नीतीश कुमार ने जब 20 नवंबर 2025 को अपने दसवें कार्यकाल की शपथ ली, तो सिर्फ एक नेता ने नहीं, बल्कि एक बदलते हुए राजनीतिक तूफान ने प्रवेश किया। लेकिन असली ड्रामा विभागों के बंटवारे में आया। नीतीश कुमार ने जो कदम उठाया, वह बिहार की राजनीति में 20 साल से चले आ रहे एक अघोषित संविधान को तोड़ देता है।
गृह विभाग—यह मात्र एक विभाग नहीं है। यह सत्ता का असली चेहरा है। जब तक कोई मुख्यमंत्री गृह विभाग अपने पास रखता है, तो वह कहना चाहते हैं कि ‘सब कुछ मेरे नियंत्रण में है’। पुलिस, जेल, सुरक्षा, प्रशासन की ट्रांसफर-पोस्टिंग—सब कुछ। लेकिन इस बार, नीतीश ने गृह विभाग एक युवा भाजपा नेता सम्राट चौधरी को दे दिया। इसका मतलब साफ है—सत्ता के केंद्र में एक शिफ्ट हुआ है।

कैबिनेट में कितने मंत्री, कौन कहाँ?
बिहार की नई सरकार में 26 मंत्री हैं। यह संख्या छोटी है, जिससे साफ होता है कि कोटा सिस्टम को सख्ती से लागू किया गया है। हर पार्टी को अपनी शक्ति के अनुसार जगह मिली है।
भाजपा को 14 मंत्री मिले—यह सबसे बड़ा हिस्सा है क्योंकि भाजपा ने 89 सीटें जीती हैं।
जेडीयू को 8 मंत्री मिले—नीतीश की पार्टी, भले ही 85 सीटें जीती हों, फिर भी मंत्री संख्या में पीछे रही।
फिर लोजपा (राम विलास) को 2, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को 1, और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 1 मंत्री मिला।
सम्राट चौधरी—नई राजनीति के नए सितारे
29 साल के सम्राट चौधरी अब बिहार के उप-मुख्यमंत्री हैं और गृह मंत्री भी। यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उनके पास अब पूरी पुलिस फोर्स, कानून-व्यवस्था, सुरक्षा—सब कुछ है। इतना शक्तिशाली विभाग भाजपा को पहली बार मिला है। सुशील मोदी, जो नीतीश के साथ 15 साल तक उप-मुख्यमंत्री रहे, उन्हें भी कभी गृह विभाग नहीं मिला।
सम्राट चौधरी की यह नियुक्ति एक संदेश है—“भाजपा अब सिर्फ सहयोगी नहीं, असली शक्ति है।”
विजय कुमार सिन्हा—पृथ्वी पर राज
भाजपा के दूसरे उप-मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा को भूमि, राजस्व, खान और भूतत्व जैसे विभाग मिले। भूमि का मतलब क्या है? औद्योगिक निवेश, जमीन के रिकॉर्ड, खनन लाइसेंस, सब कुछ। बिहार में तेजी से औद्योगीकरण करने के लिए यह विभाग कितना महत्वपूर्ण है, यह सोचें।
भाजपा के पास कौन से विभाग आए?
कृषि विभाग—रामकृपाल यादव को। यह वह विभाग है जो किसान सब्सिडी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, और बड़े वोट बैंक को नियंत्रित करता है।
पथ निर्माण, नगर विकास एवं आवास—नितिन नवीन को। रोड, सड़क, निर्माण—जनता को सबसे नजर आने वाली चीजें।
श्रम संसाधन विभाग—संजय टाइगर को। मजदूरों के अधिकार, कल्याण योजनाएं।
पर्यटन, कला, संस्कृति और युवा विभाग—अरुण शंकर प्रसाद को। यह विभाग बिहार की विरासत, बौद्ध धर्म, वैष्णवी आंदोलन जैसी चीजों को प्रचारित करता है।
स्वास्थ्य विभाग—मंगल पांडे को।
भाजपा को ये सभी “जमीनी” विभाग मिले हैं—ऐसे विभाग जो सीधे जनता से जुड़े हैं। यह कोई संयोग नहीं है। भाजपा 2025 के बाद के चुनावों की तैयारी कर रहा है।
जेडीयू के पास क्या है?
जेडीयू को वित्त विभाग मिला—इसे बिजेंद्र प्रसाद यादव संभाल रहे हैं। वित्त मंत्री के रूप में वह ऊर्जा, वाणिज्य कर, मद्य निषेध जैसे विभाग भी संभालते हैं।
लेकिन यहाँ असली बात है। वित्त विभाग राज्य के पैसे का प्रबंधन करता है, लेकिन व्यावहारिक और राजनीतिक शक्ति तो भाजपा के हाथ में है। बजट बनाना, योजनाएं लागू करना—ये दोनों अलग हैं।
महिलाएं और युवा भी हैं मंत्रिमंडल में
श्रेयसी सिंह को खेल और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) विभाग मिला। वह युवा चेहरा हैं, जो डिजिटल बिहार की तरफ इशारा करते हैं।
रमा निषाद को पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग मिला। महिलाओं को मंत्रिमंडल में शामिल करना—यह जातीय और सामाजिक संतुलन दिखाता है।
क्या ये बदलाव बिहार के लिए अच्छा है?
यह सवाल जटिल है। एक ओर, दो दलों का संतुलन बेहतर प्रशासन दे सकता है। दूसरी ओर, शक्ति का विकेंद्रीकरण भी संघर्ष पैदा कर सकता है।
बिहार के सामान्य लोगों के लिए जो महत्वपूर्ण है, वह है:
शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार। सुनील कुमार को शिक्षा विभाग मिला है। लेकिन क्या बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी? यह सिर्फ विभाग देने से नहीं होता। सीएम के स्तर पर प्राथमिकता चाहिए।
बुनियादी ढांचा। नितिन नवीन के पास पथ निर्माण है। बिहार के गाँवों में सड़कें हैं? इसे ध्यान देना होगा।
कृषि। रामकृपाल यादव कृषि मंत्री हैं। किसान समर्थन मूल्य (MSP) से परे, जलभराव, सूखा, मिट्टी की गुणवत्ता जैसे मुद्दों पर काम करना होगा।
बिहार में यह मंत्रिमंडल क्या संदेश देता है?
- गठबंधन राजनीति मजबूत है। नीतीश अब भाजपा के साथ साझेदारी में विश्वास करते हैं। गृह विभाग देना—यह विश्वास की बड़ी निशानी है।
- भाजपा को केंद्रीय भूमिका मिल गई। यह लंबे समय के लिए नहीं, बल्कि अगले चुनावों तक के लिए है। भाजपा 2026 में जो दिखेगा, वह 2030 की राजनीति तय करेगा।
- जेडीयू को मजबूर पारी मिली है। सीटों के हिसाब से जेडीयू को ज्यादा पद मिलने चाहिए थे। लेकिन गठबंधन राजनीति में यह ठीक है। बस सवाल है—क्या जेडीयू अगले चुनावों में फिर से यह स्वीकार करेगा?
नीतीश कुमार का यह 10वां कार्यकाल बदलाव का कार्यकाल है। पुरानी सत्ता का संरचना तोड़कर नया आकार देना—यह राजनीति का एक कला है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बदलाव बिहार के आम लोगों के जीवन में भी दिखेगा?
अगर सड़कें अच्छी बनेंगी, स्कूलों में शिक्षा मिलेगी, और खेतों में पानी रहेगा, तो यह मंत्रिमंडल सफल है। अगर सिर्फ कागजों पर पड़ा रहे, तो यह इतिहास का एक और अधूरा अध्याय हो जाएगा।
बिहार का भविष्य, अब इन 26 मंत्रियों के कंधों पर है।

















