बिहार की चुनावी राजनीति में मोकामा विधानसभा क्षेत्र को ‘बाहुबल का बैरोमीटर’ कहा जाता है। 30 अक्टूबर 2025 को हुई 75 वर्षीय यादव नेता दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि इस हॉट सीट पर सत्ता का फैसला आज भी मतपेटी से ज़्यादा, बंदूक की नली से होता है। यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि दशकों पुरानी भूमिहार बनाम यादव बाहुबली प्रतिद्वंद्विता का खूनी अध्याय है, जिसने राज्य में पहले चरण के मतदान से ठीक पहले कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मोकामा वह सीट है जहाँ चुनाव को हमेशा “बाहुबली vs बाहुबली” की सीधी जंग के रूप में देखा गया है । यहाँ की राजनीतिक सत्ता संगठित आपराधिक बल के दम पर चलती रही है। दुलारचंद यादव हत्याकांड इसी क्रूरता का नया प्रमाण है।
दुलारचंद यादव: कौन था निशाना?
मृतक दुलारचंद यादव मोकामा क्षेत्र में एक अनुभवी और प्रभावशाली यादव नेता थे । उनकी राजनीतिक जड़ें 1990 के दशक में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के करीबी सहयोगी के तौर पर जुड़ी थीं । यह वह दौर था जब यादव राजनीति अपने चरम पर थी।
हत्या के समय, दुलारचंद यादव एक भूमिहार विरोधी गठबंधन के लिए काम कर रहे थे। वह प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के स्थानीय उम्मीदवार, पीयूष प्रियदर्शी उर्फ लल्लू मुखिया (जो धानुक समाज से आते हैं) के लिए प्रचार की कमान संभाले हुए थे । यादव-बहुल क्षेत्र में दुलारचंद की संगठनात्मक क्षमता विरोधी खेमे के लिए एक मज़बूत आधार थी। उनकी हत्या करके, कथित तौर पर बाहुबली अनंत सिंह के गुट ने विरोधी खेमे के लिए सबसे ज़रूरी जातिगत समर्थन और अनुभवी नेतृत्व को ही खत्म कर दिया ।
यह हत्याकांड स्पष्ट करता है कि मोकामा में चुनावी टक्कर सामान्य नहीं है; यह एक अत्यधिक स्थानीय प्रॉक्सी युद्ध है, जहाँ शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए हिंसा एक रणनीतिक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल की जा रही है।
30 अक्टूबर की रात: मौत का तांडव
दुलारचंद यादव की हत्या पटना जिले के मोकामा ताल क्षेत्र के बसावनचक गाँव के पास, गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025 को हुई थी । यह खूनी टकराव तब शुरू हुआ जब जन सुराज उम्मीदवार (दुलारचंद द्वारा समर्थित) और बाहुबली अनंत सिंह के गुट से जुड़ी गाड़ियों के काफिले अचानक आमने-सामने आ गए, जिसके बाद दोनों पक्षों में तीखी बहस हुई ।
जन सुराज नेताओं के अनुसार, अनंत सिंह के ‘छोटे सरकार’ गुट से जुड़ी गाड़ी का पीछा कर रहे उनके काफिले पर अचानक हमला हुआ। करीब 20-25 लोगों के एक समूह ने लाठी और लोहे की रॉड से हमला बोल दिया । इस भयानक अराजकता के बीच:
- दुलारचंद यादव को पहले लाठी-डंडों से बेरहमी से पीटा गया ।
- उन्हें गोली मारी गई, जिससे उनके टखने पर चोट आई ।
- विरोधी पक्ष ने आरोप लगाया कि अनंत सिंह के समर्थकों से संबंधित एक वाहन ने उन्हें जानबूझकर कुचल दिया ।
हमले के तरीके—पिटाई, गोलीबारी, और वाहन से कुचलने का आरोप—की क्रूरता बताती है कि यह सिर्फ एक झड़प नहीं थी। यह एक सुनियोजित दंडात्मक कार्रवाई थी, जिसका मक़सद विरोधी आयोजकों के मनोबल को गंभीर रूप से गिराना और भय का माहौल पैदा करना था ।
पुलिस की कार्रवाई और कानूनी स्थिति
घटना की सूचना मिलते ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे। ग्रामीण एसपी विक्रम सिहाग और बाढ़-2 के एसडीपीओ अभिषेक सिंह ने झड़प और गोलीबारी की पुष्टि की । पुलिस ने प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने और साक्ष्य जुटाने के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) की टीमों को बुलाने की बात कही ।
बाहुबल का गणित : संरक्षण और जाति की खाई
मोकामा में हिंसा की जड़ें ऐतिहासिक जातिगत दुश्मनी में हैं, जहाँ मुख्य शक्ति संघर्ष भूमिहारों (अनंत सिंह और सूरजभान सिंह का समुदाय) और यादवों के बीच केंद्रित है । राजनीतिक दल अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हमेशा से इन जातिगत समीकरणों का फायदा उठाते रहे हैं।
दुलारचंद यादव की हत्या ने इस पुराने संघर्ष को तत्काल ध्रुवीकृत कर दिया, यह साबित करते हुए कि मोकामा में सत्ता संघर्ष जातिगत नियंत्रण के लिए लड़ा जाने वाला एक प्रॉक्सी युद्ध है ।
‘जंगल राज’ का डर
एक अनुभवी यादव नेता की हत्या तुरंत 1990 के दशक के “जंगल राज” की भयावह यादें ताज़ा करती है । राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस हत्या की कड़ी निंदा की और सवाल उठाया कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बावजूद कुछ लोग “बंदूकें और गोलियां लेकर घूम रहे हैं” ।
यह टिप्पणी सुरक्षा प्रोटोकॉल में एक गंभीर चूक को उजागर करती है। यदि बाहुबली गुट खुले तौर पर हथियार प्रदर्शित करने और राजनीतिक विरोधियों की हत्या करने में सक्षम हैं, तो यह स्थानीय पुलिस की क्षमता पर संदेह पैदा करता है।
संरक्षण का तंत्र
बिहार में बाहुबल की संस्कृति इसलिए ज़िंदा है क्योंकि राजनीतिक दल—विचारधारा से परे—अक्सर अपने उम्मीदवारों और सहयोगियों को खुला संरक्षण (संरक्षण) प्रदान करते हैं । विपक्षी नेताओं ने तो यह भी आरोप लगाया कि कुछ लोग “पैरोल पर इन लोगों को बाहर किया” और प्रशासन के लोग “केवल अपराधी को संरक्षण देने के लिए बैठे हैं” ।
दुलारचंद हत्याकांड जैसी घटनाएँ बताती हैं कि जब तक राजनीतिक संरचना बाहुबलियों को आश्रय देती रहेगी, तब तक चुनावी प्रक्रिया असुरक्षित रहेगी। यह पैटर्न दर्शाता है कि राजनीतिक आवश्यकताएं संस्थागत क्षमता (पुलिस और प्रशासन) को कमजोर करती रहती हैं, जिससे हिंसा मोकामा की लोकतांत्रिक प्रथा की एक चक्रीय विशेषता बन जाती है।
यह सिर्फ़ एक हत्या नहीं, एक चेतावनी है
दुलारचंद यादव की हत्या बिहार की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक सीधा खतरा प्रस्तुत करती है। यह घटना दर्शाती है कि अनंत सिंह जैसे बाहुबलियों की शक्ति अटूट बनी हुई है, जिनकी राजनीतिक किस्मत उनकी क्रूरता की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है । मोकामा राजनीतिक अपराधीकरण का एक आदर्श उदाहरण बन गया है, जहाँ हिंसा चुनावी ध्रुवीकरण और ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक संगठन को पंगु बनाने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में काम करती है।
यदि चुनाव आचार संहिता के दौरान भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याएं होती हैं और खुलेआम हथियार लहराए जाते हैं, तो यह शासन की नैतिक विफलता को दिखाता है। इस चक्र को तोड़ने के लिए यह अनिवार्य है कि मोकामा जैसे हॉटस्पॉट में स्थानीय पुलिस पर राजनीतिक प्रभाव को बेअसर किया जाए और चुनावी हिंसा से जुड़े मामलों को तेजी से निपटाने के लिए विशेष कानूनी प्रावधान किए जाएं। जब तक बाहुबल को राजनीतिक आश्रय मिलता रहेगा, तब तक मोकामा में लोकतांत्रिक चुनाव एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति न होकर केवल शक्ति प्रदर्शन का मैदान बने रहेंगे।






















