एक सपना जो हकीकत बन गया क्या आपको नवंबर 2020 का वो दिन याद है? जब पहली बार दरभंगा के आसमान में कमर्शियल विमान ने उड़ान भरी थी, तो वह सिर्फ एक जहाज नहीं, बल्कि पूरे मिथिलांचल की उम्मीदें थीं। आज, ठीक पांच साल बाद, दरभंगा एयरपोर्ट (DBR) ने एक ऐसा मील का पत्थर छू लिया है, जिसकी कल्पना शायद बड़े-बड़े विमानन विशेषज्ञों ने भी नहीं की थी। 29.50 लाख यात्री! जी हाँ, पिछले पांच सालों में लगभग 30 लाख लोगों ने इस छोटे से एयरपोर्ट से अपने सपनों की उड़ान भरी है।
यह आंकड़ा इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि यह सब एक अस्थाई (Temporary) टर्मिनल और सीमित संसाधनों के बीच हासिल किया गया है। यह सफलता साबित करती है कि अगर सुविधा मिले, तो बिहार के लोग आसमान छूने में पीछे नहीं हैं।

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पटना के जाम से मुक्ति: सफलता का असली राज
दरभंगा एयरपोर्ट की इस बंपर सफलता के पीछे एक बड़ा जज्बाती और व्यावहारिक कारण है—’पटना जाने का दर्द’। पहले उत्तर बिहार के 14-15 जिलों के लोगों को फ्लाइट पकड़ने के लिए 5-6 घंटे का थका देने वाला सफर करके पटना जाना पड़ता था, और फिर गाँधी सेतु का जाम। दरभंगा एयरपोर्ट ने उस दर्द को खत्म कर दिया।
आज मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और सहरसा के लोग सुबह की फ्लाइट पकड़कर दिल्ली या मुंबई में मीटिंग करते हैं और अगले दिन घर वापस आ जाते हैं। यह एयरपोर्ट सिर्फ एक सुविधा नहीं, बल्कि वक्त की बचत का दूसरा नाम बन गया है। यही कारण है कि ‘उड़ान’ (UDAN) योजना के तहत यह देश का सबसे सफल एयरपोर्ट बनकर उभरा है ।
संघर्ष की कहानी: जब जगह पड़ गई कम
कहते हैं न कि कभी-कभी सफलता इतनी बड़ी हो जाती है कि तैयारियां छोटी पड़ जाती हैं। दरभंगा के साथ यही हुआ।
- छोटा टर्मिनल, भारी भीड़: वर्तमान में जो टर्मिनल (Civil Enclave) है, वह महज 1400 वर्ग मीटर का है, जिसे 150-200 यात्रियों के लिए बनाया गया था। लेकिन यहाँ पीक सीजन में हजारों की भीड़ उमड़ पड़ती है ।
- सुविधाओं का अभाव: शुरुआत में पार्किंग की जगह नहीं थी, चेक-इन काउंटरों पर लंबी लाइनें लगती थीं। लेकिन इन तमाम मुश्किलों के बावजूद, यात्रियों का भरोसा कम नहीं हुआ। 2021-22 में तो यात्रियों की संख्या ने 6 लाख का आंकड़ा पार कर दिया था, जिसने कई स्थापित एयरपोर्ट्स को भी पीछे छोड़ दिया ।
₹912 करोड़ से बदल रही तस्वीर
अगर आप आज की भीड़-भाड़ देखकर परेशान हैं, तो थोड़ा सब्र रखिए। तस्वीर बहुत जल्द बदलने वाली है। सरकार और एयरपोर्ट अथॉरिटी ने इस समस्या को समझा है और अब एक भव्य नए टर्मिनल का काम शुरू हो चुका है।
- नया टर्मिनल: ₹912 करोड़ की लागत से बन रहा यह नया टर्मिनल 51,800 वर्ग मीटर में फैला होगा (मौजूदा से लगभग 37 गुना बड़ा) ।
- सुविधाएं: इसमें 40 चेक-इन काउंटर और आधुनिक एरोब्रिज (Aerobridges) होंगे, ताकि आपको बस से या पैदल चलकर विमान तक न जाना पड़े। इसकी क्षमता सालाना 1 करोड़ यात्रियों को संभालने की होगी ।
- सांस्कृतिक झलक: सबसे खास बात यह है कि इस नई बिल्डिंग में आपको मिथिला की आत्मा दिखेगी। इसका डिज़ाइन ‘दरभंगा किले’ से प्रेरित होगा और दीवारों पर विश्वप्रसिद्ध ‘मधुबनी पेंटिंग’ की छाप होगी ।
अंतर्राष्ट्रीय उड़ान: नेपाल और खाड़ी देशों पर नज़र
सिर्फ टर्मिनल ही नहीं, रनवे भी बड़ा हो रहा है। बिहार सरकार ने रनवे को 9,000 फीट से बढ़ाकर 12,000 फीट करने के लिए करीब 90 एकड़ जमीन अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है (लागत ₹245 करोड़) । इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि भविष्य में यहाँ बड़े विमान (जैसे Boeing 777 या Airbus A330) उतर सकेंगे। इससे सीधे दुबई, कतर और सऊदी अरब के लिए फ्लाइट्स शुरू होने का रास्ता खुलेगा। सोचिए, हमारे कामगार भाइयों को विदेश जाने के लिए अब दिल्ली या मुंबई के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। साथ ही, नेपाल के तराई क्षेत्र के लोगों के लिए भी यह एक बड़ा इंटरनेशनल हब बनेगा ।
‘शाही लीची’ और मखाना को मिले पंख
यह एयरपोर्ट सिर्फ यात्रियों के लिए नहीं, बल्कि हमारे किसानों के लिए भी वरदान साबित हुआ है। इसे ‘कृषि-उड़ान’ का भी केंद्र बनाया जा रहा है।
- लीची का एक्सपोर्ट: 2025 के सीजन में दरभंगा से 250 टन शाही लीची हवाई जहाज के जरिए देश के कोने-कोने में भेजी गई। यह पिछले साल के मुकाबले 108% की बढ़ोतरी है।
- फायदा: जो लीची पहले ट्रक में जाते-जाते खराब हो जाती थी, अब वह सुबह टूटती है और शाम तक मुंबई या बेंगलुरु के बाजारों में ताजी बिकती है। इससे किसानों की आमदनी में सीधा इजाफा हुआ है ।
कोहरा: अभी भी एक बड़ी चुनौती
हर खूबसूरत कहानी में एक विलेन जरूर होता है, और यहाँ वह विलेन है—’कोहरा’ (Fog)। दिसंबर और जनवरी में घने कोहरे के कारण फ्लाइट्स का कैंसिल होना यात्रियों के लिए बड़ा सिरदर्द रहा है। इसके समाधान के लिए CAT-II लाइटिंग सिस्टम लगाया जाना है, जिससे कम दृश्यता (Low Visibility) में भी विमान उतर सकें। लेकिन इसमें एक पेंच है—एयरपोर्ट के पास एक बाढ़ सुरक्षा तटबंध (Embankment) है, जो लाइट्स लगाने में बाधा बन रहा है। अच्छी खबर यह है कि एयरपोर्ट अथॉरिटी ने इस तटबंध की ऊंचाई कम करने के लिए जल संसाधन विभाग से NOC माँगी है। उम्मीद है कि अगली सर्दियों तक यह समस्या काफी हद तक सुलझ जाएगी ।
यह तो बस शुरुआत है
महज 5 सालों में 29.50 लाख यात्रियों का सफर यह बताता है कि मिथिलांचल अब रुकने वाला नहीं है। दरभंगा एयरपोर्ट ने न केवल दूरियां मिटाई हैं, बल्कि इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और आत्मविश्वास को एक नई ऊँचाई दी है। इंफ्रास्ट्रक्चर की कुछ कमियां जरूर हैं, लेकिन जिस तेजी से विस्तार (Expansion) का काम चल रहा है, वह दिन दूर नहीं जब दरभंगा देश के गिने-चुने बेहतरीन एयरपोर्ट्स में शुमार होगा।
अगली बार जब आप दरभंगा एयरपोर्ट से उड़ान भरें, तो याद रखिएगा—आप सिर्फ एक यात्री नहीं, बल्कि एक बदलते हुए बिहार के गवाह हैं।
यह रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आँकड़ों और समाचार रिपोर्टों पर आधारित है।

















