आज के दौर में खेती केवल हल-बैल तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि अब यह मशीनों का खेल बन चुकी है। भारत में लगभग 80% किसान छोटे या सीमांत श्रेणी में आते हैं, जिनके लिए ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर या आधुनिक स्प्रेयर जैसी महंगी मशीनें खरीदना मुमकिन नहीं होता l इसी समस्या को सुलझाने के लिए सरकार ‘कस्टम हायरिंग सेंटर’ (CHC) यानी मशीनों के बैंक की अवधारणा लेकर आई है। इसका सीधा मतलब है—एक ऐसी जगह जहाँ से किसान अपनी जरूरत के हिसाब से मशीनें किराए पर ले सकें और समय पर अपनी फसल तैयार कर सकें l यह मॉडल न केवल किसानों की लागत कम करता है, बल्कि ग्रामीण युवाओं के लिए बिजनेस का एक शानदार मौका भी है। आमतौर पर एक सेंटर को ऐसी जगह बनाया जाता है जहाँ से 5 से 7 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 4-5 गांवों के किसानों को आसानी से सेवा दी जा सके l

सरकारी मदद और सब्सिडी का पूरा गणि
अगर आप अपना कस्टम हायरिंग सेंटर शुरू करना चाहते हैं, तो सरकार ‘कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन’ (SMAM) के तहत भारी सब्सिडी दे रही है। साल 2014-15 में शुरू हुए इस मिशन का मकसद प्रति हेक्टेयर मशीनी ताकत को बढ़ाना है l सामान्य राज्यों में केंद्र और राज्य सरकार के बीच खर्च का अनुपात 60:40 रहता है, जबकि पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों में यह 90:10 तक चला जाता है l सब्सिडी की बात करें तो, 10 लाख से लेकर 250 लाख रुपये तक के प्रोजेक्ट्स पर आमतौर पर 40% की वित्तीय सहायता मिलती है l विशेष रूप से छोटे किसानों, महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के लाभार्थियों के लिए यह मदद 50% तक हो सकती है l मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो 40% सब्सिडी के साथ-साथ बैंक ऋण पर 3% की अतिरिक्त ब्याज छूट भी दी जाती है l यह सारा पैसा सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में (DBT के माध्यम से) भेजा जाता है ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश न रहे l
कस्टम हायरिंग सेंटर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया और मशीनों का चुनाव
सेंटर शुरू करने के लिए आपको ‘agrimachinery.nic.in‘ पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होता है। इसमें किसान, उद्यमी या कोई भी स्वयं सहायता समूह (SHG/FPO) हिस्सा ले सकता है l रजिस्ट्रेशन के लिए आपके पास आधार कार्ड, बैंक पासबुक, जमीन के कागजात और पैन कार्ड जैसे दस्तावेज होने चाहिए l अगर आप कृषि स्नातक (Agri Graduate) हैं, तो आपको प्राथमिकता दी जाती है l मशीनों के चुनाव की बात करें तो, आपको अपने इलाके की फसल के हिसाब से फैसला लेना चाहिए। जैसे धान के इलाकों के लिए 35 HP का ट्रैक्टर, राइस ट्रांसप्लांटर और रोटावेटर का चुनाव बेहतर होता है, जबकि उत्तर भारत में पराली प्रबंधन के लिए सुपर सीडर या हैप्पी सीडर की मांग अधिक रहती है l एक औसत धान-आधारित प्रोजेक्ट की लागत करीब 15-20 लाख रुपये आती है, जिसमें ट्रैक्टर, ट्रॉली और रोटावेटर जैसे जरूरी उपकरण शामिल होते हैं |
कमाई का मौका, डिजिटल ऐप और भविष्य की तकनीक
कस्टम हायरिंग सेंटर केवल समाज सेवा नहीं, बल्कि एक मुनाफे वाला बिजनेस है। आंकड़ों के अनुसार, एक अच्छी तरह चलने वाले सेंटर का आंतरिक प्रतिफल दर (IRR) करीब 23.4% तक रहता है, जो किसी भी छोटे बिजनेस के लिए बहुत अच्छा है | सरकार ने इस बिजनेस को डिजिटल बनाने के लिए “FARMS” (Farm Machinery Solutions) नाम का एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया है | इस ऐप के जरिए किसान घर बैठे अपने नजदीकी 5 से 200 किलोमीटर के दायरे में उपलब्ध मशीनों की बुकिंग कर सकते हैं l यही नहीं, खेती का भविष्य अब ‘किसान ड्रोन’ की ओर बढ़ रहा है। ‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन के लिए 1261 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है, जिसमें ड्रोन खरीदने पर 80% तक की मदद (अधिकतम 8 लाख रुपये) का प्रावधान है l ड्रोन के जरिए खाद और कीटनाशकों का छिड़काव कम समय में और सटीक तरीके से होता है, जो भविष्य में कमाई का एक बड़ा जरिया बनने वाला है l

















