बिहार, जिसे प्राचीन काल में मगध के नाम से जाना जाता था, भारतीय सभ्यता का वह पावन केंद्र है जहाँ चार महान धर्मों—बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, और हिन्दू धर्म—ने जन्म लिया या अपनी महत्वपूर्ण यात्राएँ पूरी कीं । यह ज़मीन न सिर्फ़ सम्राटों के उत्थान और पतन की गवाह रही है, बल्कि दुनिया को शांति, ज्ञान और अहिंसा का संदेश देने वाले महान धर्मगुरुओं की भी कर्मभूमि रही है।

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बौद्ध धर्म: ज्ञान और शिक्षा की भूमि
बौद्ध धर्म के लिए बिहार पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थान है, क्योंकि यहीं राजकुमार सिद्धार्थ ने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे सर्वोच्च ज्ञान (ज्ञान) प्राप्त किया और भगवान गौतम बुद्ध कहलाए । यह स्थान (महाबोधि मंदिर) पिछले दो हज़ार वर्षों से विश्व के बौद्धों के लिए तीर्थयात्रा का मुख्य केंद्र रहा है, जिसकी नींव सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रखी थी । ज्ञान प्राप्ति के बाद, बुद्ध ने राजगीर (मगध की पुरानी राजधानी) के गृद्धकूट पर्वत पर कई उपदेश दिए, और यहीं सप्तपर्णी गुफा में पहली बौद्ध संगीति हुई, जहाँ उनके उपदेशों को पहली बार लिखा गया । बौद्धिक शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की सबसे बड़ी देन नालंदा महाविहार था, जिसे 427 ईस्वी के आसपास स्थापित किया गया था । यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है, जहाँ चीन, तिब्बत और कोरिया जैसे दूर-दराज के देशों से विद्वान पढ़ने आते थे । दुर्भाग्य से, 1200 ईस्वी के आसपास तुर्की आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया, जो भारतीय ज्ञान के इतिहास में एक गहरा दुखद मोड़ था ।
जैन धर्म: 24वें तीर्थंकर की कर्मभूमि
जैन धर्म का इतिहास भी बिहार की मिट्टी में रचा-बसा है। जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर, का जन्म बिहार के वैशाली जिले के क्षत्रियकुंड नामक स्थान पर हुआ था । उन्होंने अपने जीवन के लगभग 30 वर्ष इसी क्षेत्र में बिताए और यहीं से जैन धर्म के मूल सिद्धांतों का प्रचार किया । भगवान महावीर ने नालंदा जिले के पावापुरी में निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया । पावापुरी में स्थित प्रसिद्ध जल मंदिर, जो एक कमल सरोवर के बीच बना है, जैनियों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, क्योंकि यहीं उनके चरण पादुका की पूजा की जाती है । इसके अलावा, जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म और मोक्ष भागलपुर के पास चम्पापुरी में हुआ था । बांका जिले का मंदार पर्वत जैन और हिंदू दोनों समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है। जैन इसे वासुपूज्य के निर्वाण स्थल के रूप में पूजते हैं , जबकि हिन्दू इसे समुद्र मंथन के लिए इस्तेमाल किए गए मंदराचल पर्वत के रूप में जानते हैं , जो बिहार की साझा धार्मिक संस्कृति को दर्शाता है।
सिख धर्म: दशम गुरु का पवित्र जन्मस्थान
यद्यपि सिख धर्म का मुख्य केंद्र पंजाब माना जाता है, लेकिन इसका बिहार के साथ एक अटूट और पवित्र रिश्ता है। सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब में हुआ था । उनके जन्मस्थान पर बना तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब, सिखों के पाँच तख्तों (धार्मिक सत्ता के केंद्र) में से एक है और इसे दुनिया भर के सिख भक्तों के लिए एक अनिवार्य तीर्थस्थल माना जाता है । इस गुरुद्वारे का निर्माण 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था । यह स्थान सिख इतिहास के कई अनमोल चीज़ों को सँजोए हुए है, जैसे गुरु गोबिंद सिंह जी की बचपन की छोटी तलवार (सैफ) और सोने के पत्तों से ढका झूला (पंगुरा साहिब) । हाल ही में, गुरु गोबिंद सिंह जी और माता साहिब कौर के पवित्र जोड़े साहिब (जूते) को दिल्ली से पटना साहिब लाया गया और स्थापित किया गया, जिसे ‘आध्यात्मिक चक्र की पूर्णता’ के रूप में देखा गया । पटना के पास गुरुद्वारा बाल लीला मैंनी साहिब भी है, जहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी बचपन में खेला करते थे और जहाँ आज भी भक्तों को उबले हुए चने का प्रसाद दिया जाता है ।
हिन्दू धर्म: शक्ति, मोक्ष और महाकाव्यों का आधार
बिहार हिन्दू धर्म के दो सबसे महान महाकाव्यों—रामायण और महाभारत—से जुड़ा हुआ है । माता सीता, जिन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, का जन्म राजा जनक के मिथिला राज्य में हुआ था । सीतामढ़ी वह स्थान माना जाता है जहाँ राजा जनक को हल चलाते समय सीता मिली थीं । भगवान राम और सीता का विवाह यहीं संपन्न हुआ था, जिसे हर साल विवाह पंचमी के रूप में बड़े उत्साह से मनाया जाता है । इसके अलावा, बिहार का गया शहर हिंदू धर्म में पूर्वजों के पिंडदान और श्राद्ध अनुष्ठान के लिए दुनिया में सबसे पवित्र माना जाता है । यहाँ, फल्गु नदी के किनारे पिंड (पके हुए चावल और तिल के गोले) चढ़ाने से पूर्वजों की आत्मा को जन्म-मृत्यु के चक्र से मोक्ष मिल जाता है । माना जाता है कि भगवान राम ने स्वयं अपने पिता राजा दशरथ के लिए यहीं पिंड दान किया था । महर्षि वाल्मीकि (रामायण के पारंपरिक लेखक) की जन्मभूमि भी बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में बताई जाती है, जहाँ उनका आश्रम वर्तमान में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के भीतर स्थित है ।
बुनियादी ढांचे की चुनौतियाँ और विकास
बिहार में पर्यटन की अपार क्षमता के बावजूद, पर्यटन स्थलों के बीच खराब सड़क संपर्क, अपर्याप्त स्वच्छता और कचरा निपटान जैसी बुनियादी ढाँचे की समस्याएँ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए एक बाधा रही हैं । इसके अलावा, बोधगया जैसे प्रमुख स्थानों पर पर्यटन से होने वाले लाभ स्थानीय समुदायों के बीच समान रूप से नहीं बँट पाए हैं, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानता बनी रहती है । इन चुनौतियों का सामना करने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के मॉडल पर गया में विष्णुपद मंदिर गलियारे और महाबोधि मंदिर गलियारे के व्यापक विकास की पहल की घोषणा की है, जिसका लक्ष्य तीर्थयात्री अनुभव को विश्व-स्तरीय बनाना है ।


















