Mobile Only Menu
  • Home
  • संस्कृति
  • सत्तू : बिहार की आत्मा का प्रतीक और ‘देसी सुपरफूड’
sattu drink

सत्तू : बिहार की आत्मा का प्रतीक और ‘देसी सुपरफूड’

सत्तू बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की ज़मीन से जुड़ा एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो महज़ एक भोजन न होकर, यहाँ की परंपरा, मेहनत और सादगी का जीता-जागता प्रतीक है। सदियों से, इसने इस क्षेत्र के लोगों के दैनिक जीवन में एक केंद्रीय भूमिका निभाई है। यह मुख्य रूप से भुने हुए चने (चना) या भुने हुए जौ को महीन पीसकर तैयार किया जाता है, जिसकी वजह से इसमें एक हल्की सौंंधी ख़ुशबू और अद्वितीय पौष्टिकता समाहित होती है। अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण, इसे अक्सर ‘गरीबों का प्रोटीन’ या ‘देसी सुपरफूड’ कहा जाता है।

sattu drink

Ai Image

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और जीवनशैली का अभिन्न अंग

सत्तू की कहानी बिहार के इतिहास जितनी ही पुरानी है। प्राचीन काल से ही, जब लंबी यात्राएँ या युद्ध होते थे, तो सत्तू ही सैनिकों और यात्रियों का मुख्य आहार होता था। इसका सबसे बड़ा कारण है कि यह तैयार करने में आसान, वजन में हल्का, कम जगह घेरने वाला और सबसे महत्वपूर्ण, तुरंत ऊर्जा देने वाला होता है। इसे बनाने के लिए न तो आग की ज़रूरत होती है और न ही ज़्यादा सामग्री की।

आज भी, सत्तू बिहार के मेहनतकश लोगों की जीवनरेखा है। खेतों में काम करने वाले किसान, शहरों में निर्माण स्थलों पर काम करने वाले मज़दूर और यहाँ तक कि छात्र भी सत्तू को अपने भोजन में शामिल करते हैं। यह उन्हें भीषण गर्मी और शारीरिक श्रम के दौरान स्थिर ऊर्जा प्रदान करता है। इसकी यह विशेषता इसे अन्य ‘फ़ास्ट फ़ूड’ से अलग करती है, क्योंकि यह तुरंत ऊर्जा देने के साथ-साथ पेट को लंबे समय तक भरा रखता है।

बहुमुखी व्यंजन और गर्मी का रामबाण इलाज

सत्तू की एक ख़ासियत इसकी बहुमुखी उपयोगिता है। बिहार के रसोईघर में इसे अनेकों रूपों में इस्तेमाल किया जाता है:

  1. सत्तू घोल (सत्तू शरबत): गर्मियों में जब तापमान तेज़ी से बढ़ता है और शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी होने लगती है, तब सत्तू एक प्राकृतिक एनर्जी ड्रिंक का काम करता है। इसे पानी, नींबू का रस, नमक, भुना जीरा पाउडर और अक्सर बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च और धनिया पत्ती के साथ मिलाकर एक नमकीन और चटपटा घोल तैयार किया जाता है। यह घोल न केवल शरीर को ठंडक देता है, बल्कि लू लगने से भी बचाता है। यह एक ऐसा पेय है जो प्यास बुझाने के साथ-साथ पोषण भी देता है।
  2. सत्तू पराठा और लिट्टी: सत्तू का सबसे प्रसिद्ध रूप लिट्टी-चोखा और सत्तू पराठा है। इन व्यंजनों में सत्तू को अदरक, लहसुन, अचार का मसाला और मसालों के साथ मिलाकर एक स्वादिष्ट भरावन तैयार किया जाता है, जिसे आटे में भरकर पकाया जाता है। ये व्यंजन बिहार की पाक-कला की पहचान हैं और अपने अद्भुत स्वाद के लिए देश-विदेश में लोकप्रिय हैं।
  3. मीठा सत्तू: सत्तू को गुड़, शहद या चीनी के साथ मिलाकर लड्डू या मीठा शरबत भी बनाया जाता है, जो बच्चों के लिए एक पौष्टिक नाश्ता होता है।

पोषण का भंडार और स्वास्थ्य लाभ

पोषण की दृष्टि से, सत्तू किसी ‘सुपरफूड’ से कम नहीं है। डायटीशियन इसे एक आदर्श भोजन मानते हैं क्योंकि यह:

  • प्रोटीन (Protein) का उत्कृष्ट स्रोत है, जो मांसपेशियों के निर्माण और मरम्मत के लिए आवश्यक है। चना, जो सत्तू का आधार है, शाकाहारी प्रोटीन का एक सस्ता और सुलभ स्रोत है।
  • फ़ाइबर (Fibre) से भरपूर है, जो पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है, कब्ज की समस्या को दूर करता है और आंतों को स्वस्थ रखता है।
  • यह कैल्शियम (Calcium), आयरन (Iron), मैग्नीशियम (Magnesium) और अन्य आवश्यक खनिजों का अच्छा स्रोत है, जो शरीर के समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • यह कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Low Glycemic Index) वाला भोजन है, जिसका अर्थ है कि यह रक्त शर्करा (Blood Sugar) को धीरे-धीरे बढ़ाता है। इसलिए, मधुमेह (Diabetes) रोगियों के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है।
  • चूंकि यह पेट को लंबे समय तक भरा महसूस कराता है, इसलिए यह वजन नियंत्रण (Weight Management) में भी सहायक होता है।

स्कृति और पहचान का प्रतीक

दरअसल, सत्तू सिर्फ एक खाद्य पदार्थ नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति का प्रतीक है – सादगी, मेहनत और आत्मनिर्भरता की मिसाल। यह दर्शाता है कि कैसे कम संसाधनों का उपयोग करके भी एक अत्यधिक पौष्टिक और टिकाऊ आहार तैयार किया जा सकता है। यह पीढ़ियों से लोगों को न केवल ऊर्जा दे रहा है, बल्कि उन्हें अपनी मिट्टी से जोड़कर उनकी पहचान को भी बनाए हुए है।

यह एक ऐसा पारंपरिक ज्ञान है जिसे आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में भी सहजता से अपनाया जा सकता है, जो हमें रासायनिक पेय पदार्थों की बजाय प्राकृतिक और पौष्टिक विकल्पों की ओर लौटने का संदेश देता है।

Releated Posts

मिथिला मखान: संस्कृति, स्वाद और GI टैग का महत्त्व

मिथिला का नाम लो और मखान का ज़िक्र ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। यहाँ तो…

ByByManvinder MishraOct 2, 2025

मिथिला का त्योहार: कोजगरा

मिथिला में त्योहार सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि परिवार और समाज को जोड़ने का मौका होते हैं। उनमें से…

ByByManvinder MishraSep 30, 2025

खोइंच, जयन्ती और जतरा: बिहार में दुर्गा पूजा

बिहार में दुर्गा पूजा का अपना ही रंग है। यहाँ देवी दुर्गा को केवल माँ ही नहीं माना…

ByBybiharrr123Sep 26, 2025

पटना मेट्रो का नया लुक आया सामने… केसरिया रंग और मधुबनी पेंटिंग से सजी पटना मेट्रो, दिखेगी बिहारी संस्कृति की झलक

अगस्त में पटना मेट्रो के कोचों का नया लुक सामने आया था। कोच की बाहरी दीवारों पर मधुबनी…

ByBybiharrr123Sep 24, 2025

पटना में बनेगा भव्य हाट, दिखेगी बिहार की लोक कला और संस्कृति

पटना में गांधी मैदान के पास 48.96 करोड़ रुपये की लागत से एक अत्याधुनिक हाट का निर्माण हो…

ByBybiharrr123Sep 22, 2025

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top