बिहार के स्वास्थ्य सेवा के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जुड़ गया है। 26-27 सितंबर, 2025 की रात, पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के डॉक्टरों ने राज्य का पहला सफल लीवर प्रत्यारोपण (Liver Transplant) करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया । यह सिर्फ एक जटिल ऑपरेशन की सफलता नहीं है, बल्कि यह बिहार के करोड़ों लोगों के लिए एक नई आशा की किरण है। अब तक जिस इलाज के लिए बिहार के मरीजों को दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े शहरों के चक्कर काटने पड़ते थे और लाखों रुपये खर्च करने पड़ते थे, वह सुविधा अब उनके अपने राज्य में, उनके अपने एम्स में उपलब्ध हो गई है।
मानवता और चिकित्सा का संगम: कैसे संभव हुआ यह ऐतिहासिक ऑपरेशन?
इस ऐतिहासिक ऑपरेशन के केंद्र में दो कहानियाँ हैं – एक तरफ जिंदगी के लिए लड़ रहा एक मरीज था, तो दूसरी तरफ मानवता की मिसाल पेश करता एक परिवार।
पटना के रहने वाले एक 43 वर्षीय व्यक्ति का जीवन दांव पर लगा था। उनका लीवर पूरी तरह से खराब हो चुका था और प्रत्यारोपण ही एकमात्र रास्ता बचा था । उनका 122 किलो वजन इस सर्जरी को और भी चुनौतीपूर्ण बना रहा था ।
उम्मीद की किरण समस्तीपुर से आई, जहाँ एक 67 वर्षीय महिला एक सड़क दुर्घटना के बाद ब्रेन-डेड हो गई थीं । दुख की इस घड़ी में, उनकी बेटी ने एक साहसिक और महान निर्णय लिया। उन्होंने अपनी माँ के अंगदान करने की सहमति दी, जिससे न केवल लीवर बल्कि कॉर्निया का भी दान संभव हो सका। यह फैसला लेना आसान नहीं था, लेकिन एम्स पटना के डॉक्टरों की टीम ने परिवार को अंगदान का महत्व समझाया, जिसके बाद वे इस महादान के लिए तैयार हुए ।
26 सितंबर की देर रात करीब 11 बजे यह जटिल ऑपरेशन शुरू हुआ और लगभग सात घंटे तक चला । डॉक्टरों की टीम ने मरीज के मोटापे से जुड़ी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया। ऑपरेशन के बाद, मरीज की हालत स्थिर है और वे तेजी से ठीक हो रहे हैं ।

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डॉक्टरों की माहिर टीम: जब अनुभव और विशेषज्ञता ने रचा इतिहास
इस बड़ी सफलता के पीछे डॉक्टरों की एक बेहतरीन टीम का हाथ था। इस टीम का नेतृत्व AIIMS पटना के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. उत्पल आनंद कर रहे थे । डॉ. आनंद के पास 24 वर्षों से अधिक का अनुभव है और उन्होंने एम्स, नई दिल्ली से अपनी विशेषज्ञता हासिल की है ।
इस महत्वपूर्ण ऑपरेशन में दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल की एक विशेषज्ञ टीम ने भी सहयोग किया, जिसका नेतृत्व दुनिया के जाने-माने लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन, प्रोफेसर डॉ. सुभाष गुप्ता कर रहे थे । डॉ. गुप्ता को भारत में लिविंग डोनर लीवर ट्रांसप्लांट कार्यक्रम शुरू करने का श्रेय दिया जाता है और वे 3,000 से अधिक लीवर सर्जरी कर चुके हैं । यह सहयोग सुनिश्चित करने के लिए था कि बिहार का पहला प्रत्यारोपण हर हाल में सफल हो, ताकि लोगों का इस प्रणाली पर भरोसा बन सके।
बिहार के लिए क्यों है यह एक बड़ी उपलब्धि?
यह प्रत्यारोपण सिर्फ एक सर्जरी नहीं है, बल्कि यह बिहार की स्वास्थ्य सेवा में एक बड़े बदलाव का संकेत है। इसके कई गहरे मायने हैं:
1. महंगा इलाज अब हुआ सस्ता: निजी अस्पतालों में लीवर ट्रांसप्लांट का खर्च 15 लाख से 40 लाख रुपये तक आता है, जो एक आम आदमी की पहुंच से बाहर है । इसके अलावा, ऑपरेशन से पहले की जांच और बाद की दवाओं का खर्च भी लाखों में होता है । वहीं, एम्स जैसे सरकारी संस्थानों में यह इलाज या तो मुफ्त होता है या बहुत ही कम खर्च पर किया जाता है । एम्स पटना में यह सुविधा शुरू होने से अब बिहार के गरीब से गरीब मरीज भी जीवन बचाने वाले इस इलाज का सपना देख सकते हैं।
2. बाहर जाने की मजबूरी खत्म: अब तक बिहार के मरीजों को लीवर की गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए दिल्ली, मुंबई या चेन्नई जाना पड़ता था। इसमें न केवल इलाज का भारी खर्च होता था, बल्कि यात्रा, रहने और परिवार की देखभाल करने वालों की नौकरी छूटने का बोझ भी पड़ता था। अब यह विश्व स्तरीय सुविधा पटना में ही उपलब्ध है, जिससे मरीजों और उनके परिवारों को बड़ी राहत मिली है।
3. लिवर की बीमारियों का बढ़ता बोझ: बिहार में लीवर की बीमारियाँ एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या हैं। एक अध्ययन के अनुसार, बिहार में लीवर खराब होने के दो सबसे बड़े कारण शराब (45%) और वायरल हेपेटाइटिस (41%) हैं । ये ऐसी बीमारियाँ हैं जिनसे बचाव संभव है, लेकिन गंभीर हो जाने पर प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प बचता है। ऐसे में एम्स पटना का यह कार्यक्रम एक जीवन रेखा की तरह है।
अंगदान: जीवन का सबसे बड़ा दान और सबसे बड़ी चुनौती
एम्स पटना की यह सफलता अंगदान के महत्व को भी रेखांकित करती है। भारत में अंगदान की दर बहुत कम है, प्रति 10 लाख लोगों पर 1 से भी कम । बिहार में स्थिति और भी चिंताजनक है। जागरूकता की कमी और सामाजिक भ्रांतियों के कारण लोग अंगदान के लिए आगे नहीं आते ।
आंकड़े बताते हैं कि बिहार जैसे बड़े राज्य मृतक अंगदान (ब्रेन-डेड व्यक्ति से दान) के मामले में बहुत पीछे हैं । मार्च 2023 तक, पूरे राज्य में केवल 700 लोगों ने अंगदान की शपथ ली थी । एक और चिंताजनक बात यह है कि जीवित अंगदान में लैंगिक असमानता बहुत गहरी है। 2016 से 2023 के बीच, 71% किडनी दान करने वाली महिलाएं थीं, लेकिन किडनी पाने वालों में केवल 17% महिलाएं थीं ।
यह सफल प्रत्यारोपण अंगदान के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा बन सकता है। जब लोग देखेंगे कि उनके दान किए गए अंगों से उनके ही राज्य में किसी की जान बच रही है, तो उनका भरोसा बढ़ेगा और वे इस महादान के लिए आगे आएंगे।
AIIMS पटना : पूर्वी भारत के लिए स्वास्थ्य का नया केंद्र
यह लीवर प्रत्यारोपण एम्स पटना को पूर्वी भारत के एक प्रमुख सुपर-स्पेशियलिटी केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे पहले, जनवरी 2025 में यहां किडनी प्रत्यारोपण कार्यक्रम भी सफलतापूर्वक शुरू किया गया था, जिसके तहत 8 सफल ऑपरेशन हो चुके हैं । संस्थान में ओपन-हार्ट सर्जरी भी की जा रही है और भविष्य में रोबोटिक सर्जरी जैसी अत्याधुनिक तकनीक लाने की भी योजना है ।
यह सफलता न केवल एम्स पटना का कद बढ़ाएगी, बल्कि पूरे संस्थान में एक नया आत्मविश्वास पैदा करेगी। यह बेहतर डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को आकर्षित करेगा और बिहार की स्वास्थ्य सेवा की पूरी तस्वीर को बदलने में मदद करेगा।
अंत में, एम्स पटना में हुआ यह पहला सफल लीवर प्रत्यारोपण बिहार के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह डॉक्टरों की काबिलियत, एक परिवार के साहस और अंगदान की शक्ति का प्रतीक है। यह उपलब्धि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करती है और पूर्वी भारत के लाखों मरीजों के लिए उम्मीद की एक नई सुबह लेकर आई है।