Mobile Only Menu
  • Home
  • ब्लॉग
  • Misbah Ashraf , जिसने संघर्ष से खड़ी कर दी ₹2463 करोड़ की Jar कंपनी
Image

Misbah Ashraf , जिसने संघर्ष से खड़ी कर दी ₹2463 करोड़ की Jar कंपनी

जब बिहार के किसी बेटे की कामयाबी की गूँज पूरे देश में सुनाई देती है, तो हर बिहारी का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। ऐसी ही कहानी है मिस्बाह अशरफ की, जो नालंदा जिले के शरीफ इलाके से आते हैं, और जिन्होंने अपनी मेहनत और ज़िद से एक ऐसी कंपनी खड़ी की, जिसका मूल्यांकन देखते ही देखते ₹2463 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। यह सिर्फ़ एक बिज़नेस फ़ीस नहीं है, यह उस युवा की दास्तान है जिसने हर रुकावट को ठोकर मारी और साबित किया कि बड़े सपने देखने के लिए किसी महानगर या बड़ी डिग्री की ज़रूरत नहीं होती।

मिस्बाह ने अपनी कंपनी ‘जार’ (Jar) को अगस्त 2022 में $300 मिलियन डॉलर, यानी लगभग ₹2463 करोड़ रुपये के बड़े मुकाम तक पहुँचाया। उनकी व्यक्तिगत अनुमानित संपत्ति भी आज ₹164 करोड़ रुपये के आस-पास बताई जाती है। यह कहानी किसी जादू की नहीं, बल्कि कई साल के अथक संघर्ष, टूटे हुए सपनों और एक टीचर पिता के दिए गए अनमोल सबक की बुनियाद पर खड़ी है।

पिता का ‘गुरुमंत्र’

मिस्बाह एक साधारण, मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। उन्होंने बचपन से ही घर में पैसे की किल्लत और बचत के महत्व को करीब से देखा था। उनके पिता एक शिक्षक थे, और जैसा कि हमारे समाज में होता है, वो चाहते थे कि मिस्बाह अच्छी शिक्षा लें और एक सुरक्षित करियर चुनें। लेकिन मिस्बाह के पिता ने उन्हें एक ऐसा ‘गुरुमंत्र’ दिया, जो उनकी ज़िंदगी का कम्पास बन गया।

उनके पिता ने कहा था, “जो धीरे चलता है, बेटा, वो पीछे रह जाता है।” इस एक वाक्य ने मिस्बाह को सिखाया कि अगर तेज़ी से आगे बढ़ना है, तो कई बार रूढ़िवादी रास्ते छोड़ने पड़ते हैं। इसी जज़्बे के साथ, मिस्बाह ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया — उन्होंने दिल्ली की एमिटी यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग (बी.टेक) की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वो एक ‘कॉलेज ड्रॉपआउट’ बन गए, क्योंकि उन्हें लगा कि उद्यमी बनने का जुनून किसी डिग्री से ज़्यादा ज़रूरी है।

शुरुआती दाँवपेच

मिस्बाह का संघर्ष कॉलेज छोड़ने के बाद ही शुरू हो गया था। 17 साल की उम्र में उन्होंने अपने दोस्तों को टी-शर्ट बेचनी शुरू कर दी थी, ताकि कुछ पैसे कमा सकें। यह छोटी-सी शुरुआत उनके अंदर की उद्यमी आग को हवा दे गई।

सपना जो टूट गया (Cibola)

2013 में, मिस्बाह ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पहला स्टार्टअप ‘सिबोला’ (Cibola) शुरू किया। यह दोस्तों के बीच छोटे लेनदेन को आसान बनाने के लिए सोशल पेमेंट ऐप था। उन्होंने प्रोटोटाइप बनाया, कुछ फंडिंग जुटाई, लेकिन बाजार और सरकारी नियमों की वजह से यह कुछ महीनों में बंद हो गया। मिस्बाह को तब एहसास हुआ कि उनका आइडिया अपने समय से आगे था। पहली कोशिश में इतनी बुरी हार मिलने पर कोई भी हार मान लेता, पर मिस्बाह ने इस असफलता को अपनी सबसे बड़ी क्लास समझा।

Marsplay

सिबोला से मिली सीख को लेकर मिस्बाह ने चार साल बाद, अगस्त 2017 में ‘मार्सप्ले’ (Marsplay) की शुरुआत की। यह ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म फैशन और ब्यूटी इन्फ्लुएंसर्स को ग्राहकों से जोड़ता था। यह आइडिया अच्छा चला, और मार्सप्ले ने 10 लाख से ज़्यादा यूज़र्स को जोड़कर सफलता पाई। फरवरी 2021 में, बड़े आर्थिक बदलावों के चलते मिस्बाह को अपनी बनाई हुई कंपनी को ‘फॉक्सी’ (Foxy) को बेचना पड़ा। मेहनत का फल देखते हुए भी कंपनी को बेचना बड़ा निर्णय था, जिसने उन्हें बिजनेस की कठोर सच्चाई सिखा दी।

इन दोनों अनुभवों — सिबोला की असफलता और मार्सप्ले का सफल निकास — ने ही जार (Jar) की सफलता की नींव डाली।

जार (Jar): बिहार की मिट्टी से निकला बचत का आइडिया

मार्सप्ले की बिक्री के बाद, मिस्बाह ने 2021 में निश्चिय एजी (Co-Founder और CEO) के साथ मिलकर अपनी तीसरी और अब तक की सबसे बड़ी पारी शुरू की: ‘जार’। यह आइडिया सीधे उस ‘भारत’ से निकला, जिसे उन्होंने नालंदा में करीब से देखा था। उन्हें पता था कि मिडिल क्लास बचत करना चाहता है, पर निवेश की प्रक्रिया उन्हें डराती है, और उनके पास बड़ी पूंजी नहीं होती।

जार ने इस समस्या को बहुत सरल बना दिया। यह ऐप यूज़र्स के रोज़ाना के UPI लेनदेन से सिर्फ़ ₹1 या ₹10 जैसी छोटी रकम को अपने आप काट लेता है, और उसे 24K डिजिटल गोल्ड में निवेश कर देता है। बचत अब मुश्किल काम नहीं, बल्कि एक आदत बन गई। भारत में सोना हमेशा से भरोसेमंद रहा है और यह सांस्कृतिक जुड़ाव इस आइडिया को तुरंत लोकप्रिय बना गया।

इस गहरी बाज़ार समझ के कारण ही जार में दुनिया के बड़े निवेशकों ने पैसा लगाया। रिकॉर्ड 18 महीनों में इसका मूल्यांकन $300 मिलियन (₹2463 करोड़) तक पहुँच गया।

आज जार के पास 3.5 करोड़ (35 मिलियन) से ज़्यादा रजिस्टर्ड यूज़र्स हैं — जिनमें से लगभग 95% पहली बार बचत कर रहे हैं। FY25 में कंपनी ने लाभप्रदता भी हासिल कर ली है।

मिस्बाह अशरफ को 2023 में फोर्ब्स की प्रतिष्ठित “30 अंडर 30” सूची में भी जगह मिली, जो इस यात्रा को और भी खास बना देती है। उनका सफर भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन चुका है, जो साबित करता है कि जज़्बा और सही दिशा हो, तो छोटे शहरों से भी दुनिया बदली जा सकती है।

Releated Posts

Birhor Tribe : बिरहोर की पहचान का संकट

AI Image बिरहोर, यानी “जंगल के लोग”—यह नाम मुंडा भाषा से आया है, जहाँ ‘बिर’ का अर्थ है…

ByByManvinder Mishra Nov 8, 2025

गमछा : बिहार की धड़कन – परंपरा, गर्व और पहचान

AI Image अगर आप बिहार की किसी गली में खड़े हों, तो गमछा हर जगह दिखेगा। पान की…

ByByHarshvardhan Nov 7, 2025

बिहार में बिज़नेस क्यों मुश्किल है: Chandan Raj की कहानी और 4 बड़ी परेशानियाँ

Chandan Raj जब हम बिहार में बड़े बिज़नेस लगाने की बात करते हैं, तो मुजफ्फरपुर के Chandan Raj…

ByByPrachi Singh Nov 7, 2025

विद्यापति: मिथिला के महान कवि

बिहार के दारभंगा जिले के बिस्पी गाँव में चौदहवीं सदी में एक ऐसा कवि पैदा हुआ था जिसने…

ByByHarshvardhan Nov 6, 2025

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top