बिहार में प्लास्टिक पाइप्स की आठवीं फैक्ट्री लगाने वाली प्रिंस पाइप्स ने बेगूसराय में अपने सपनों को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है। 40 एकड़ की विशाल जमीन पर बनने वाली यह फैक्ट्री भारत के पूर्वी क्षेत्र को नई पहचान देने वाली है।

क्या है यह प्रोजेक्ट?
प्रिंस पाइप्स एंड फिटिंग्स लिमिटेड (पीपीएफएल) ने बेगूसराय, बिहार में एक अत्याधुनिक ग्रीनफील्ड प्लांट लगाने का फैसला किया है। यह प्रोजेक्ट कंपनी के लिए भारत में आठवां विनिर्माण संयंत्र है। इस नई फैक्ट्री की नींव 2024 में रखी गई थी और अब यह तेजी से तैयार हो रही है।
40 एकड़ की जमीन पर फैला यह प्लांट वास्तव में एक बहुत बड़ी चीज है। इसमें लगभग 3 लाख वर्गफुट का निर्मित क्षेत्र (बिल्ट-अप एरिया) बनाया जाएगा। इसका मतलब यह है कि यह प्लांट न सिर्फ बड़ा है, बल्कि अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होगा।
उत्पादन क्षमता क्या है?
शुरुआत में प्रिंस पाइप्स ने इस प्लांट की क्षमता लगभग 50,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) बताई थी, लेकिन अब यह बढ़कर कुल 60,000 MTPA हो गई है। यानी सालभर में यह फैक्ट्री 60,000 टन तक प्लास्टिक की पाइपें और फिटिंग्स बना सकती है।
पहले चरण में कंपनी ने 24,000 MTPA की क्षमता के साथ मार्च 2025 में उत्पादन शुरू कर दिया है। दूसरे चरण में बाकी क्षमता कुछ महीनों के अंदर जोड़ दी जाएगी। दूसरे चरण के लिए सितंबर 2025 तक काम पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है।
क्या बनाया जाएगा यहां?
यह फैक्ट्री तीन तरह की पाइपें बनाएगी:
यूपीवीसी पाइप्स – ये पाइपें पानी की आपूर्ति के लिए सबसे ज्यादा उपयोग होती हैं। ये मजबूत होती हैं और लंबे समय तक चलती हैं।
सीपीवीसी पाइप्स – ये गर्म पानी के लिए बेहतर हैं और उच्च तापमान को सहन कर सकती हैं।
एचडीपीई पाइपें – ये पाइपें सबसे ज्यादा लचकदार होती हैं और कृषि क्षेत्र में ड्रिप सिंचाई के लिए बहुत उपयोगी हैं।
इसके साथ ही कंपनी फिटिंग्स भी बनाएगी – ये वो छोटे-मोटे पार्ट्स होते हैं जो पाइपों को आपस में जोड़ते हैं।
बेगूसराय को क्यों चुना?
प्रिंस पाइप्स ने पूर्वी भारत को केंद्र में रखकर यह निर्णय लिया है। पूर्वी भारत तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन पिछड़ा हुआ है। यहां आबादी शहरों की ओर बढ़ रही है, जिसका मतलब है कि घर बनाना, पानी की सुविधा और बेहतर जीवन यापन की मांग बढ़ रही है।
इसके अलावा, एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरे बिहार और आसपास के राज्यों में अब तक प्लास्टिक पाइपों का उत्पादन नहीं के बराबर था। हरिद्वार (उत्तराखंड) जैसी दूर की जगह से पाइपें भेजी जाती थीं, जिससे परिवहन का खर्च बहुत आता था। बेगूसराय में यह प्लांट बनने से पूर्वी भारत के लिए सामान स्थानीय रूप से बन जाएगा। इससे कीमत कम होगी और डिलीवरी तेजी से हो सकेगी।
सरकारी योजनाओं से कनेक्शन
प्रिंस पाइप्स इस प्लांट को चालू करने का समय बिल्कुल सही निकाल पाए हैं। भारत सरकार के पास प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), जल जीवन मिशन (JJM) और अन्य बड़ी योजनाएं चल रही हैं। ये सभी योजनाएं हजारों लाखों घरों में पानी की पाइपें लगवा रही हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना से हर साल लाखों नए घर बन रहे हैं। जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण भारत में पानी की सुविधा दी जा रही है। ये सभी काम पाइपों के बिना संभव नहीं हैं। इसलिए पाइपों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है।
निवेश कितना है?
बेगूसराय के इस प्लांट पर कंपनी ने 170 करोड़ रुपये का निवेश किया है। यह बहुत बड़ी रकम है, लेकिन दीर्घकालीन विकास के लिए यह एक बुद्धिमानी भरा निवेश है।
रोजगार का अवसर
इस प्लांट से न सिर्फ पाइपें बनेंगी, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। हजारों लोग इस प्लांट में काम करेंगे – सीधे काम करने वाले लोग, इंजीनियर, स्किल्ड वर्कर, प्रशासनिक स्टाफ आदि। यह पूरे बिहार क्षेत्र के लिए एक बड़ी बात है।
कंपनी ने स्थानीय महिलाओं को प्लंबिंग और अन्य कौशल में प्रशिक्षण देने की भी योजना बनाई है। इससे महिलाएं भी स्वावलंबी बन सकेंगी।
प्रिंस पाइप्स का बड़ा नेटवर्क
यह प्लांट प्रिंस पाइप्स का आठवां विनिर्माण संयंत्र है। देशभर में कंपनी के अलग-अलग जगहों पर प्लांट्स हैं:
दादरा और नगर हवेली – अथल में फिटिंग्स की फैक्ट्री (1995 से)
दादरा – पाइप्स की बड़ी फैक्ट्री (2000 से)
हरिद्वार, उत्तराखंड – पाइप्स, फिटिंग्स और टैंक्स (2008 से)
चेन्नई, तमिलनाडु – पाइप्स और टैंक्स (2012 से)
कोल्हापुर, महाराष्ट्र – पाइप्स की फैक्ट्री (2012 से)
जयपुर, राजस्थान – पाइप्स और टैंक्स (2019 से)
सांगारेड्डी, तेलंगाना – पाइप्स, फिटिंग्स और टैंक्स (2021 से)
बेगूसराय, बिहार – नई फैक्ट्री (2025)
कुल मिलाकर, सभी आठ प्लांट्स की कुल क्षमता लगभग 4.24 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष है।
बिहार में औद्योगिक विकास
बेगूसराय को लेकर बिहार सरकार के भी बड़े सपने हैं। इस क्षेत्र को बिहार इकोनॉमिक डेवलपमेंट एरिया (BEDA) का हिस्सा बनाया गया है। इसी इलाके में पेप्सी की बड़ी फैक्ट्री बन रही है, एक मेडिकल कॉलेज बनाया जा रहा है, और अन्य कई उद्योग आ रहे हैं।
प्रिंस पाइप्स का यह प्लांट इसी औद्योगिक क्लस्टर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे पूरे क्षेत्र को विकास मिलेगा।
उत्पादन की गति
पहले चरण में (मार्च 2025 में) कंपनी ने 24,000 MTPA की क्षमता शुरू की। पहली साल में कंपनी को उम्मीद है कि वह 20,000 से 25,000 टन का विक्रय कर पाएगी। दूसरे साल में, जब पूरी क्षमता आ जाएगी, तो बिक्री तेजी से बढ़ेगी।
क्यों यह महत्वपूर्ण है?
यह प्रोजेक्ट केवल एक फैक्ट्री नहीं है। यह दर्शाता है कि भारत का प्लास्टिक पाइप इंडस्ट्री कितनी तेजी से बढ़ रहा है। सरकारी योजनाओं, आबादी बढ़ने और बेहतर जीवन यापन की मांग के चलते, आने वाले सालों में भारत में पाइपों की बहुत मांग होगी।
प्रिंस पाइप्स यह समझ गई है कि भारत का पूर्वी क्षेत्र अब आगे बढ़ने के लिए तैयार है। इसलिए उसने यह बड़ा निवेश किया है। बेगूसराय इस विकास का एक प्रतीक बन गया है।
भविष्य की योजना
प्रिंस पाइप्स के पास अभी और भी विस्तारण के प्लान हैं। जयपुर में कंपनी के पास 80 एकड़ की जमीन है और तेलंगाना में 50 एकड़ की। ये जमीनें भविष्य में और प्लांट्स लगाने के लिए रखी गई हैं।
कंपनी का लक्ष्य है कि भारत के हर कोने में इसके प्लांट हों, ताकि कहीं भी किसी को पाइप चाहिए तो वह आसानी से मिल सके।
प्रिंस पाइप्स का बेगूसराय प्लांट बिहार और पूर्वी भारत के लिए एक बड़ी सौगात है। यह न सिर्फ रोजगार देगा, बल्कि पूरे क्षेत्र का आर्थिक विकास करेगा। आने वाले साल में जब यह प्लांट पूरी क्षमता से काम करने लगेगा, तो भारत के प्लास्टिक पाइप्स इंडस्ट्री में एक नया मार्ग स्थापित होगा।















