छठ पूजा, जिसे डाला छठ या सूर्य षष्ठी भी कहते हैं, भारत के सबसे खास और मुश्किल पर्व में से एक है। यह चार दिनों का पर्व सूर्य देव (सूरज भगवान) और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है । यह त्योहार केवल पूजा-पाठ नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, सेहत (स्वास्थ्य), परिवार के जुड़ाव, और अपने गाँव-घर वापस लौटने की भावना का प्रतीक है। यह बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके से शुरू होकर आज पूरी दुनिया में रहने वाले भारतीयों द्वारा मनाया जाता है ।
सूर्य देव और छठी मैया की पूजा
यह पर्व मुख्य रूप से दो देवताओं को समर्पित है:
- सूर्य देव (सूरज भगवान): इन्हें धरती पर जीवन और ऊर्जा का मुख्य स्रोत माना जाता है ।
- छठी मैया (छठी माता): इन्हें प्रकृति की देवी और सूर्य देव की बहन कहा जाता है । धार्मिक मान्यता है कि छठी मैया की पूजा से बच्चों को लंबी उम्र, अच्छा स्वास्थ्य और बीमारियों से सुरक्षा मिलती है ।
यह पूजा प्रकृति और जीवन देने वाली शक्तियों के प्रति आभार प्रकट करने का तरीका है ।
इतिहास की कहानियाँ
छठ पूजा का ज़िक्र हज़ारों साल पुराने ग्रंथों में मिलता है :
- रामायण से संबंध: माना जाता है कि माता सीता ने भी छठ पूजा का व्रत किया था । बिहार के मुंगेर में गंगा के बीच में एक मंदिर है जिसे सीता चरण मंदिर कहते हैं, यह भी छठ से जुड़ा हुआ है ।
- महाभारत से संबंध: महाभारत की कहानी के अनुसार, पांडवों के लाक्षागृह से बचने के बाद, माता कुंती ने भी छठ पूजा की थी ।

पवित्र कैलेंडर: छठ पूजा 2025 की तारीखें
छठ महापर्व साल में दो बार मनाया जाता है ।
यह दोनों बार हिंदू कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन दो अलग-अलग महीनों में:
- कार्तिक छठ (Kartik Chhath):
- यह वह छठ पूजा है जिसके बारे में लेख में विस्तार से बताया गया है।
- यह कार्तिक महीने में दिवाली के लगभग छह दिन बाद मनाया जाता है ।
- यह सबसे प्रमुख और बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला छठ पर्व है, जिसे ‘महापर्व’ के नाम से जाना जाता है।
- चैती छठ (Chaiti Chhath):
- यह पर्व चैत्र महीने में मनाया जाता है ।
- इसका अनुष्ठान और पूजा विधि कार्तिक छठ के समान ही होती है, लेकिन यह कार्तिक छठ की तुलना में कम व्यापक रूप से मनाया जाता है।
दोनों ही अवसर सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होते हैं ।
साल 2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाई जाएगी ।
दिन | तिथि (2025) | अनुष्ठान का नाम | मुख्य काम | तिथि |
दिन 1 | शनिवार, 25 अक्टूबर | नहाय-खाय | स्नान करके घर की सफाई करना। व्रत के नियम शुरू करना और सात्विक भोजन (बिना लहसुन-प्याज) खाना । | चतुर्थी |
दिन 2 | रविवार, 26 अक्टूबर | खरना | दिन भर निर्जला व्रत रखना। शाम को गुड़ और चावल की खीर/पूड़ी का प्रसाद खाना। 36 घंटे का निर्जला व्रत इसी के साथ शुरू होता है । | पंचमी |
दिन 3 | सोमवार, 27 अक्टूबर | संध्या अर्घ्य | बांस की टोकरी में प्रसाद सजाना । घाट पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देना। | षष्ठी |
दिन 4 | मंगलवार, 28 अक्टूबर | प्रातः अर्घ्य और पारण | उगते सूर्य को अर्घ्य देना (व्रत खत्म करना)। प्रसाद खाकर व्रत खोलना । | सप्तमी |
चार दिन के कड़े नियम और शुद्धता
छठ पर्व अपने कठोर नियमों और अनुशासन के लिए जाना जाता है। व्रती (व्रत रखने वाले) 36 घंटे तक न अन्न खाते हैं और न पानी पीते हैं ।
छठ पूजा के खास नियम
- निर्जला व्रत: यह सबसे मुश्किल नियम है, जिसमें व्रती 36 घंटे तक पानी की एक बूँद तक नहीं पीते ।
- जमीन पर सोना: व्रती को सादगी दिखाते हुए ज़मीन पर सोना ज़रूरी होता है ।
- तामसिक भोजन मना: नहाय-खाय के दिन से ही घर में प्याज, लहसुन या कोई भी ऐसा भोजन नहीं बनता है, जिसे ‘तामसिक’ (अशुद्ध) माना जाता है ।
- बांस की टोकरी: पूजा में सिर्फ बांस से बनी टोकरी या सूप का ही इस्तेमाल होता है ।
- प्रसाद की शुद्धता: प्रसाद केवल वही लोग बनाते हैं, जिन्होंने व्रत रखा हो। इसे बनाते समय साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है ।
मुख्य रस्में
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): शाम के समय व्रती पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को जल देते हैं, मंत्र पढ़ते हैं । इसी दिन, परिवार के लोग 5-7 गन्नों को बाँधकर एक मंडप बनाते हैं और नीचे दीपक (दीये) जलाकर प्रसाद रखते हैं, जिसे कोसी भराई कहते हैं ।
- प्रातः अर्घ्य (चौथा दिन): भोर (सुबह 3-4 बजे) में फिर से घाट पर जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है । इसके बाद व्रती महिलाएं, विवाहित महिलाओं को प्रसाद (ठेकुआ, भुसवा) से भरी टोकरी देती हैं, जिसे खोईंछ कहते हैं। यह आशीर्वाद लंबी आयु और खुशहाल शादीशुदा जीवन के लिए होता है ।
प्रसाद का राजा: ठेकुआ
ठेकुआ क्या है और कैसे बनता है? ठेकुआ गेहूँ के आटे में गुड़ (गुड़ शुद्धता के लिए पसंद किया जाता है) या चीनी मिलाकर और घी (मोयन) डालकर बनाया जाता है ।
- इसे बनाने के लिए आटा सख्त गूंथा जाता है।
- इसे धीमी या मध्यम आंच पर कुरकुरा होने तक तला जाता है ।
ठेकुआ क्यों खास है? ठेकुआ को जानबूझकर बिस्किट (कुकीज़) की तरह कुरकुरा बनाया जाता है ताकि इसे 15 से 20 दिनों तक खराब होने से बचाया जा सके । चूँकि लाखों लोग त्योहार मनाने के बाद वापस शहर जाते हैं, इसलिए यह प्रसाद उन्हें साथ ले जाने और कई दिनों तक दोस्तों-रिश्तेदारों में बाँटने के लिए बिल्कुल सही होता है।
बाकी प्रसाद: ठेकुआ के अलावा, प्रसाद की टोकरी में गन्ना, नारियल, और मौसमी फल जैसे नींबू और अंकुरित अनाज भी रखे जाते हैं ।
बिहार से दुनिया तक छठ पूजा की लोकप्रियता
छठ पूजा की शुरुआत बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्रों से हुई । लेकिन आज, यह त्योहार भारत के हर बड़े शहर (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता) और पूरी दुनिया में मनाया जाता है ।
विदेशों में रहने वाले भारतीय, जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, और संयुक्त अरब अमीरात में, इस पर्व को पूरी श्रद्धा से मनाते हैं । जहाँ नदियाँ नहीं होतीं, वहाँ लोग कृत्रिम घाट (Artificial Ponds) बनाकर भी पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने की परंपरा को निभाते हैं ।
छठ महापर्व क्यों माना जाता है?
छठ को महापर्व इसलिए कहते हैं क्योंकि यह कई अच्छी बातों को जोड़ता है:
- सकारात्मक ऊर्जा: सूर्य देव को जल चढ़ाने से मन में खुशी और जीवन में नई ऊर्जा आती है ।
- परिवार की रक्षा: यह व्रत संतान और पूरे परिवार की सुख-शांति, स्वास्थ्य और सफलता के लिए किया जाता है ।
- प्रकृति का सम्मान: यह पर्व हमें प्रकृति की पूजा करने और पर्यावरण को साफ रखने का संदेश देता है ।
छठ पूजा आज भी लोगों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने और परिवार को एक साथ लाने का सबसे बड़ा माध्यम है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि शुद्धता, अनुशासन और प्रकृति का सम्मान ही सबसे बड़ी आस्था है।