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उपेन्द्र कुशवाहा

उपेन्द्र कुशवाहा की जीवनी: बिहार राजनीति का एक जटिल व्यक्तित्व

बिहार की राजनीति में उपेन्द्र कुशवाहा का नाम एक ऐसे नेता के रूप में लिया जाता है जिसकी राजनीतिक यात्रा उतनी ही रंगबिरंगी है जितनी विवादास्पद। 6 फरवरी 1960 को वैशाली जिले के जंदाहा में जन्मे उपेन्द्र कुमार सिंह (बाद में कुशवाहा) की कहानी एक सामान्य ग्रामीण परिवार से शुरू होकर केंद्रीय मंत्रिमंडल तक पहुंचने की है, लेकिन यह यात्रा लगातार पार्टी-परिवर्तन और राजनीतिक अस्थिरता से भरी रही है।

उपेन्द्र कुशवाहा

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

उपेन्द्र कुशवाहा का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने पटना साइंस कॉलेज से स्नातक और बी.आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। 1985 से उन्होंने जंदाहा के समता कॉलेज में राजनीति विज्ञान के व्याख्याता के रूप में काम किया।

व्यक्तिगत जीवन में 26 फरवरी 1982 को उनका विवाह स्नेहलता से हुआ, जिनसे उनके दो बच्चे हैं। दिलचस्प बात यह है कि राजनीतिक कारणों से उन्होंने अपना नाम बदला – मूल रूप से उपेन्द्र सिंह से ‘कुशवाहा’ उपनाम अपनाया ताकि कुशवाहा/कोइरी समुदाय के बीच बेहतर पहचान बना सकें।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

कुशवाहा की राजनीतिक यात्रा 1985 में युवा लोक दल के राज्य महासचिव के रूप में शुरू हुई। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श माना और समाजवादी विचारधारा अपनाई। 1988-93 में युवा जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव और 1994-2002 तक समता पार्टी के महासचिव के रूप में उन्होंने संगठनात्मक अनुभव प्राप्त किया।

2000 में जंदाहा विधानसभा सीट से पहली जीत के साथ उनका विधायी करियर शुरू हुआ। 2004 में वे विधानसभा में विपक्ष के नेता बने, जो उनके राजनीतिक कद को दर्शाता था। हालांकि, यहीं से उनकी राजनीतिक अस्थिरता की कहानी भी शुरू होती है।

पार्टी-परिवर्तन का सिलसिला

उपेन्द्र कुशवाहा की राजनीतिक यात्रा की सबसे विशिष्ट बात यह है कि उन्होंने कई बार पार्टी बदली है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह उनकी महत्वाकांक्षाओं और व्यावहारिक राजनीति के बीच संघर्ष को दर्शाता है।

2007-2009: पहली बार जदयू छोड़कर राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई, फिर वापस जदयू में शामिल हुए
2013: दूसरी बार जदयू से अलग होकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) का गठन किया
2018: एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल हुए
2020: महागठबंधन छोड़कर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट बनाया
2021: तीसरी बार आरएलएसपी को जदयू में विलीन किया
2023: चौथी बार जदयू छोड़कर राष्ट्रीय लोक मोर्चा बनाया

केंद्रीय मंत्री का कार्यकाल (2014-2018)

2014 के लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी की सफलता कुशवाहा के राजनीतिक करियर का स्वर्णिम काल था। तीन सीटों (कराकट, सीतामढ़ी, जहानाबाद) पर जीत के साथ उन्हें मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री बनाया गया।

मंत्री के रूप में उन्होंने नए केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना, ग्रामीण शिक्षा के ढांचे में सुधार और छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार किया। हालांकि, 2018 में सीट बंटवारे के विवाद के कारण उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और एनडीए छोड़ दिया।

चुनावी प्रदर्शन का विश्लेषण

कुशवाहा के चुनावी रिकॉर्ड से उनकी राजनीतिक स्थिति का सही आकलन होता है:

2014 लोकसभा: कराकट से जीत
2019 लोकसभा: कराकट और उजियारपुर दोनों सीटों से हार
2020 विधानसभा: आरएलएसपी की कोई सीट नहीं
2024 लोकसभा: कराकट से तीसरे स्थान पर

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि लगातार पार्टी बदलने से उनकी विश्वसनीयता में गिरावट आई है।

विवादास्पद बयान और राजनीतिक गलतियां

कुशवाहा के राजनीतिक करियर में कई विवादास्पद घटनाएं भी शामिल हैं। 2019 में “खून की नदी” वाली टिप्पणी के बाद उन्हें बयान वापस लेना पड़ा था। इस तरह की घटनाओं ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कुशवाहा अक्सर गलत समय पर गलत निर्णय लेते रहे हैं और कई बार हारने वाले गठबंधनों का हिस्सा बनते रहे हैं।

वर्तमान राजनीतिक स्थिति

जुलाई 2024 में भाजपा के समर्थन से राज्यसभा सदस्य बने कुशवाहा वर्तमान में राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष हैं। उनका संसदीय रिकॉर्ड दिखाता है कि वे सक्रिय रहते हैं, हालांकि बहस में उनकी भागीदारी राष्ट्रीय औसत से कम है।

हाल ही में उन्होंने न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे पिछड़े समुदायों को न्यायाधीश बनने से रोका जा रहा है।

राजनीतिक विरासत और भविष्य

उपेन्द्र कुशवाहा की राजनीतिक कहानी बिहार की जातीय राजनीति की जटिलताओं को दर्शाती है। कुशवाहा/कोइरी समुदाय के नेता के रूप में उन्होंने हमेशा सामाजिक न्याय और शिक्षा सुधार के मुद्दों को उठाया है। वे पिछड़े वर्गों के अधिकारों के प्रवक्ता रहे हैं और न्यायपालिका व निजी क्षेत्र में आरक्षण के समर्थक हैं।

हालांकि, राजनीतिक विश्वसनीयता के मामले में उनकी छवि धूमिल हुई है। जनता पार्टी की राजनीति में विभाजन की समस्या हमेशा रही है और कुशवाहा इसका उदाहरण हैं।

निष्कर्ष

उपेन्द्र कुशवाहा की जीवनी एक ऐसे राजनेता की कहानी है जिसमें प्रतिभा और महत्वाकांक्षा तो है, लेकिन राजनीतिक धैर्य और रणनीतिक सोच की कमी भी है। एक व्याख्याता से केंद्रीय मंत्री तक का सफर उनकी क्षमता को दर्शाता है, लेकिन लगातार पार्टी बदलना उनकी अस्थिरता को भी उजागर करता है।

उनकी कहानी आधुनिक भारतीय राजनीति की एक सच्चाई को भी दर्शाती है जहां व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं अक्सर दलीय वफादारी पर हावी हो जाती हैं, और जहां राजनीतिक सफलता के लिए निरंतरता और विश्वसनीयता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी प्रतिभा और मेहनत।

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