हर साल 15 अक्टूबर का दिन भारत के लिए बहुत खास होता है। यह जन्मदिन है डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का, जिन्हें हम विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाते हैं । डॉ. कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति थे, एक महान वैज्ञानिक थे, और उन्हें ‘मिसाइल मैन’ के नाम से भी जाना जाता है । लेकिन इन सभी बड़ी उपाधियों से बढ़कर, उन्हें एक पहचान सबसे ज़्यादा प्यारी थी—एक शिक्षक की । राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी उन्होंने आराम नहीं चुना, बल्कि वे वापस छात्रों के बीच लौट आए, क्योंकि पढ़ाना और सिखाना उनका पहला प्यार था। उन्होंने अपनी ज़िंदगी की आखिरी साँस भी छात्रों को पढ़ाते हुए ही ली, जो शिक्षा के प्रति उनके गहरे लगाव को दिखाता है ।
कई लोग मानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र (UN) ने उनके जन्मदिन को ‘विश्व छात्र दिवस’ घोषित किया था, लेकिन यह सच नहीं है । असल में, यह सम्मान उन्हें किसी संस्था ने नहीं, बल्कि भारत के लोगों, खासकर छात्रों और शिक्षकों ने अपने दिलों से दिया है । यह एक तरह से “जनता की घोषणा” है, जो उनके “जनता के राष्ट्रपति” होने की बात को सच साबित करती है।
आज हम उनके छात्र जीवन की एक ऐसी कहानी जानेंगे, जो इंटरनेट पर बहुत मशहूर नहीं है, लेकिन यही कहानी बताती है कि क्यों उनका जन्मदिन हर छात्र के लिए एक त्योहार है।

एक सपना और बहन का बलिदान
यह कहानी शुरू होती है तमिलनाडु के छोटे से शहर रामेश्वरम से, जहाँ एक साधारण परिवार में कलाम का जन्म हुआ था । बचपन से ही उनकी नज़रें आसमान में उड़ने वाले पंछियों पर टिकी रहती थीं। उन्हें देखकर उनके मन में एक ही सपना पलता था—उड़ान भरने का सपना । अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें समझ आया कि अगर आसमान में उड़ने का सपना पूरा करना है, तो एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी होगी ।
उस ज़माने में इसके लिए सबसे अच्छा कॉलेज था मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT)। कलाम ने मेहनत करके दाखिले की परीक्षा तो पास कर ली, लेकिन एक बहुत बड़ी मुश्किल सामने खड़ी थी। कॉलेज की फीस थी एक हज़ार रुपये, जो उनके पिता के लिए जुटा पाना नामुमकिन था । एक पल को लगा कि उड़ान भरने से पहले ही कलाम के पंख कट गए हैं।
ऐसे मुश्किल वक़्त में उनकी बड़ी बहन ज़ोहरा आगे आईं। उन्होंने अपनी सोने की चूड़ियाँ और हार गिरवी रख दिए और कलाम की फीस का इंतज़ाम किया । अपनी बहन के इस प्यार और त्याग ने युवा कलाम के दिल पर बहुत गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने मन ही मन खुद से वादा किया कि अपनी पहली कमाई से वह अपनी बहन के गहने छुड़ाकर लाएंगे। यह सिर्फ़ पैसों की मदद नहीं थी, यह उनके परिवार का उनके सपनों पर अटूट भरोसा था। इसी भरोसे और ज़िम्मेदारी ने उस नींव को मज़बूत किया, जिस पर भविष्य के महान डॉ. कलाम की इमारत खड़ी होने वाली थी।
ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा: जब 72 घंटों में भविष्य दाँव पर था
यह कहानी कलाम के छात्र जीवन के उस मोड़ की है, जिसने उन्हें हमेशा के लिए बदल दिया। MIT में अपनी पढ़ाई के आखिरी साल में, कलाम और उनके चार दोस्तों को एक प्रोजेक्ट मिला। उन्हें एक लड़ाकू विमान का डिज़ाइन तैयार करना था । इस प्रोजेक्ट के हेड थे कॉलेज के डायरेक्टर, प्रोफेसर श्रीनिवासन, जो बहुत ही सख्त माने जाते थे ।
कुछ हफ़्तों बाद, प्रोफेसर ने काम देखा और वे उसकी धीमी रफ़्तार से बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने कलाम को अपने पास बुलाया और अपनी निराशा जताई। कलाम ने हिम्मत करके डिज़ाइन पूरा करने के लिए एक महीने का समय माँगा। लेकिन प्रोफेसर का जवाब किसी झटके से कम नहीं था। उन्होंने कहा, “एक महीना नहीं, मैं तुम्हें सिर्फ़ तीन दिन देता हूँ” ।
कलाम कुछ समझ पाते, इससे पहले प्रोफेसर ने अपनी सबसे कठोर शर्त रखी: “अगर सोमवार सुबह तक डिज़ाइन तैयार नहीं हुआ, तो तुम्हारी स्कॉलरशिप रद्द कर दी जाएगी” । यह सुनकर कलाम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यह स्कॉलरशिप उनके लिए सिर्फ़ पैसे नहीं थी, यह उनकी बहन के त्याग का सम्मान थी, उनके सपनों की इकलौती उम्मीद थी ।
उस रात कलाम ने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और ड्राइंग बोर्ड पर काम शुरू कर दिया। उन्होंने खाना-पीना, सोना-जागना सब छोड़ दिया। शुक्रवार की रात उन्होंने खाना नहीं खाया और शनिवार को सिर्फ़ एक घंटे का ब्रेक लिया । यह सिर्फ़ एक कॉलेज का काम नहीं था, यह उनके आत्म-सम्मान और अपने परिवार के भरोसे की परीक्षा थी।
रविवार की सुबह तक काम लगभग पूरा हो चुका था, तभी अचानक प्रोफेसर श्रीनिवासन कमरे में आ गए। उन्होंने खामोशी से डिज़ाइन को देखा। कलाम का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। कुछ पल बाद, प्रोफेसर मुस्कुराए, उन्होंने कलाम की पीठ थपथपाई और उन्हें गले लगा लिया । फिर उन्होंने जो कहा, वह कलाम के लिए ज़िंदगी भर का सबक बन गया। प्रोफेसर बोले, “मुझे पता था कि मैं तुम्हें एक नामुमकिन काम दे रहा था। मैं तुम पर दबाव डाल रहा था, क्योंकि मैं देखना चाहता था कि तुम मुश्किल हालात में कितना निखरते हो। मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इसे इतना शानदार तरीके से पूरा कर पाओगे” । यह कलाम के जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा थी, जिसमें तपकर वे कुंदन बन गए थे।
यही वे गुण हैं जो हर छात्र को अपने जीवन में अपनाने चाहिए। इसीलिए कलाम का जन्मदिन सिर्फ़ एक व्यक्ति का जन्मदिन नहीं, बल्कि हर छात्र के अंदर की हिम्मत, लगन और सपनों का उत्सव है।
एक अटूट रिश्ता: छात्रों के कलाम
डॉ. कलाम का छात्रों से रिश्ता हमेशा बहुत गहरा रहा। वे वैज्ञानिक बने, राष्ट्रपति बने, लेकिन दिल से हमेशा एक शिक्षक ही रहे । वे अक्सर कहते थे कि बच्चों और युवाओं से बात करना उनके लिए सबसे बड़ा सुख है । उनका सबसे प्रसिद्ध संदेश था, “सपने वो नहीं होते जो आप सोते समय देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते” ।
उनकी सादगी की कहानियाँ आज भी सुनाई जाती हैं। एक बार वे एक स्कूल में भाषण दे रहे थे और बिजली चली गई। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के बच्चों को अपने चारों ओर घेरा बनाकर बैठने को कहा और बिना माइक के बोलना जारी रखा । वे हमेशा बच्चों को सवाल पूछने के लिए encourge करते थे ।
और सबसे बड़ी बात, उनके जीवन का अंत भी उनके इसी रिश्ते का प्रतीक है। 27 जुलाई, 2015 को, जब वे IIM शिलांग में छात्रों को भाषण दे रहे थे, तभी उन्होंने अपनी आखिरी साँस ली । वे अपने जीवन के आखिरी पल तक वही काम कर रहे थे जो उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद था—युवाओं के सपनों को पंख देना। एक छात्र के रूप में शुरू हुई उनकी यात्रा, एक शिक्षक के रूप में पूरी हुई। यही वजह है कि उनका जन्मदिन ‘विश्व छात्र दिवस’ के रूप में मनाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है।
आज के छात्रों के लिए कलाम की सीख
डॉ. कलाम आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बातें और उनकी कहानी हमेशा हमारे साथ रहेगी। उनकी विरासत मिसाइलों या बड़े पदों में नहीं, बल्कि उन करोड़ों युवाओं के “प्रज्वलित मस्तिष्कों” (Ignited Minds) में ज़िंदा है, जिन्हें उन्होंने प्रेरणा दी ।
उनकी कहानी हमें सिखाती है कि हम चाहे कितने भी साधारण परिवार से क्यों न हों, हमारी परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हों, अगर हमारे सपनों में जान है और हम कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं। विश्व छात्र दिवस सिर्फ़ डॉ. कलाम को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि उनकी सिखाई बातों को जीवन में उतारने का दिन है। यह हर छात्र के लिए खुद से यह वादा करने का दिन है कि वे भी बड़े सपने देखेंगे और उन्हें पूरा करने के लिए जी-जान लगा देंगे ।