिन भर में बदलता रहता है.
रक्तहीन बलि का अद्भुत चमत्कार
इस धाम की सबसे बड़ी महिमा है ‘रक्तहीन बलि’ की परंपरा. जब भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर बलि चढ़ाने आते हैं, तो पुजारी सिर्फ मंत्र पढ़ते हैं और बकरे पर फूल फेंकते हैं. चमत्कार देखिए! बकरा तुरंत बेहोश होकर माँ के चरणों में गिर जाता है. कुछ ही पल बाद पुजारी उस पर चावल और फूल डालकर उसे फिर से जीवित कर देते हैं. बिना खून की एक बूँद बहाए माँ अपने भक्तों का बलिदान स्वीकार कर लेती हैं. यह अद्भुत घटना भक्तों के अटूट विश्वास को पक्का करती है.
अजगैबीनाथ धाम (सुलतानगंज, भागलपुर): कांवड़ यात्रा की शुरुआत

यह धाम भागलपुर जिले के सुलतानगंज शहर में है. इसकी बनावट बहुत अनोखी है—यह गंगा नदी के बीच एक चट्टान पर टिका हुआ है, जहाँ पहुँचने के लिए भक्तों को नाव से जाना पड़ता है. यहाँ शिवजी स्वयंभू रूप में विराजमान हैं.
यह मंदिर श्रावणी कांवड़ यात्रा का वह पवित्र स्थान है, जहाँ से लाखों भक्त अपनी यात्रा शुरू करते हैं. सावन (जुलाई-अगस्त) के महीने में लाखों कांवड़िया यहाँ गंगाजल भरकर, 105 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा पर निकल पड़ते हैं—झारखंड के बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए. हमारा बिहार ही वह पवित्र रास्ता है, जो भक्तों को भोलेनाथ को जल चढ़ाने का मौका देता है.
ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर (बक्सर): बिहार का काशी

बक्सर जिले का यह मंदिर बहुत ही पुराना है. इस पूरे इलाके को ही ‘बिहार का काशी’ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ भी गंगाजी काशी की तरह उत्तर दिशा की ओर बहती हैं.
हमारी मान्यता है कि यहाँ का शिवलिंग सैकड़ों वर्ष पुराना है और इसकी स्थापना तो स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने की थी. इसलिए इन्हें बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ के नाम से पुकारते हैं. जो भक्त सच्चे दिल से यहाँ आते हैं, उनकी जीवन की सभी इच्छाएं—धर्म, पैसा, प्रेम और मोक्ष—पूरी होती हैं.
भोलेनाथ और उनके भक्तों की प्यारी कहानियाँ
उगना महादेव मंदिर (भवानिपुर, मधुबनी)

यह मंदिर महान कवि विद्यापति की पक्की भक्ति के लिए मशहूर है. कहानी है कि शिवजी ने अपने प्यारे भक्त विद्यापति की सेवा करने के लिए ‘उगना’ नाम के एक सेवक का वेश धारण किया था. जब विद्यापति ने उन्हें पहचान लिया, तो भोलेनाथ ने उसी जगह शिवलिंग के रूप में हमेशा के लिए रहने का वादा किया. मिथिलांचल के लोग तो यह भी कहते हैं कि ‘यहाँ भक्त के लिए भगवान शिव ने लाठियां खाईं थी’.
बाबा गरीबनाथ धाम (मुजफ्फरपुर)

मुजफ्फरपुर शहर के बीचों-बीच स्थित इस धाम को, इसकी लोकप्रियता और भक्तों की मुरादें पूरी करने की शक्ति के कारण, लोग प्यार से ‘बिहार का देवघर’ कहते हैं.
इसकी खोज की कहानी भी दिल को छू लेने वाली है: कहते हैं, यहाँ सात पीपल के पेड़ों के नीचे शिवलिंग मिला था, और जब उन पेड़ों को काटा गया, तो शिवलिंग से खून बहने लगा. इस चमत्कार ने यह पक्का कर दिया कि यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए हैं. सावन में यहाँ लाखों भक्तों की भीड़ होती है, और यहाँ की गई हर प्रार्थना पूरी होती है. मंदिर में एक पवित्र तालाब भी है, जिसका जल रोग दूर करने की शक्ति रखता है.
श्री बनखंडीनाथ शिव मंदिर (हरिगांव, भोजपुर)

भोजपुर जिले का यह मंदिर द्वापर युग की कहानी से जुड़ा है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना तब की थी, जब वह राक्षस राजा बाणासुर से युद्ध में अपने पोते प्रद्युम्न की रक्षा कर रहे थे. इस जगह का नाम ‘बनखंडीनाथ’ इसलिए पड़ा, क्योंकि बाणासुर के तीर इस स्थान पर आते ही टूट जाते थे. यह मंदिर खास तौर पर भक्तों की सरकारी नौकरी जैसी मुरादें पूरी करने के लिए प्रसिद्ध है.
हरिहर नाथ मंदिर (सोनपुर, सारण): शिव और विष्णु का मिलन

सोनपुर में गंगा और गंडक नदियों के पवित्र संगम पर बना हरिहर नाथ मंदिर शिवजी (हर) और विष्णुजी (हरि) दोनों को समर्पित है. इसे भगवान राम द्वारा स्थापित माना जाता है. यह मंदिर ‘गजेन्द्र मोक्ष’ की प्रसिद्ध कथा से भी जुड़ा हुआ है.
इस धाम की प्रसिद्धि का एक और बड़ा कारण है कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला, सोनपुर मेला. कहते हैं, इस मेले की शुरुआत तो मौर्य साम्राज्य के समय से ही हुई थी.
अशोक धाम (लखीसराय): नई खोज

लखीसराय जिले का अशोक धाम एक आधुनिक चमत्कार के कारण जाना जाता है. 7 अप्रैल 1977 को, अशोक नाम के एक चरवाहे लड़के ने गिल्ली-डंडा खेलते हुए ज़मीन के नीचे एक विशाल शिवलिंग खोजा. तभी से इसका नाम अशोक धाम पड़ गया. इस नए धाम को राष्ट्रीय पहचान तब मिली जब शंकराचार्य ने 1993 में इसका उद्घाटन किया. यह मंदिर आज मुंडन संस्कार के लिए भी बहुत मशहूर है.
दर्शन और यात्रा के लिए:
मेरे प्यारे शिव भक्तों, अगर आप इन धामों के दर्शन करना चाहते हैं, तो सावन का महीना (जुलाई-अगस्त) और महाशिवरात्रि (फरवरी/मार्च) सबसे शुभ समय होता है. आप पटना, गया, या भागलपुर के हवाई अड्डों से या ट्रेन से इन पवित्र स्थानों तक आसानी से पहुँच सकते हैं.
हर हर महादेव!


















