अक्सर कहा जाता है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती, वह अभावों में भी अपना रास्ता ढूंढ लेती है। यह कहावत एक बार फिर सच साबित हुई है बिहार के शिवहर जिले के एक छोटे से गाँव मकसूदपुर करारिया में। यहाँ के बेटे, यशवर्धन प्रताप, ने देश की सबसे कठिन मानी जाने वाली परीक्षाओं में से एक—क्लैट (CLAT) 2026—में अपनी मेधा का परचम लहराया है।
अखिल भारतीय स्तर पर 26वीं रैंक (AIR 26) हासिल करना कोई मामूली बात नहीं है, लेकिन यशवर्धन ने न केवल यह रैंक हासिल की, बल्कि वे बिहार और झारखंड (ईस्ट जोन) के टॉपर भी बने । 107.75 अंकों के साथ उनकी यह सफलता केवल एक छात्र की जीत नहीं है, बल्कि यह उन हजारों सपनों की जीत है जो बिहार के छोटे कस्बों और गाँवों में पल रहे हैं।
यह रिपोर्ट यशवर्धन के संघर्ष, उनकी रणनीति और उनकी इस शानदार यात्रा का एक भावनात्मक और विश्लेषणात्मक दस्तावेज है।

जड़ों से जुड़ाव : एक पिता का अनुशासन और माँ का विश्वास
यशवर्धन की कहानी की शुरुआत पटना की चकाचौंध से नहीं, बल्कि शिवहर के उस मिट्टी से होती है जहाँ आज भी संघर्ष जीवन का दूसरा नाम है। उनका मूल निवास मकसूदपुर करारिया है । एक ऐसी जगह जहाँ से निकलकर राष्ट्रीय पटल पर छा जाना अपने आप में एक मिसाल है।
उनकी सफलता की नींव में उनके परिवार का अटूट सहयोग रहा है। पिता सुभाष कुमार, जो सहकारिता विभाग में संयुक्त निबंधक (Joint Registrar) हैं, ने यशवर्धन को जीवन में अनुशासन का महत्व सिखाया। वहीं, उनकी माँ संध्या कुमारी, जो एक गृहिणी हैं, ने घर में ऐसा माहौल बनाया जहाँ यशवर्धन बिना किसी तनाव के अपने लक्ष्य पर केंद्रित रह सके । जब एक छात्र प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करता है, तो वह अकेले नहीं लड़ता; उसका पूरा परिवार उसके साथ जागता और संघर्ष करता है। यशवर्धन की यह जीत उनके माता-पिता के उसी त्याग का फल है।
तैयारी के दौरान यशवर्धन पटना के नीति बाग इलाके में रहे । घर से दूर रहकर पढ़ाई करना आसान नहीं होता, लेकिन अपने लक्ष्य के प्रति उनके समर्पण ने हर बाधा को छोटा साबित कर दिया।
14 घंटे नहीं, सिर्फ 6 घंटे: सफलता का असली मंत्र
प्रतियोगी परीक्षाओं की दुनिया में एक बड़ा मिथक है कि टॉप करने के लिए आपको रोज 14-15 घंटे पढ़ना ही होगा। यशवर्धन ने इस मिथक को पूरी तरह तोड़ दिया है। उनकी रणनीति ‘कड़ी मेहनत’ से ज्यादा ‘स्मार्ट मेहनत’ पर टिकी थी।
संतुलन ही शक्ति है
यशवर्धन ने अपनी तैयारी के डेढ़ साल के दौरान हर दिन औसतन 6 से 7 घंटे ही पढ़ाई की । लेकिन ये 6 घंटे पूरी तरह से एकाग्रता वाले होते थे। उन्होंने कभी खुद को किताबों के बोझ तले दबने नहीं दिया, बल्कि यह सुनिश्चित किया कि उनका दिमाग तरोताजा रहे। निरंतरता (Consistency) उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। उन्होंने एक भी दिन ऐसा नहीं जाने दिया जब उन्होंने अपने लक्ष्य के लिए कदम न बढ़ाया हो।
अपनी कमियों से दोस्ती
यशवर्धन की सफलता का एक बड़ा राज अपनी कमजोरियों के प्रति उनकी ईमानदारी थी। अक्सर छात्र उन विषयों से भागते हैं जो उन्हें कठिन लगते हैं, लेकिन यशवर्धन ने ठीक इसका उल्टा किया। उन्होंने शुरुआत में ही पहचान लिया कि वे कहाँ कमजोर हैं और उन विषयों को अपनी प्राथमिकता बना लिया । उन्होंने तब तक उन कॉन्सेप्ट्स को दोहराया जब तक कि वे उनकी ताकत नहीं बन गए।
मॉक टेस्ट: असली परीक्षा से पहले 100 परीक्षाएं
क्लैट जैसी परीक्षा केवल ज्ञान की नहीं, बल्कि समय प्रबंधन और दबाव झेलने की क्षमता की भी परीक्षा है। यशवर्धन ने इसे बखूबी समझा। उन्होंने परीक्षा से पहले 100 से ज्यादा मॉक टेस्ट दिए ।
लेकिन सिर्फ टेस्ट देना काफी नहीं था। यशवर्धन हर टेस्ट के बाद उसका गहरा विश्लेषण (Post-test Analysis) करते थे। उनका फोकस यह नहीं होता था कि कितने नंबर आए, बल्कि यह होता था कि “जो सवाल गलत हुआ, वो क्यों हुआ?” इसी आदत ने उन्हें परीक्षा के पैटर्न और सवालों के जाल (Traps) को समझने में मदद की ।
बिहार का बदलता चेहरा: आंकड़ों की जुबानी
यशवर्धन की यह उपलब्धि व्यक्तिगत होते हुए भी सामूहिक गर्व का विषय है। क्लैट 2026 के नतीजे बताते हैं कि बिहार अब केवल आईएएस या आईपीएस की फैक्ट्री नहीं है, बल्कि देश को बेहतरीन वकील और जज देने के लिए भी तैयार है।
- भागीदारी: बिहार से इस साल 5,434 छात्रों ने फॉर्म भरा और 5,308 ने परीक्षा दी।
- सफलता दर: सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 70% से अधिक छात्र क्वालिफाई (Qualify) हुए हैं ।
यह आँकड़ा बताता है कि बिहार के युवाओं में कानून की पढ़ाई को लेकर कितनी जागरूकता और जुनून है। यशवर्धन (AIR 26) के साथ-साथ पटना के ही करण दत्त ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य में दूसरा स्थान हासिल किया है ।
भविष्य की उड़ान
107.75 के स्कोर और AIR 26 के साथ, यशवर्धन के लिए अब देश के सबसे प्रतिष्ठित लॉ स्कूल—नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU), बेंगलुरु—के दरवाजे खुल चुके हैं। यह संस्थान भारत का ‘हार्वर्ड’ माना जाता है। यहाँ से निकलने के बाद यशवर्धन के पास कॉर्पोरेट लॉ, न्यायपालिका या फिर सिविल सेवा में जाकर देश की सेवा करने के असीम अवसर होंगे।
यशवर्धन प्रताप की कहानी उन सभी छात्रों के लिए एक उम्मीद की किरण है जो सोचते हैं कि छोटे शहर या सीमित संसाधन उनकी उड़ान को रोक सकते हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि अगर इरादों में जान हो, रणनीति सही हो और परिवार का साथ हो, तो शिवहर की गलियों से निकलकर देश के नक्शे पर चमकना मुमकिन है।

















