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CCTV ना होता तो बर्बाद हो जाती जिंदगी: MP पुलिस ने छात्र पर प्लांट किया 2.7 किलो अफीम

मध्य प्रदेश के मंदसौर से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मल्हारगढ़ पुलिस ने 12वीं कक्षा के एक छात्र, सोहनलाल, को नशीले पदार्थों (NDPS) के झूठे केस में फंसाकर जेल भेज दिया। पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए छात्र पर 2.7 किलोग्राम अफीम की बरामदगी दिखाई, लेकिन एक बस के सीसीटीवी फुटेज ने पुलिस की पूरी कहानी पलट कर रख दी। विडंबना यह है कि जिस थाने ने यह कृत्य किया, उसे हाल ही में देश के सर्वश्रेष्ठ थानों में से एक का पुरस्कार मिला था।

क्या है पूरा मामला?

घटना अगस्त 2025 की है। सोहनलाल, जो जोधपुर का निवासी है, बस से अपने रिश्तेदारों के यहां जा रहा था। जब बस मल्हारगढ़ (MP) के पास पहुंची, तो उसे अचानक रोक लिया गया। सादे कपड़ों में कुछ लोग बस में चढ़े और सोहन को जबरदस्ती उतार कर ले गए।

हैरानी की बात यह थी कि पुलिस के पास न तो कोई वारंट था और न ही कोई कारण। सोहन के पास से मौके पर कुछ भी बरामद नहीं हुआ था। लेकिन अपनी कार्यवाही को “सफल” दिखाने के लिए पुलिस ने थाने में यह दर्ज किया कि सोहन के पास से 2.7 किलोग्राम अवैध अफीम बरामद हुई है। NDPS एक्ट के तहत उसे तुरंत जेल भेज दिया गया, जिसमें जमानत मिलना बेहद मुश्किल होता है।

CCTV फुटेज ने खोली पोल

पुलिस को लगा कि उनका यह झूठ कभी सामने नहीं आएगा और वे इसे एक “बड़ी सफलता” बताकर वाहवाही लूट लेंगे। लेकिन वे एक बड़ी गलती कर गए। जिस बस से सोहन को उतारा गया था, उसमें सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था।

फुटेज में साफ देखा गया कि:

  1. पुलिसवाले सोहन को दिन में 11:39 बजे बस से उतार रहे थे।
  2. सोहन के हाथ पूरी तरह खाली थे और उसके पास कोई बैग या संदिग्ध वस्तु नहीं थी।
  3. इसके विपरीत, पुलिस ने FIR में गिरफ्तारी का समय शाम 5:00 बजे और स्थान कहीं और बताया था।

हाई कोर्ट की फटकार और SP की माफी

जब यह वीडियो वायरल हुआ और मामला इंदौर हाई कोर्ट पहुंचा, तो जजों ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। सबूत इतने पुख्ता थे कि मंदसौर के एसपी (SP) को कोर्ट में तलब किया गया।

दिसंबर 2025 में हुई सुनवाई के दौरान, एसपी ने कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि मल्हारगढ़ पुलिस की जांच “असंवैधानिक और अवैध” थी। उन्होंने माना कि वीडियो में दिख रहे लोग पुलिसकर्मी ही थे (जिन्हें पहले पहचानने से इनकार किया गया था)। एसपी ने कोर्ट से माफी मांगी और टीआई (TI) सहित दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर विभागीय जांच के आदेश दिए। तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद, सोहन को आखिरकार जमानत मिली।

“बेस्ट पुलिस स्टेशन” का तमगा

इस मामले का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि हाल ही में गृह मंत्रालय द्वारा जारी रैंकिंग में मल्हारगढ़ पुलिस स्टेशन को देश के टॉप-10 थानों में जगह मिली थी। एक तरफ सरकार इसे “बेस्ट” बता रही थी, और ठीक उसी समय उसी थाने के अधिकारी एक निर्दोष छात्र की जिंदगी बर्बाद करने की साजिश रच रहे थे।

यह घटना एक डरावनी सच्चाई बयां करती है। अगर उस बस में सीसीटीवी न होता, तो शायद सोहन आज भी जेल में सड़ रहा होता और उसे हमेशा के लिए एक “ड्रग तस्कर” मान लिया जाता। यह मामला न केवल पुलिस सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी बताता है कि तकनीकी साक्ष्य (Technical Evidence) आज के समय में आम आदमी की सुरक्षा के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।

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