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छठ पूजा में ‘अर्घ्य’ (Argh) का मतलब क्या है?

छठ पूजा में ‘अर्ध्य’ का सीधा मतलब होता है ‘समर्पण’ या ‘भेंट’। यह एक ऐसा पवित्र तरीका है जिससे हम किसी पूजनीय शक्ति को जल या दूध चढ़ाकर अपना सम्मान और आभार प्रकट करते हैं।

छठ पूजा में, ‘अर्ध्य’ देना सबसे खास और ज़रूरी रस्म (ritual) है। यह भक्तों की तरफ से सूर्य देव को दी जाने वाली एक श्रद्धापूर्ण भेंट होती है। यह कोई मामूली पूजा नहीं, बल्कि दिल से किया गया समर्पण है।

chhath puja 2025

कब दिया जाता है अर्ध्य?

छठ पूजा चार दिनों का महापर्व है, और इसमें अर्ध्य दो बार दिया जाता है:

1. पहला अर्ध्य: डूबते हुए सूरज को (इसे संध्या अर्ध्य या संझिया अर्घ्य कहते हैं)।

2. दूसरा अर्ध्य: अगले दिन उगते हुए सूरज को (इसे उषा अर्ध्य या भोरवा अर्घ्य कहते हैं)।

सूरज को अर्ध्य देना सिर्फ एक रस्म नहीं है। यह सूरज की शक्ति, ऊर्जा और जीवन देने के लिए उनके प्रति अपना आभार (gratitude) और गहरी भक्ति दिखाने का तरीका है।

अर्ध्य कैसे दिया जाता है?

यह दृश्य अपने आप में बहुत ही भावुक और पवित्र होता है।

तैयारी: भक्त ‘सूप’ (बाँस की टोकरी) में तरह-तरह के फल, छठ का खास प्रसाद ‘ठेकुआ‘, गन्ना, नारियल और जलते हुए दीये सजाते हैं।

समर्पण: इसके बाद, व्रती (व्रत रखने वाले) किसी नदी, तालाब या घाट के पानी में कमर तक खड़े होते हैं।

अर्ध्य देना: फिर, हाथ जोड़कर, सूप में रखी पूजन सामग्री को लेकर, जल या दूध के साथ सूर्य देव को अर्ध्य देते हैं। यह एक तरह से प्रतीकात्मक भेंट होती है। भक्त मानते हैं कि ऐसा करने से उन्हें सूर्य देव की ऊर्जा और उनका आशीर्वाद मिलता है।

अर्ध्य का भाव:

छठ पूजा में अर्ध्य देने का पल बहुत ही शुद्ध और भावनात्मक होता है। यह सिर्फ सूर्य देव को ही नहीं, बल्कि छठी मैया (जो संतान और परिवार की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं) को भी धन्यवाद कहने का मौका होता है। यह पल बताता है कि भक्त पूरी श्रद्धा से प्रकृति और जीवन के दाता (सूर्य) का सम्मान करते हैं।

व्रत और अर्ध्य का रिश्ता:

अर्ध्य देने से पहले भक्त निर्जला व्रत (जिसमें बिना पानी पिए और बिना खाना खाए उपवास रखा जाता है) करते हैं। यह व्रत ‘खरना’ के दिन से शुरू हो जाता है। यह कठिन तपस्या दिखाती है कि सूर्य देव के प्रति उनका विश्वास और भक्ति कितनी गहरी है। अर्ध्य इस कठिन व्रत का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है।

संक्षेप में, अर्ध्य भेंट, सम्मान और अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। यह छठ पूजा की जान है!

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