आसान शब्दों में कहानी क्या है?
यह फिल्म एक आदमी मोहन शर्मा (कपिल शर्मा) की है, जो 3 अलग-अलग धर्मों की महिलाओं से शादी कर बैठता है। शुरुआत होती है उसकी एक गर्लफ्रेंड सानिया (हीरा वरीना) से, जो मुस्लिम है और मोहन हिंदू है। दोनों के परिवार इस शादी के खिलाफ हैं।
मोहन इतना हिम्मती है कि वह मुसलमान भी बन जाता है और सानिया से शादी करने का प्रयास करता है। लेकिन गलतफहमी में उसने किसी और लड़की रूही (आयशा खान) से शादी कर ली।
इसके बाद उसके परिवार वाले उसकी एक हिंदू लड़की मीरा (त्रिधा चौधरी) से शादी करवा देते हैं, और फिर वह ईसाई बनकर जेनी (पारुल गुलाटी) से भी शादी कर लेता है। इस तरह एक आदमी की तीन शादियां हो जाती हैं, और फिर वह अपनी असली प्रेमिका सानिया को खोजने निकल पड़ता है।

मजेदार बातें
कपिल शर्मा की कॉमेडी: कपिल की कॉमिक टाइमिंग बेहतरीन है। उनके चेहरे के भाव, हंसाने की अंदाज़ी और एक्टिंग फिल्म का असली आधार है। वह जब तीनों पहचानों में (महमूद, माइकल, मोहन) बदलते हैं, तो दर्शकों को सीधा हंसी आ जाती है।
अच्छे सहकलाकार: मनजोत सिंह (कपिल के दोस्त की भूमिका) फिल्म की सबसे मजेदार जोड़ी बनते हैं। उनकी कॉमेडी सुपरब है। त्रिधा चौधरी सबसे आत्मविश्वासी अभिनेत्री हैं और सुशांत सिंह इंस्पेक्टर की भूमिका में दमदार हैं।
पारिवारिक और साफ हास्य: फिल्म में कोई गंदी बातें नहीं हैं, कोई अश्लील दृश्य नहीं। बस सीधी-सादी, परिवार के साथ देखने लायक कॉमेडी है।
90 के दशक का अहसास: यह फिल्म आपको गोविंदा की पुरानी मस्त फिल्मों की याद दिलाती है, जहां एक आदमी कई रिश्तों को संभालते हुए घूमता था। वह नॉस्टेल्जिया बढ़िया लगता है।
कमजोर बातें
कहानी में लॉजिक नहीं: यह फिल्म की सबसे बड़ी खामी है। ऐसा कोई तर्क नहीं कि औरतें अपने पतियों के लंबे समय तक गायब रहने पर सवाल क्यों नहीं पूछतीं। कई अवास्तविक और अजीब परिस्थितियां हैं। अगर आप फिल्म में दिमाग लगाएंगे तो बेज़ार हो जाएंगे।
पहले भाग की नकल: यह फिल्म पहले हिस्से का ही दोहराव है। कहानी का ढांचा समान है, समझदारियां भी वही हैं। नए ट्विस्ट्स की कमी है, और यह फिल्म पहले भाग की छाया से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाती।
असंतुलित अभिनय: हीरा वरीना इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। उनके संवाद सही नहीं, भाव उभर नहीं पाते, और ओवर-एक्टिंग (जरूरत से ज्यादा अभिनय) करती हैं।
कथानक गड़बड़ा: कहानी बीच में उछल-कूद करती है। दृश्य आते हैं और चले जाते हैं बिना किसी स्पष्ट दिशा के। कुछ इमोशनल मोमेंट्स फोर्स लगते हैं और उपदेश देने वाली पंक्तियां अचानक आती हैं।
संगीत कमजोर: सिर्फ “फुरर” गाना अच्छा है। बाकी सभी गाने फीके हैं और फिल्म को बीच में रोक देते हैं।
किस तरह की फिल्म है यह?
यह एक “टाइमपास” फिल्म है। अगर आप बिना दिमाग लगाए, बस हंसना चाहते हैं तो यह ठीक-ठाक काम करती है। अगर आप सोचने वाली फिल्म या स्मार्ट कॉमेडी ढूंढ रहे हो तो निराश हो जाओगे।
फिल्म की खासियत कपिल शर्मा की कॉमेडी है। अगर तुम्हें कपिल पसंद हैं, तो यह देखना चाहिए। अगर तुम्हें उनकी टीवी शो (द कपिल शर्मा शो) की कॉमेडी पसंद है, तो यह फिल्म भी तुम्हें हंसाएगी।
फाइनल वर्डिक्ट
किस किसको प्यार करूं 2 एक साधारण हंसी-मजाक की फिल्म है। यह फैमिली फिल्म है, कोई बोल्ड या गंदी चीज़ नहीं। अगर तुम सिर्फ 2-3 घंटे का मनोरंजन चाहते हो और लॉजिक नहीं तो यह ठीक है।
लेकिन अगर तुम अच्छी कहानी या स्मार्ट राइटिंग ढूंढ रहे हो तो बेहतर विकल्प खोजो। यह फिल्म कपिल शर्मा का एक शुद्ध कॉमेडी शो है, जहां कहानी दूसरे स्थान पर है और हंसी पहली।
सलाह: अगर तुम्हें कपिल शर्मा की कॉमेडी पसंद है तो देखो, थिएटर का पैसा बर्बाद नहीं होगा। पर **सिनेमा की गहराई या कहानी की मजबूती की उम्मीद मत रखो।
















