बिहार की धरती, विशेषकर मिथिला का इतिहास हमेशा से ही ज्ञान और शास्त्रार्थ का गढ़ रहा है। लेकिन 14वीं शताब्दी में एक ऐसा विद्वान हुआ, जिसने न केवल न्याय शास्त्र (Logic) में दुनिया का लोहा मनवाया, बल्कि जीवन जीने का एक ऐसा आदर्श स्थापित किया जो आज के भौतिकवादी युग में कल्पना से परे लगता है। वह नाम है—महामहोपाध्याय भवनाथ मिश्र, जिन्हें दुनिया अयाची मिश्र (Ayachi Mishra) के नाम से जानती है।
एक तरफ घोर गरीबी और दूसरी तरफ अपार ज्ञान—अयाची मिश्र का जीवन इसी विरोधाभास का एक सुंदर संगम था। आइए, आसान शब्दों में जानते हैं इस महान विभूति की पूरी कहानी, उनका अद्भुत शिक्षण मॉडल और वह मशहूर किस्सा जो आज भी मिथिला के घर-घर में सुनाया जाता है।

कौन थे अयाची मिश्र? (Ayachi Mishra Biography)
अयाची मिश्र का जन्म मधुबनी जिले के सरिसब पाही (Sarisab Pahi) गांव में हुआ था। यह गांव उस समय न्याय दर्शन और तर्कशास्त्र का केंद्र माना जाता था। उनका वास्तविक नाम भवनाथ मिश्र था। वे मैथिल ब्राह्मणों के ओइनवार वंश (Oiniwar Dynasty) के शासनकाल (लगभग 14वीं-15वीं सदी) के दौरान हुए।
उन्हें ‘अयाची’ क्यों कहा गया? इसके पीछे एक बहुत बड़ी प्रतिज्ञा थी। संस्कृत में ‘याचना’ का अर्थ होता है मांगना। भवनाथ मिश्र ने जीवन भर यह व्रत लिया था कि वे कभी किसी से—चाहे वह राजा हो या रंक—कुछ भी नहीं मांगेंगे। वे ‘अयाचक’ (जो मांगता नहीं है) थे, इसलिए उनका नाम अयाची मिश्र पड़ गया। कहते हैं कि उनके पास रहने के लिए मात्र डेढ़ कट्ठा जमीन थी और वे उसी में साग-पात उगाकर अपना जीवन चलाते थे, लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।
अयाची स्टडी मॉडल: मध्यकाल की अनूठी शिक्षा क्रांति
आजकल शिक्षा एक बड़ा व्यापार बन गई है, लेकिन अयाची मिश्र ने उस दौर में एक ऐसा मॉडल दिया था, जिसकी चर्चा आज बिहार सरकार भी गर्व से करती है। इसे ‘अयाची स्टडी मॉडल’ कहा जाता है।
वे अपने शिष्यों को नि:शुल्क शिक्षा देते थे। न रहने का खर्च, न खाने का और न ही कोई फीस। लेकिन, शिक्षा पूरी होने के बाद वे अपने छात्रों से एक खास गुरुदक्षिणा मांगते थे। उनकी शर्त होती थी— “तुम्हें जीवन में कम से कम 10 लोगों को मुफ्त शिक्षा देनी होगी।”
जरा सोचिए, यह एक चेन सिस्टम था:
- अयाची ने 10 को पढ़ाया।
- उन 10 ने 100 को पढ़ाया।
- उन 100 ने 1000 को साक्षर किया।
इस ज्यामितीय प्रगति (Geometric progression) ने मिथिला में साक्षरता और ज्ञान की ऐसी गंगा बहाई कि सरिसब पाही गांव ‘विद्वानों का गांव’ बन गया।
पुत्र शंकर मिश्र और 5 वर्ष की उम्र में चमत्कार
अयाची मिश्र और उनकी धर्मपत्नी (लोककथाओं में इनका नाम भवानी बताया जाता है) लंबे समय तक निःसंतान थे। भगवान शिव की कठोर तपस्या के बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम शंकर मिश्र रखा गया। माना जाता है कि शंकर मिश्र स्वयं भगवान शिव के अवतार थे।
शंकर मिश्र बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा के धनी (Prodigy) थे। अयाची मिश्र ‘कंठ विद्या’ (Oral Tradition) में विश्वास रखते थे, यानी वे लिखते नहीं थे, बस बोलकर याद कराते थे। लेकिन उनके बेटे शंकर मिश्र ने अपने पिता के सारे ज्ञान को कलमबद्ध किया और मात्र 5 साल की उम्र में दुनिया को चौंका दिया।
राजा के दरबार में बालक शंकर
यह किस्सा बड़ा मशहूर है। एक बार मिथिला के राजा (संभवतः राजा भैरवसिंह) के दरबार में 5 वर्षीय शंकर मिश्र पहुंचे। राजा ने बालक को देखकर मजाक में उसका परिचय पूछा। उस नन्हे बालक ने संस्कृत में एक श्लोक सुनाया जिसने दरबार को सन्न कर दिया:
“बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती। अपूर्णे पञ्चमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम्॥”
अर्थ: “हे राजन! मैं भले ही बालक हूं, लेकिन मेरी सरस्वती (विद्या) बालक नहीं है। मैं अभी पांच वर्ष का भी नहीं हुआ हूं, लेकिन तीनों लोकों का वर्णन कर सकता हूं।”
चमाइन पोखर और वह ऐतिहासिक वचन
अयाची मिश्र के जीवन की सबसे मार्मिक कहानी एक दलित महिला (दाई/मिडवाइफ) से जुड़ी है, जो उस समय के सामाजिक ताने-बाने और अयाची के नैतिक स्तर को दर्शाती है।
जब शंकर मिश्र का जन्म हुआ, तो अयाची मिश्र के घर में इतनी गरीबी थी कि दाई (जिसे स्थानीय भाषा में चमाइन कहा जाता है) को देने के लिए एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। अयाची मिश्र ने उस महिला से कहा, “मां, अभी मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन मैं वचन देता हूं कि मेरे बेटे की जो ‘पहली कमाई’ होगी, वह तुम्हें मिलेगी।”
सालों बीत गए। जब 5 साल के शंकर ने राजा के दरबार में अपनी विद्वता दिखाई, तो राजा ने खुश होकर उन्हें अपना नौलखा हार (कीमती रत्नों का हार) और ढेर सारी मोहरें इनाम में दीं। बालक शंकर जब घर लौटे और वह हार अपने पिता को दिया, तो अयाची मिश्र को अपना वचन याद आ गया।
उन्होंने तुरंत उस दाई को बुलवाया और वह बेशकीमती शाही हार उसे सौंप दिया। यह उस वचन की कीमत थी जो एक गरीब ब्राह्मण ने एक दाई को दिया था।
समाज सेवा की मिसाल: कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उस दाई ने भी महानता की मिसाल पेश की। उसने सोचा कि इतने महंगे हार का मैं क्या करूंगी? उसने उस हार को बेचकर गांव वालों के लिए एक विशाल तालाब खुदवाया। यह तालाब आज भी सरिसब पाही में मौजूद है और इसे ‘चमाइन पोखर’ (Chamain Pokhar) या ‘हरही पोखर’ के नाम से जाना जाता है।
साहित्यिक योगदान
अयाची मिश्र ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, लेकिन उनके ज्ञान को उनके पुत्र शंकर मिश्र ने अमर कर दिया। शंकर मिश्र ने वैशेषिक सूत्र पर ‘उपस्कर’ (Upaskara) नामक प्रसिद्ध टीका लिखी। इसके अलावा उन्होंने लगभग 19 ग्रंथ लिखे, जिनमें ‘रसार्णव’ और ‘आत्मतत्त्वविवेक’ प्रमुख हैं। यह सब ज्ञान उन्हें अपने पिता से ही विरासत में मिला था।















