Mobile Only Menu
  • Home
  • शिक्षा
  • नालंदा विश्वविद्यालय में आसियान देशों के साथ मिलकर एक नई शुरुआत
nalanda university asean

नालंदा विश्वविद्यालय में आसियान देशों के साथ मिलकर एक नई शुरुआत

राजगीर – बिहार के राजगीर में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय ने हाल ही में दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों (आसियान) के साथ एक बड़ी साझेदारी दिखाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अक्टूबर को मलेशिया में आयोजित 22वें आसियान-भारत सम्मेलन में घोषणा की थी कि नालंदा में “दक्षिण-पूर्व एशिया पढ़ाई का केंद्र” खोला जाएगा।​

विश्वविद्यालय के सामने की दीवार पर विभिन्न देशों के झंडे लगे हैं – वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, ब्रुनेई, फिलीपींस और भारत का तिरंगा। ये सब झंडे आसियान-भारत विश्वविद्यालय नेटवर्क की ताकत को दिखाते हैं।

nalanda university asean

प्राचीन नालंदा: ज्ञान का सबसे बड़ा घर

नालंदा विश्वविद्यालय 5वीं सदी में बनाया गया था जब गुप्त राजा कुमारगुप्त ने इसे स्थापित किया था। यह लगभग 800 साल तक दुनिया का सबसे अच्छा शिक्षा स्थल रहा। यहां करीब 10,000 विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक थे जो खगोल विज्ञान, गणित, दवाई, दर्शन और भाषा सीखते-सिखाते थे।

7वीं सदी में एक चीनी यात्री ह्वेनसांग ने नालंदा का दौरा किया। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि यहां 8 बड़े परिसर, 427 कक्षाएं और 3 विशाल पुस्तकालय थे। सबसे अच्छी बात यह थी कि विद्वान चीन, तिब्बत, कोरिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका से यहां पढ़ने आते थे। इसीलिए नालंदा को दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय माना जाता है।

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के पुराने रिश्ते

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया (वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया वगैरह) के बीच हजारों साल पुरानी मैत्री है। समुद्र के रास्ते से भारतीय व्यापारी और शिक्षक इन देशों में जाते थे। हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म इसी तरह इन देशों में पहुंचे।

आज भी कंबोडिया में अंगकोर वाट मंदिर, इंडोनेशिया में बोरोबुदुर और वियतनाम के पुराने मंदिर हमारी साझी संस्कृति का प्रमाण हैं। इन देशों में आज भी संस्कृत भाषा के शब्द, भारतीय कला और पुरानी भारतीय परंपराएं मिलती हैं।

26 अक्टूबर 2025: एक बड़ी घोषणा

प्रधानमंत्री मोदी ने मलेशिया में बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय में “दक्षिण-पूर्व एशिया पढ़ाई का केंद्र” खोला जाएगा। इस केंद्र में भारत और आसियान के विद्वान मिलकर पढ़ाई करेंगे। यहां नीति पर चर्चा भी होगी और साझी शोध भी होगी।​​

प्रधानमंत्री ने कहा: “21वीं सदी हमारी सदी है – भारत और आसियान की सदी”। इसका मतलब यह है कि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश मिलकर आगे बढ़ेंगे। ठीक जैसे प्राचीन समय में नालंदा में दुनिया भर के विद्यार्थी आते थे।

यह तस्वीर में दिख रहे सभी झंडे दिखाते हैं कि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया कितनी गहराई से जुड़े हुए हैं।

भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी”: क्या है?

2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” शुरू की। इसका मतलब है – सिर्फ देखना नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से आगे बढ़ना। यह नीति तीन मुख्य बातों पर आधारित है:

व्यापार और पैसे का रिश्ता: भारत दक्षिण-पूर्व एशिया से ज्यादा व्यापार करे और निवेश बढ़े। आज आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है।

संस्कृति और सीखने का रिश्ता: शिक्षा, कला और संस्कृति के जरिए देशों को जोड़ना।

सुरक्षा और रक्षा का रिश्ता: क्षेत्र को सुरक्षित रखना और मजबूत करना।

नालंदा विश्वविद्यालय की आज की भूमिका

आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय को 2010 में फिर से शुरू किया गया। पहले से ही यहां आसियान देशों के साथ कई अच्छे काम चल रहे हैं:

छात्रों को पैसे देना: भारत की सरकार आसियान देशों के छात्रों को मास्टर और डॉक्टर डिग्री के लिए छात्रवृत्ति देती है। हर साल 80 छात्रों को मास्टर के लिए और 10 को डॉक्टर की पढ़ाई के लिए पैसे दिए जाते हैं।

खास कोर्स: यहां “हिंद महासागर में व्यापार के रास्ते”, “दक्षिण-पूर्व एशिया में रामायण की कहानियां”, “एशिया में ऊर्जा” जैसी खास कक्षाएं पढ़ाई जाती हैं।

बंगाल की खाड़ी का अध्ययन केंद्र: 2018 में यह केंद्र खोला गया जहां इस क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, कला और पुरानी व्यापार कहानियों पर काम किया जाता है।

नया केंद्र क्या करेगा?

यह नया दक्षिण-पूर्व एशिया पढ़ाई केंद्र भारत और आसियान के शिक्षकों, विद्वानों और राजनीतिक नेताओं को एक मंच देगा। यहां:

  • संयुक्त रूप से शोध कार्य होगा
  • पढ़ाई के प्रोग्राम चलेंगे
  • क्षेत्र की समस्याओं पर चर्चा होगी
  • युवा नेताओं को मौका मिलेगा

नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने कहा: “यह हमारे विश्वविद्यालय के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण समय है”

1600 साल बाद फिर से मिलन

यह सब कुछ कितना दिलचस्प है! 1600 साल पहले चीन, तिब्बत और दक्षिण-पूर्व एशिया के विद्वान नालंदा में पढ़ने आते थे। अब फिर से वही परंपरा शुरू हो रही है – बस इस बार नई तकनीक और नई पढ़ाई के साथ।

प्रधानमंत्री ने कहा: “आसियान भारत की पॉलिसी की बुनियाद है”। नालंदा में यह नया केंद्र साबित करेगा कि भारत सिर्फ बातों में नहीं, बल्कि काम में भी दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ जुड़ा है।

बिहार के लिए यह गर्व की बात है कि प्राचीन काल का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय आज भी विश्व के ज्ञान का केंद्र बनने के रास्ते पर है। नालंदा फिर से दुनिया को रोशनी दिखा रहा है!

Releated Posts

बिहार AI मिशन: खेत से लेकर टेक-सिटी तक, क्या सच में बदल जाएगी हमारी किस्मत?

बिहार का नाम सुनते ही अक्सर लोगों के दिमाग में क्या आता है? हरे-भरे खेत, मेहनत करने वाले…

ByByPrachi Singh Dec 18, 2025

शिवहर से शिखर तक: CLAT 2026 में यशवर्धन प्रताप की ऐतिहासिक जीत की कहानी

अक्सर कहा जाता है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती, वह अभावों में भी अपना रास्ता ढूंढ…

ByByPrachi Singh Dec 17, 2025

मुख्यमंत्री फेलोशिप योजना (Bihar CM Fellowship Scheme 2025)

फेलोशिप की राशि ₹1.5 लाख तक! बिहार के युवाओं के लिए सुनहरा अवसर अगर आप बिहार के निवासी…

ByByPrachi Singh Dec 16, 2025

NeGD Technical Internship 2025: ₹20,000 की स्टाइपेंड

अगर आप एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट हैं और कॉलेज के बोरिंग प्रोजेक्ट्स से हटकर कुछ ‘बड़ा’ करना चाहते हैं,…

ByByPrachi Singh Dec 15, 2025

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top