अरिपन (Aripan) बिहार, खासकर मिथिला क्षेत्र की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पारंपरिक लोक कला है, जिसे यहाँ की महिलाएं सदियों से बनाती आ रही हैं. यह कला सामान्य रंगोली से भिन्न है क्योंकि इसमें मुख्य रूप से चावल के आटे के पेस्ट का प्रयोग होता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘पिठार’ (Pithar) कहा जाता है. पिठार को पानी में घोलकर गाढ़ा पेस्ट बनाया जाता है और फिर उंगलियों की मदद से इसे घर के फर्श या आंगन पर उकेरा जाता है. अरिपन कला सिर्फ सजावट नहीं है; यह पवित्रता, शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, इसलिए इसे मुख्य रूप से दीपावली, छठ पूजा, विवाह और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान घर के प्रवेश द्वार और पूजा स्थलों पर बनाया जाता है.

AI Image
सांस्कृतिक महत्व
इस कला में बने प्रत्येक डिज़ाइन का गहरा प्रतीकात्मक महत्व होता है. अरिपन में अक्सर सरल ज्यामितीय आकृतियाँ और पवित्र प्रतीक बनाए जाते हैं, जैसे कि कमल (शुद्धता), मछली (समृद्धि और संतति), और वृत्त/चक्र (जीवन की निरंतरता). इन पैटर्नों को सौभाग्य, सुरक्षा और धन-धान्य को आकर्षित करने वाला माना जाता है. घर के आंगन या प्रवेश द्वार पर इसे बनाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो जीवन में पवित्रता और सकारात्मकता का आह्वान करता है. आज भी बिहार के गाँवों में लोग इस कला को बड़े प्रेम और श्रद्धा से सहेज कर रखे हुए हैं, जो उनकी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न अंग है.
प्रकृति से जुड़ाव और इको-फ्रेंडली मटेरियल
अरिपन बनाने के लिए चावल के आटे का चुनाव बेहद व्यावहारिक और पर्यावरण-अनुकूल भी है. चावल का आटा प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल होता है, जो इसे फर्श पर आसानी से बनाने और बाद में धोने में सरल बनाता है. सबसे ख़ास बात यह है कि यह कला करुणा के भाव से जुड़ी है; चावल का आटा छोटे जीवों, जैसे चींटियों और पक्षियों, के लिए भोजन का स्रोत भी बन जाता है, जो प्रकृति के प्रति सम्मान दर्शाता है. पिठार का गाढ़ा पेस्ट सतह पर आसानी से चिपक जाता है, जिससे महिलाएं बारीक और जटिल डिज़ाइन भी सरलता से बना पाती हैं. इस तरह, अरिपन कला, आध्यात्मिकता और प्रकृति के साथ जुड़ाव का एक अद्वितीय मिश्रण प्रस्तुत करती है.
अनुष्ठानों के अनुसार अरिपन के विशेष डिज़ाइन
अरिपन कला की एक अनूठी विशेषता यह है कि इसके डिज़ाइन और पैटर्न विभिन्न त्योहारों और अनुष्ठानों के अनुसार बदल जाते हैं. उदाहरण के लिए, विवाह अरिपन (शादी के दौरान बनाया जाने वाला अरिपन) में मुख्य रूप से तोते, मछली (संतान और शुभता का प्रतीक), और कमल जैसे डिज़ाइन शामिल होते हैं, जो जोड़े के दीर्घायु और समृद्धि की कामना करते हैं. वहीं, छठ पूजा के अवसर पर बनाए गए अरिपन में विशेष रूप से सूर्य देव, उनके रथ और छठ माता से संबंधित प्रतीकों को प्राथमिकता दी जाती है. इसी प्रकार, दीपावली पर लक्ष्मी जी के चरण चिह्न और कलश जैसे डिज़ाइन घर में धन और ऐश्वर्य को आमंत्रित करने के लिए बनाए जाते हैं. यह विशिष्टता दर्शाती है कि अरिपन केवल एक कला नहीं, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक मानचित्र है जो हर अवसर के मूल भाव और महत्व को ज़मीन पर उकेरता है.
अरिपन बनाने की प्रक्रिया (Aripan)
पिठार तैयार करना
- सबसे पहले, अरिपन के लिए मुख्य सामग्री, यानी चावल का आटा (Rice Flour) लिया जाता है.
- इस सूखे आटे में पर्याप्त पानी मिलाया जाता है और इसे हाथ से अच्छी तरह फेंटा जाता है, जब तक कि यह एक गाढ़े, चिकने पेस्ट का रूप न ले ले. यह पेस्ट इतना गाढ़ा होना चाहिए कि फर्श पर आसानी से टिक सके और बह न जाए.
ज़मीन तैयार करना
- जिस स्थान पर अरिपन बनाना है, उस जगह को पहले अच्छी तरह से साफ़ किया जाता है, और अक्सर गोबर और मिट्टी के मिश्रण से लेपा जाता है (यदि गाँव या पारंपरिक घर है) या फिर सामान्य रूप से धोकर सूखा लिया जाता है.
डिज़ाइन उकेरना
- महिला कलाकार (जो मुख्य रूप से इस कला को बनाती हैं) अपने दाहिने हाथ की उंगलियों (अंगूठे, तर्जनी, और मध्यमा) का प्रयोग करती हैं.
- वे पिठार के पेस्ट को अपनी उंगलियों में लेती हैं और फिर धीरे-धीरे ज़मीन पर टैप करते हुए या एक पतली धार बनाते हुए डिज़ाइन उकेरती हैं.
- चूँकि पिठार एक प्राकृतिक गोंद जैसा काम करता है, इसलिए यह ज़मीन पर आसानी से चिपक जाता है, जिससे बारीक और जटिल डिज़ाइन बनाना संभव हो पाता है.


















