बिहार की राजनीति में जब भी कोई बड़ा उलटफेर होता है, तो पूरे देश की नजरें टिक जाती हैं। अभी कुछ ऐसा ही हुआ है। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर, जिन्हें लोग ‘PK’ के नाम से जानते हैं, ने एक ऐसी घोषणा की है जिससे सब हैरान हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि वह 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।
जैसे ही यह खबर सामने आई, बिहार के सियासी गलियारों में तरह-तरह की बातें होने लगीं। कुछ लोग कह रहे हैं कि PK हार के डर से पीछे हट गए, तो कुछ इसे उनकी एक सोची-समझी रणनीति यानी ‘मास्टरस्ट्रोक’ बता रहे हैं। आखिर सच क्या है? क्या वाकई प्रशांत किशोर डर गए हैं या यह किसी बड़े खेल की तैयारी है? चलिए, इस पूरी कहानी को आसान भाषा में समझते हैं।

प्रशांत किशोर डर गए?
जब कोई नई पार्टी बनती है, तो लोग उम्मीद करते हैं कि उसका सबसे बड़ा नेता खुद चुनाव लड़ेगा और पार्टी का नेतृत्व करेगा। जब वो नेता ही पीछे हट जाए, तो सवाल उठना तो लाजिमी है। प्रशांत किशोर के चुनाव न लड़ने के फैसले से जो पहली बातें लोगों के मन में आ रही हैं, वे कुछ इस तरह हैं:
- कार्यकर्ताओं का मनोबल: सोचिए, एक सेना जिसका सेनापति ही युद्ध के मैदान में न उतरे, उस सेना का जोश कैसा होगा? जन सुराज के हजारों कार्यकर्ता जो दिन-रात जमीन पर मेहनत कर रहे हैं, उन्हें अपने नेता के चुनाव लड़ने से एक नई ऊर्जा मिलती। अब शायद उनके मन में भी थोड़ी निराशा हो सकती है।
- CM का चेहरा कौन?: अगर जन सुराज पार्टी चुनाव जीतती है, तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा? यह एक बड़ा सवाल है। जब नेता खुद चुनाव नहीं लड़ रहा, तो जनता किसके चेहरे पर वोट देगी? इससे मतदाताओं के बीच एक कन्फ्यूजन की स्थिति बनती है।
- विपक्ष को मिला मौका: प्रशांत किशोर के इस फैसले ने विरोधी पार्टियों, खासकर RJD और JDU को बैठे-बिठाए एक मुद्दा दे दिया है। वे अब आसानी से यह प्रचार कर सकते हैं कि “जो खुद अपनी जीत को लेकर पक्का नहीं है, वो बिहार का भविष्य क्या बनाएगा।” RJD ने तो कहना शुरू भी कर दिया है कि PK ने चुनाव से पहले ही हार मान ली है।
इन सभी बातों को देखें तो पहली नजर में यही लगता है कि प्रशांत किशोर का यह कदम उनकी पार्टी जन सुराज के लिए थोड़ा नुकसानदायक हो सकता है।
प्रशांत किशोर ने ऐसा फैसला क्यों लिया?
प्रशांत किशोर को राजनीति का कच्चा खिलाड़ी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कई पार्टियों को चुनाव जिताने की रणनीति बनाई है। इसलिए उनके हर कदम के पीछे कोई न कोई गहरी सोच जरूर होती है। उनके और उनकी पार्टी के अनुसार, चुनाव न लड़ने के पीछे कुछ बड़ी वजहें हैं:
- एक सीट पर नहीं बंधना चाहते: प्रशांत किशोर का मानना है कि अगर वह किसी एक विधानसभा सीट, जैसे कि राघोपुर से तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ते, तो उनका पूरा समय और ध्यान उसी एक सीट पर लग जाता। वह पूरे बिहार की 243 सीटों पर ध्यान नहीं दे पाते।
- पूरे बिहार पर फोकस: चुनाव न लड़कर वह पूरे राज्य में घूमने, रैलियां करने, और पार्टी के लिए रणनीति बनाने के लिए आजाद हैं। वह एक ‘स्टार कैंपेनर’ की भूमिका निभाना चाहते हैं, जो हर सीट पर जाकर अपनी पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए काम करे, न कि सिर्फ अपनी सीट बचाने में लगा रहे।
- लड़ाई को व्यक्तिगत नहीं बनाना: PK नहीं चाहते कि बिहार का यह चुनाव “प्रशांत किशोर बनाम तेजस्वी यादव” या “प्रशांत किशोर बनाम नीतीश कुमार” की व्यक्तिगत लड़ाई बन जाए। वह चाहते हैं कि यह चुनाव बिहार के असली मुद्दों, जैसे- गरीबी, बेरोजगारी और विकास पर लड़ा जाए। खुद पीछे रहकर वह यह संदेश दे रहे हैं कि जन सुराज किसी एक व्यक्ति की पार्टी नहीं, बल्कि बिहार की जनता की पार्टी है।
PK का सबसे बड़ा दांव: “150 से कम मतलब हार”
अपने फैसले का ऐलान करने के साथ ही प्रशांत किशोर ने एक और बड़ी बात कही जिसने सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा, “या तो हमारी पार्टी 10 से कम सीटें जीतेगी या फिर 150 से ज्यादा। अगर 150 सीटों से एक भी सीट कम आई, तो मैं उसे अपनी हार मानूंगा।”
यह बयान उनके “डर” वाली थ्योरी को कमजोर करता है। कोई डरा हुआ इंसान इतनी बड़ी चुनौती स्वीकार नहीं करता। इस बयान के जरिए PK यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी नजर एक-दो सीट जीतने पर नहीं, बल्कि सीधे सरकार बनाने पर है। यह एक बहुत बड़ा जुआ है, लेकिन अगर यह सफल हुआ तो यह बिहार की राजनीति में एक नया इतिहास लिख देगा।
प्रशांत किशोर का चुनाव न लड़ने का फैसला एक बहुत बड़ा जोखिम है। उन्होंने अपनी साख दांव पर लगा दी है। अब पूरा दारोमदार जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों और संगठन पर है। PK अब पूरे बिहार में घूम-घूम कर पार्टी के लिए माहौल बनाएंगे। वह अपनी रैलियों में क्या कहते हैं और जनता उनके इस फैसले पर कैसी प्रतिक्रिया देती है, यह देखना बहुत दिलचस्प होगा।