19 से 21 दिसंबर को राजगीर में यह तीन दिनों का पर्व मनाया जाएगा। मेला राजगीर के इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर और आईसीसी-हॉकी मैदान के पास खुली जमीन पर लगेगा।

इस बार खास क्या है?
इस बार महोत्सव को ऐतिहासिक रंग दिया गया है। पहली बार राजगीर की धरोहरों – जरासंध अखाड़ा, शांति स्तूप और ब्रह्मकुंड की प्रतिमूर्तियां लगाई जाएंगी। आने वाले सैलानियों को इन जगहों का इतिहास सीखने का मौका मिलेगा। यानी, यह सिर्फ गीत-नृत्य का उत्सव नहीं, बल्कि नालंदा की समृद्ध विरासत से परिचय का भी त्योहार है।
संगीत का जादू -कैलाश खेर
कैलाश खेर – जिनकी आवाज़ “ओ लाल मेरिया” गीत से पूरी दुनिया में गूंजी थी – 19 दिसंबर की शाम को मंच पर होंगे। यह उनकी 12 साल की लंबी अनुपस्थिति के बाद वापसी है! उनके सूफी और लोक संगीत वाले गीतों से राजगीर की रात जादुई हो जाएगी।
महोत्सव का इतिहास पढ़ें तो यह कहानी बेहद रोचक है:
1986 में जब बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे ने इस उत्सव का उद्घाटन किया था, तो सोचा था कि खजुराहो नृत्य महोत्सव की तरह यह भी पर्यटकों को आकर्षित करेगा। लेकिन शुरुआत में यह मेल नहीं खा पाया। 1995 में जब इसे दोबारा शुरू किया गया, तब जाकर यह समझ में आया कि महोत्सव को आम लोगों के करीब लाना जरूरी है। तब से यह त्योहार बन गया।
मेले की रंगीनियाँ:
यहाँ सिर्फ बड़े कलाकारों का ही नहीं, स्थानीय प्रतिभा का मंच भी है। दिन के समय राजगीर के अपने गायक, नर्तक और कलाकार मंच पर आते हैं। महिला सशक्तीकरण को ध्यान में रखते हुए इस बार भी महिला महोत्सव का आयोजन होगा।
तांगा सज्जा, पालकी प्रतियोगिता, सद्भावना मार्च जैसी परंपरागत खेलों के साथ-साथ ग्रामीण व्यंजन मेला, कृषि मेला, हस्तशिल्प स्टॉल्स भी लगेंगे। इसका मतलब है – छोटे कारीगरों को बिक्री का सुअवसर और आपको असली देसी चीजें खरीदने का मौका।
राजगीर सज जाएगा:
जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि पूरा शहर “दुल्हन की तरह” सजाया जाएगा। सड़कों पर रौशनी, पानी की व्यवस्था, स्वच्छता और सुरक्षा – सब कुछ परफेक्ट होगा। होटलों और दुकानों को भी सजने के लिए कहा गया है।
भीड़ का मजा:
अगर आप घर बैठे सोच रहे हैं कि उत्सव देखूँ या नहीं, तो इतना जानिए – राजगीर का यह त्योहार अब एक पूरा अनुभव बन गया है। यहाँ बच्चों के झूले हैं, खेल-कूद की प्रतियोगिताएँ हैं, संगीत है, इतिहास है और अपनापन भी है।
यह कोई महंगा और डिस्टेंट त्योहार नहीं है – यह बिहार की अपनी जमीन पर, अपनी संस्कृति का जश्न है। राजगीर जैसी पवित्र जगह पर इसका आयोजन इसे और भी खास बनाता है।


















