भखरा सिंदूर बिहार, खासतौर पर मिथिलांचल और पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक अनोखी परंपरा है जो सिर्फ एक श्रृंगार नहीं, बल्कि प्रेम, सौभाग्य और समर्पण की भावना को दर्शाता है।

रंग का मतलब क्या है?
भखरा सिंदूर दो रंगों का खूबसूरत मेल है। पहला है नारंगी या केसरिया रंग जो सूर्योदय की उस पहली लालिमा जैसा लगता है — जो नई शुरुआत, ऊर्जा और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। दूसरा है गुलाबी रंग जो प्यार और उत्सव को दर्शाता है। इन दोनों रंगों का एक साथ होना यह सुनिश्चित करता है कि दुल्हन के जीवन में शुभता, सौभाग्य और प्रेम की कभी कमी न हो।
विवाह में भखरा सिंदूर की जगह
शादी के समय दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। बिहार में इस रस्म को करते समय एक खास पात्र का इस्तेमाल किया जाता है — जिसके बीच में एक छिद्र होता है। दूल्हा इसी खास पात्र से सिंदूर को वधू की मांग में भरता है, और यही उसे भखरा सिंदूर बनाता है। इस पल में दूल्हा अपनी पत्नी को जीवन भर प्रेम और सुरक्षा देने का वादा करता है।
पति की लंबी उम्र का प्रतीक
हमारे संस्कार के अनुसार जब महिला भखरा सिंदूर लगाती है, तो वह अपने पति की लंबी और सुखी उम्र के लिए प्रार्थना करती है। विशेषकर छठ पूजा के दौरान महिलाएं नाक से लेकर मांग तक सिंदूर भरती हैं। इसके पीछे की भावना है — “हमारा सौभाग्य हमेशा उज्जवल रहे और हमारे पति की आयु बढ़े।”
कुदरती और शुद्ध
महत्वपूर्ण बात यह है कि असली भखरा सिंदूर पूरी तरह प्राकृतिक होता है। यह सिंदूरी बीज से निकाला जाता है, जिसमें कोई रासायनिक तत्व नहीं होता। यही कारण है कि धार्मिक और शास्त्रीय मान्यता में सिर्फ इसी भखरा सिंदूर (केसरिया रंग) का इस्तेमाल सही माना जाता है।
छठ पूजा और भखरा सिंदूर
छठ पूजा बिहार की सबसे बड़ी परंपरा है, और इस पर्व में भखरा सिंदूर का खासा महत्व है। घाट पर छठ व्रत करने वाली महिलाएं भखरा सिंदूर लगाती हैं क्योंकि वह अपने घर की खुशहाली और परिवार की समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।
एक वादे की कहानी
सच कहूँ तो भखरा सिंदूर सिर्फ एक रंग नहीं है। यह एक वादा है — विवाहित महिला द्वारा अपने पति और परिवार के लिए उम्र भर साथ निभाने का वादा। यह समर्पण, संस्कार और प्यार की एक खूबसूरत अभिव्यक्ति है जो बिहार की शादियों को खास और पवित्र बनाती है।
बिहार की यह परंपरा सिर्फ एक रीति-रिवाज नहीं है — यह हमारी संस्कृति की आत्मा है।
















