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“तेज़ GDP, लेकिन ज़ीरो SEZ: बिहार की औद्योगिक पहेली”

जब देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और भारत में 276 विशेष आर्थिक ज़ोन (SEZ) पूरी तरह काम कर रहे हैं , जो निर्यात और रोज़गार को जबरदस्त रफ़्तार दे रहे हैं, तब बिहार में इनकी संख्या ज़ीरो है.   

तमिलनाडु (49 SEZ), कर्नाटक (38) और महाराष्ट्र (36) जैसे राज्य इस औद्योगिक दौड़ में सबसे आगे हैं [Map Image]. यहाँ तक कि हमारे पड़ोसी झारखंड में भी 1 SEZ काम कर रहा है. लेकिन, बिहार में केवल 2 SEZ को कागज़ों पर मंज़ूरी मिली है, मगर उनमें से कोई भी शुरू नहीं हो पाया है.   

यह सवाल खड़ा करता है: क्या बिहार को इन निर्यात-केंद्रित ज़ोन की ज़रूरत नहीं, जबकि यहाँ की अर्थव्यवस्था 14.5% की रफ़्तार से बढ़ रही है ? या फिर इसके पीछे कोई नीतिगत या प्रशासनिक कमज़ोरी है? आइए, इस पहेली को तीन हिस्सों में समझते हैं.

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SEZ क्यों ज़रूरी हैं: विकास में इसकी भूमिका और फ़ायदे

SEZ, यानी स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, एक ऐसा इलाका होता है जहाँ सरकारें कंपनियों को व्यापार करने के लिए सबसे अच्छी सुविधाएँ देती हैं. ये ज़ोन किसी भी राज्य के आर्थिक विकास के लिए बेहद ज़रूरी हैं क्योंकि ये बड़े पैमाने पर निवेश लाते हैं और हज़ारों लोगों को पक्की नौकरियाँ देते हैं .

सबसे बड़े आर्थिक फ़ायदे:

  • टैक्स और ड्यूटी में छूट: SEZ यूनिट्स को निर्यात से होने वाली कमाई पर पहले 5 सालों तक 100% इनकम टैक्स में छूट मिलती है, और अगले 5 सालों के लिए भी यह 50% रहती है . इतना ही नहीं, कंपनियाँ अपने उत्पादन के लिए कच्चा माल और मशीनरी बिना किसी कस्टम ड्यूटी (सीमा शुल्क) के आयात कर सकती हैं.   
  • तेज़ काम: SEZ में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से जुड़े सभी तरह के अप्रूवल और मंज़ूरी एक ही जगह से, यानी ‘सिंगल विंडो’ के ज़रिए मिल जाते हैं, जिससे काम जल्दी हो जाता है .
  • पक्की नौकरियाँ: राष्ट्रीय स्तर पर, SEZ ने लाखों औपचारिक (Formal) नौकरियाँ दी हैं. बिहार की आधी आबादी (करीब 49.6%) आज भी खेती पर निर्भर है. SEZ इस आबादी को बेहतर और स्थायी रोज़गार देकर पलायन रोकने में मदद कर सकते हैं.   

शून्य SEZ का कारण

बिहार में SEZ न होने का मुख्य कारण ऐतिहासिक तौर पर राजनीतिक फ़ैसला रहा है, न कि ज़रूरत की कमी.

ज़मीन अधिग्रहण का डर

2007 में, राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने SEZ की स्थापना की संभावना को सीधे तौर पर ख़ारिज कर दिया था. इसका मुख्य कारण किसानों का संभावित विरोध था. सरकार का साफ़ रुख था कि उद्योगों के लिए ज़मीन तभी ली जाएगी जब लोग अपनी मर्ज़ी से देंगे, ज़बरदस्ती नहीं. चूंकि SEZ के लिए बड़ी ज़मीन चाहिए होती है, इसलिए इस राजनीतिक जोखिम से बचने के लिए SEZ मॉडल को ही किनारे कर दिया गया. केंद्र सरकार ने भी पुष्टि की थी कि बिहार सरकार की तरफ़ से SEZ स्थापित करने का कोई प्रस्ताव उनके पास लंबित नहीं था .   

प्रशासनिक दस्तावेज़ों में देरी

हाल ही में, चीज़ें थोड़ी बदली हैं. केंद्र सरकार ने बक्सर के नवा नगर और पश्चिम चंपारण के कुमारबाग में दो SEZ साइटों को मंज़ूरी दी है. यह साइटें निर्यात-उन्मुख उद्योगों (जैसे टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स) के लिए अच्छी मानी गई हैं.   

मगर ये दोनों साइटें अब तक ऑपरेशनल नहीं हो पाई हैं. कारण यह है कि बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (BIADA) की तरफ़ से ज़मीन से जुड़े कुछ ज़रूरी काग़ज़ात (Schedule of land) अभी भी केंद्र सरकार को मिलने बाक़ी हैं. जब तक ये काग़ज़ात जमा नहीं होते, इन अनुमोदित SEZs को पूरी तरह से शुरू करने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती.   

बिहार में SEZ कहाँ बनने चाहिए?

SEZ मॉडल को बिहार की बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन पैकेज (BIIPP) 2025 नीति का पूरक (Complementary) बनना चाहिए. जहाँ BIIPP 2025 मुफ्त ज़मीन और पूँजी सब्सिडी जैसे राज्य-स्तरीय फ़ायदे देती है , वहीं SEZ केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले ड्यूटी-फ्री और टैक्स-फ्री फ़ायदों के लिए ज़रूरी है, जो अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को चाहिए .   

SEZ के लिए सबसे बेहतरीन जगहें वे हैं जहाँ ज़मीन सुरक्षित है और लॉजिस्टिक्स अच्छे हैं:

  1. कुमारबाग और नवा नगर: इन दोनों मंज़ूरशुदा SEZ को तुरंत चालू करना चाहिए. ये साइटें टेक्सटाइल (कपड़ा) और ऑटो कंपोनेंट जैसे निर्यात-केंद्रित उद्योगों के लिए आदर्श हैं.   
  2. गया IMC (Integrated Manufacturing Cluster): गया में 1,670 एकड़ ज़मीन पर एक विशाल औद्योगिक क्लस्टर विकसित हो रहा है. यहाँ ज़मीन सुरक्षित है और बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर (NH-19, हवाई अड्डे और हल्दिया पोर्ट तक अच्छी पहुँच) उपलब्ध है. इस IMC के एक हिस्से को SEZ में बदलकर ज़मीन अधिग्रहण के जोखिम से बचा जा सकता है, और कंपनियों को टैक्स छूट का फ़ायदा भी मिलेगा.   
  3. फतुहा (पटना क्षेत्र): पटना के पास फतुहा में फ़िनटेक सिटी परियोजना के लिए ज़मीन मंज़ूर हुई है . राजधानी से कनेक्टिविटी और शिक्षित युवाओं की उपलब्धता इसे आईटी/आईटीईएस (IT/ITES) जैसे सर्विस SEZ के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है.   

हाइब्रिड मॉडल ही समाधान

बिहार में SEZ की कमी ऐतिहासिक राजनीतिक कारणों और वर्तमान प्रशासनिक देरी का नतीजा है. अगर बिहार को दुनिया भर से निवेश लाना है और बड़े पैमाने पर पक्की नौकरियाँ देनी हैं, तो उसे एक ‘हाइब्रिड मॉडल’ अपनाना होगा.

इस मॉडल में, BIIPP 2025 के तहत राज्य की सब्सिडी  और SEZ के तहत केंद्र के टैक्स-ड्यूटी फ़ायदे  को मिलाना ज़रूरी है. तभी बिहार वैश्विक निवेश के लिए सबसे आकर्षक जगह बन पाएगा.   

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