बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल जातिगत समीकरणों और गठबंधन की राजनीति से परिभाषित रही है। नवंबर 2025 के विधानसभा चुनाव में जहाँ दिग्गज नेताओं की रणनीतियाँ और उनके लोकप्रिय चेहरों का दबदबा रहेगा, वहीं कुछ ऐसे कम पॉपुलर पर प्रभावशाली नेता भी हैं जो अपनी कार्यकुशलता, ईमानदारी और सामाजिक जुड़ाव की बदौलत मतदाताओं के बीच जलवा बिखेर सकते हैं। ये नेता संभवतः मुख्यधारा की मीडिया में उतनी उपस्थिति न बना पाए हों, लेकिन इनके पास जमीनी स्तर पर अच्छे कार्यों और संगठनात्मक कौशल का बल है। इस रिपोर्ट में ऐसे पांच नेताओं का विस्तृत परिचय, उनकी खासीयतें, राजनीतिक पृष्ठभूमि, उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ और संभावित प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

1. दिलीप कुमार जायसवाल (BJP)
दिलीप कुमार जायसवाल बिहार भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष हैं, जिन्हें 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने फिर से अपना कमान सौंपा है। खगड़िया जिले के रहने वाले जायसवाल का राजनीतिक सफर MLC बनकर शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने तीन गैर-आचार संहिता अवधि में निर्विरोध जीत हासिल की। कलवार जाति से संबंध रखने वाले जायसवाल ने 20 वर्ष तक भाजपा के कोषाध्यक्ष के रूप में सेवा की है, जिससे उन्हें पार्टी के भीतर वित्तीय प्रबंधन और संगठनात्मक रणनीति का अनुभव प्राप्त हुआ।
शैक्षणिक रूप से भी जायसवाल काफी परिपक्व हैं—उनके पास MSc, MBA, PhD और M.Phil की उपाधियाँ हैं, जो उन्हें अन्य राजनीतिक हस्तियों से अलग पहचान देती हैं। अमित शाह के करीबी माने जाने वाले इस नेता ने राज्य में भाजपा के संगठनात्मक ढाँचे को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष चुनावी मैदान में उतरने से उनका सामना पहली बार जनप्रतिनिधि नाते होगा, जिससे उन्हें स्थानीय स्तर पर अपनी स्वीकार्यता साबित करनी होगी।
उपलब्धियाँ
- तीन बार निर्विरोध MLC चुने गए।
- राज्य भाजपा के कोषाध्यक्ष रह कर संगठन की वित्तीय मजबूती में योगदान।
- पिछड़ा वर्ग और अतिपिछड़ा वर्ग के बीच पैठ।
चुनौतियाँ
- प्रत्यक्ष चुनावी मैदान में पहली बार उतरना।
- क्षेत्रीय पहचान सीमित—मुख्यतः संगठनात्मक भूमिकाओं तक ही सीमित।
- बड़े नेता एवं मुख्यमंत्री चेहरे से ओझल रहने का डर।
2. नागमनी कुशवाहा (स्वतंत्र या गठबंधन)
नागमनी कुशवाहा बिहार की कुशवाहा (कोइरी) जाति के वरिष्ठ एवं अनुभवी नेता हैं, जो राज्य की लगभग 4-5% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल सदस्य के रूप में भी कार्य किया है, लेकिन पिछली कुछ सीटों पर वे भाग्य आजमा नहीं पाए। राजनीति से थोड़ी दूरी के बाद 2025 के चुनावों में उनकी वापसी हो रही है, और गठबंधन की प्रमुख पार्टियाँ—RJD और Jan Suraaj Party—दोनों उनकी सेवाओं को हथियाने की कोशिश में जुटी हैं।
नागमनी का जनबुनियादी कार्यकुशलता और क्षेत्रीय मजबूत पकड़ खासकर उपेक्षित किसानों और मध्यमवर्गीय मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता का मूल आधार है। उन्होंने बिहार के कृषि सुधार, सिंचाई योजनाओं और ग्रामीण सड़क विकास में सक्रिय भूमिका निभाई है, जिससे ग्रामीण विकास के मामलों में उनका दायरा व्यापक हुआ।
उपलब्धियाँ
- केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होकर सामाजिक कल्याण योजनाओं का क्रियान्वयन।
- कोइरी जाति में विशेष प्रभाव, ग्रामीण मतदाताओं पर पकड़।
- सिंचाई एवं ग्रामीण अवसंरचना परियोजनाओं में सक्रिय हिस्सा।
चुनौतियाँ
- लंबे अरसे तक सक्रिय राजनीति से दूर रहने के कारण जमीनी संगठन कमजोर पड़ा।
- मुख्यधारा की मीडिया में सीमित कवरेज।
- जातिगत समीकरणों के चलते व्यापक बहुलतंत्र में खुद को स्थापित करना।
3. अरुण कुमार (लोक जनशक्ति पार्टी)
अरुण कुमार, जो पहले जहानाबाद सीट से सांसद रह चुके हैं, भूमिहार समुदाय के प्रमुख नेता के रूप में पहचान रखते हैं। 2014 में LJP के टिकट पर संसद की सीट जीतने वाले अरुण ने संसदीय कार्यों के दौरान भूमिहार समुदाय के हितों को आवाज़ दी। मगध-शाहाबाद बेल्ट में समुदाय की जनसंख्या और प्रभाव को देखते हुए उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है।
हालांकि LJP के गिरने के बाद उन्होंने अपना राजनीतिक मंच ढूँढा और अब 2025 के चुनावों में मुख्यमंच पर वापसी कर रहे हैं। उनकी रणनीति युवा मतदाताओं और भूमिहार युवा वर्ग को संगठित करना है, साथ ही शिक्षा एवं कौशल विकास को चुनावी एजेन्डा बना रहे हैं।
उपलब्धियाँ
- जहानाबाद से सांसद के रूप में लोकसभा में विधेयक पारित करवाने का अनुभव।
- भूमिहार समुदाय में निर्णायक नेतृत्व।
- शिक्षा एवं कौशल विकास के कार्यक्रमों की पहल।
चुनौतियाँ
- दल बदल और अस्थिर गठबंधन के चलते राजनीतिक विश्वसनीयता पर प्रश्न।
- संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के बीच अलग-अलग कार्यशैली का सौहार्द स्थापित करना।
- राज्यव्यापी पहचान की कमी।
4. के.सी. सिन्हा (Jan Suraaj Party)
के.सी. सिन्हा पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, गणितज्ञ और शिक्षाविद् हैं, जिन्हें Jan Suraaj Party ने कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र (पटना) से टिकट दिया है। तीन दशकों से बिहार के शैक्षणिक पटल पर सक्रिय, उन्होंने 70 से अधिक गणित की पुस्तकें लिखी हैं, जिनका उपयोग विश्वविद्यालयों और स्कूलों में जारी है।
उनकी भ्रष्टाचार मुक्त छवि, शैक्षणिक पृष्ठभूमि और जन-आकर्षण उन्हें अन्य राजनीतिक प्रत्याशियों से अलग बनाती है। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार, ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफ़ॉर्म और छात्र कल्याण योजनाओं पर जोर दिया है। जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता, विशेषकर अभिभावकों और युवाओं में, चुनाव में मजबूत कारक साबित हो सकती है।
उपलब्धियाँ
- पटना यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में प्रशासनिक अनुभव।
- शिक्षा सुधारों के लिए नीति प्रस्ताव।
- गणित व शैक्षणिक साक्षरता में योगदान।
चुनौतियाँ
- राजनीतिक अपरिचित चेहरा—जनता में व्यापक जागरूकता कम।
- संसदीय अनुभव का अभाव।
- प्रचार-प्रसार और योद्धा नेता के रूप में छवि निर्माण।
5. जगृति ठाकुर (Jan Suraaj Party)
जगृति ठाकुर, जन नायक कर्पूरी ठाकुर की पोती, समस्तीपुर जिले के मोरवा सीट से Jan Suraaj Party की उम्मीदवार हैं। कर्पूरी ठाकुर की सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान की विरासत जगृति को विशेष पहचान देती है। युवा और शिक्षित, उन्होंने महिलाओं और अनुसूचित जाति-जनजाति के सामाजिक अधिकारों पर कार्य किया है।
वे सामाजिक कल्याण योजनाओं, महिला सशक्तिकरण अभियानों और ग्रामीण स्वच्छता परियोजनाओं से जुड़ी रही हैं। राजनीतिक विरासत के साथ-साथ आधुनिक मुद्दों—जैसे डिजिटल साक्षरता एवं स्वरोजगार—पर उनकी पकड़ भी मजबूत है।
उपलब्धियाँ
- ग्रामीण स्वच्छता एवं महिला सशक्तिकरण अभियानों का नेतृत्व।
- अनुसूचित जाति-जनजाति के कल्याण के लिए प्रोजेक्ट्स।
- कर्पूरी ठाकुर की विरासत से जुड़ी जनश्रुति।