जब भी लोकतंत्र (Democracy) की चर्चा होती है, तो ग्रीस (Greece) का नाम सामने आता है। लेकिन सच्चाई यह है कि ग्रीस से भी लगभग 2500 साल पहले भारत की धरती पर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की नींव रखी जा चुकी थी। और यह गौरव बिहार की ऐतिहासिक नगरी वैशाली को जाता है। यही वह जगह है जिसने दुनिया को सबसे पहले गणतंत्र (Republic) का विचार दिया।

वैशाली: मगध से पहले एक स्वतंत्र राज्य
वैशाली उस समय मगध साम्राज्य का हिस्सा नहीं था। यह एक स्वतंत्र राज्य था जहाँ किसी एक राजा का शासन नहीं चलता था। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं कि यहाँ अराजकता थी। वैशाली में एक सुव्यवस्थित गणराज्य व्यवस्था थी, जिसे जनता और उनके चुने हुए प्रतिनिधि चलाते थे।
यहाँ का प्रशासन गण-परिषद (Council of Citizens) के हाथ में था। परिषद के सदस्य जनता के बीच से चुने जाते थे और सभी फैसले सामूहिक रूप से लिए जाते थे। यहाँ आम जनता की सक्रिय भागीदारी होती थी, जो यह दर्शाती है कि जनमत का महत्व कितना गहरा था।
शासन व्यवस्था की एक खास बात यह थी कि अधिकारी किसी एक पद पर जीवनभर नहीं टिके रहते थे। एक निश्चित समय (Fixed Term) के बाद उनका कार्यकाल समाप्त हो जाता था और नए लोग उस पद पर आ जाते थे।
7,707 राजा और एक सर्वोच्च अधिकारी
वैशाली की राजनीति की सबसे अनोखी बात यह थी कि यहाँ 7,707 राजा हुआ करते थे। ये सभी लोग एक तरह से छोटे-छोटे गण या कुल के प्रमुख थे। इन सभी में से एक को चुना जाता था, जो उस समय का सर्वोच्च अधिकारी बनता था।
यह प्रणाली बिल्कुल आधुनिक “Presidency” की तरह थी, जहाँ पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए जनता और प्रतिनिधियों द्वारा एक मुखिया का चुनाव किया जाता था।
संस्कृति और व्यापार का केंद्र
वैशाली सिर्फ राजनीति के कारण ही प्रसिद्ध नहीं था, बल्कि यह एक संस्कृति और व्यापार का भी प्रमुख केंद्र था। यहाँ के स्तूप, मूर्तियाँ और खंडहर आज भी इस बात की गवाही देते हैं कि यह शहर अपने समय के हिसाब से कितना आधुनिक और समृद्ध था।
यहाँ का शिल्प, स्थापत्य और कला विश्व स्तर पर अद्भुत माने जाते थे। प्राचीन वैशाली की मिट्टी से खुदाई में मिले अवशेष यह सिद्ध करते हैं कि यह शहर एक बड़े व्यापारिक मार्ग का हिस्सा था, जहाँ देश-विदेश से व्यापारी आते थे।
महावीर और बुद्ध का संबंध
वैशाली का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी उतना ही गहरा है। भगवान महावीर का जन्म यहीं हुआ था और यहीं से उन्होंने जैन धर्म का प्रचार शुरू किया। यही कारण है कि वैशाली आज भी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
दूसरी ओर, गौतम बुद्ध ने भी वैशाली का कई बार दौरा किया। उन्हें यहाँ की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था ने प्रभावित किया था। वैशाली को ही उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया और यहीं पर उन्होंने अपना अंतिम उपदेश भी दिया।
अशोक स्तंभ और बौद्ध धरोहर
वैशाली में स्थित अशोक स्तंभ इस बात की याद दिलाता है कि यहाँ बुद्ध ने अंतिम बार जनता को उपदेश दिया था। सम्राट अशोक ने, जो कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायी बने थे, इस स्तंभ का निर्माण करवाया। यह स्तंभ आज भी खड़ा है और वैशाली के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है।
वैशाली की धरती पर बने बौद्ध स्तूप, विहार और अन्य अवशेष इस जगह को न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे भारत और विश्व के लिए आध्यात्मिक और ऐतिहासिक धरोहर बनाते हैं।
लोकतंत्र की असली धरती
आज जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो अक्सर पश्चिमी देशों का उदाहरण दिया जाता है। लेकिन इतिहास यह साबित करता है कि लोकतंत्र का असली बीज भारत की धरती पर, विशेषकर वैशाली में बोया गया था। यहाँ की जनता-आधारित शासन प्रणाली, प्रतिनिधियों का चुनाव और समय-समय पर सत्ता का परिवर्तन यह दिखाता है कि भारतीय सभ्यता कितनी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक थी।
वैशाली यह सिखाती है कि लोकतंत्र केवल एक शासन पद्धति नहीं, बल्कि जनभागीदारी और समानता की भावना है। यही कारण है कि वैशाली को विश्व का पहला गणराज्य कहा जाता है और बिहार को यह गर्व है कि उसने दुनिया को लोकतंत्र की राह दिखाई।
निष्कर्ष
यहाँ की व्यवस्था ने यह साबित किया कि बिना किसी निरंकुश राजा के भी जनता की भागीदारी से शासन चलाया जा सकता है। यही वह भूमि है जिसने भगवान महावीर और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों को जन्म दिया और लोकतंत्र का असली स्वरूप दुनिया को दिखाया।आज वैशाली की धरोहर को संजोना और उसके गौरव को याद करना हम सबकी जिम्मेदारी है, क्योंकि यही वह मिट्टी है जिसने पूरे विश्व को लोकतंत्र का सबसे पहला पाठ पढ़ाया।