बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव आया है। करीब 20 साल बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गृह विभाग किसी और को सौंप दिया है। अब यह जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सम्राट चौधरी के कंधों पर है। सवाल यह है कि क्या बिहार में अब माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का दौर शुरू होने वाला है?

गृह विभाग का हस्तांतरण: बदलाव की बयार
21 नवंबर 2025 को जब विभागों का बंटवारा हुआ, तो सबसे बड़ी सुर्खी बनी गृह विभाग की। नीतीश कुमार ने लगभग दो दशक तक इस संवेदनशील विभाग को अपने पास रखा था, लेकिन इस बार उन्होंने इसे सम्राट चौधरी को सौंप दिया। यह फैसला राज्य की सत्ता संरचना में एक बड़े बदलाव का संकेत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठकों का नतीजा है। बिहार में बढ़ते साइबर अपराध, सीमा पार तस्करी, नेपाल में जेन-जेड मूवमेंट और चिकन नेक जैसे संवेदनशील इलाकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई थी। केंद्र चाहता था कि बिहार में ऐसा गृहमंत्री हो जो तेज़ी से फैसले ले सके और केंद्र के साथ तालमेल बनाकर काम करे।
सम्राट चौधरी: कौन हैं बिहार के नए गृहमंत्री?
सम्राट चौधरी का जन्म 16 नवंबर 1968 को हुआ था। राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आने के कारण उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में ही राजनीति में कदम रख दिया था। पारबट्टा विधानसभा क्षेत्र से 2000 और 2010 में दो बार विधायक चुने गए।
मार्च 2023 में उन्हें बिहार बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद जनवरी 2024 में वे उपमुख्यमंत्री बने और उन्हें वित्त, स्वास्थ्य, शहरी विकास और पंचायती राज जैसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपे गए। अब गृह विभाग मिलने के बाद वे नीतीश कुमार के बाद राज्य के दूसरे सबसे प्रभावशाली नेता बन गए हैं।
अपराधियों को दी गई साफ चेतावनी
गृह विभाग का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद 22 नवंबर को सम्राट चौधरी ने अपराधियों को कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “बिहार अपराध की जगह नहीं है। अपराधियों को अब बिहार छोड़ना होगा। पुलिस को अपराध रोकने और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की पूरी छूट दी गई है।”
उन्होंने कहा कि पुलिस अब बंधी हुई नहीं है। पुलिस को खुलकर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। यह बयान अपने आप में एक बड़ा संदेश था, जिसने अपराधियों के बीच खलबली मचा दी।
बीजेपी प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि यह पुलिस एनकाउंटर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शैली का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने आगे कहा, “सम्राट चौधरी के नेतृत्व में अब अपराधी कांप उठेंगे क्योंकि बिहार में शांति और न्याय का नया युग शुरू हो चुका है।”
दिल्ली में हुआ बड़ा एनकाउंटर: सिग्मा गैंग का खात्मा
23 अक्टूबर 2025 को दिल्ली के रोहिणी इलाके में एक बड़ा पुलिस एनकाउंटर हुआ। इस ऑपरेशन में दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच और बिहार पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने मिलकर बिहार के कुख्यात “सिग्मा एंड कंपनी” गैंग के चार गैंगस्टरों को मार गिराया।
मारे गए अपराधियों में गैंग का मुखिया रंजन पाठक (25 वर्ष), बिमलेश महतो (25 वर्ष), मनीष पाठक (33 वर्ष) और अमन ठाकुर (21 वर्ष) शामिल थे। सभी बिहार के सीतामढ़ी जिले के रहने वाले थे और कई हत्या, वसूली और सशस्त्र डकैती के मामलों में वांछित थे।
रात करीब 2:20 बजे बहादुर शाह मार्ग पर पुलिस ने एक सफेद कार को रोकने की कोशिश की। जैसे ही पुलिस ने रुकने का इशारा किया, अपराधियों ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी। पुलिस को भी जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। इस मुठभेड़ में 25-30 राउंड गोलियां अपराधियों की तरफ से चली, जबकि पुलिस ने 15-20 गोलियां चलाईं।
चारों अपराधियों को गंभीर रूप से घायल हालत में डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
सिग्मा गैंग: बिहार का खूंखार गिरोह
सिग्मा गैंग पिछले छह-सात सालों से बिहार में सक्रिय था। यह गिरोह मुख्य रूप से सीतामढ़ी, शिवहर और मधुबनी में सुपारी हत्या और वसूली के लिए कुख्यात था। गैंग के मुखिया रंजन पाठक की गिरफ्तारी पर 50,000 रुपये का इनाम था। वह 8 आपराधिक मामलों में वांछित था, जिनमें कई हत्या के मामले शामिल थे।
पुलिस के मुताबिक, यह गैंग नेपाल से संचालित होता था और नेपाल सीमा के पार अपराध करता था। हाल के महीनों में इस गैंग ने ब्रह्मर्षि सेना के जिला अध्यक्ष गणेश शर्मा, मदन शर्मा और आदित्य सिंह समेत कई लोगों की हत्या की थी।
एक ऑडियो क्लिप में रंजन पाठक को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अशांति फैलाने की योजना बनाते हुए सुना गया था। पुलिस का मानना था कि यह गिरोह चुनाव से पहले बड़ी वारदात को अंजाम देने की साजिश रच रहा था।
बिहार में अपराध नियंत्रण की नई रणनीति
डीजीपी विनय कुमार ने राज्य में पुलिसिंग के तरीके में बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने पहली बार “छोटे संगठित अपराध” की अलग श्रेणी बनाई है। इसके तहत चोरी, झपटमारी, जालसाजी, चीटिंग, टिकटों की अवैध बिक्री, जुआ-सट्टा जैसे अपराधों को भी विशेष रिपोर्टेड मामलों में शामिल किया गया है।
डीजीपी ने सभी जिलों के एसएसपी और एसपी को साफ निर्देश जारी किया है कि संगठित अपराध का मतलब सिर्फ बड़े गैंग या गिरोह से नहीं है। अब छोटी चोरी और झपटमारी को भी हल्के में नहीं लिया जाएगा। अपराध का पैमाना नहीं, बल्कि उसका स्वरूप और अपराधी का नेटवर्क अहम होगा।
बिहार पुलिस ने बढ़ते अपराध के मद्देनजर एक समर्पित “शूटर सेल” बनाने का फैसला किया है। यह सेल राज्य में शूटरों और पेशेवर अपराधियों की निगरानी करेगा और समय पर कार्रवाई करेगा। सभी जिलों के एसपी और एसएसपी को अपने क्षेत्र के कुख्यात शूटरों का विस्तृत डेटा तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
क्या लागू होगा यूपी मॉडल?
पिछले कुछ सालों से बिहार में बीजेपी विधायकों की मांग रही है कि अपराध नियंत्रण के लिए “यूपी मॉडल” अपनाया जाए। बीजेपी विधायक पवन जायसवाल ने कहा था कि बिहार में अपराध को नियंत्रित करने के लिए यूपी के एनकाउंटर मॉडल के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका मतलब सिर्फ अपराधियों की गाड़ियों के पलटने से था, न कि एनकाउंटर किलिंग से।
अब जब सम्राट चौधरी ने गृह विभाग संभाला है, तो चर्चा तेज हो गई है कि क्या बिहार में भी यूपी जैसी सख्त कार्रवाई देखने को मिलेगी। सम्राट चौधरी ने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार यूपी स्टाइल क्रैकडाउन का जिक्र किया था और चेतावनी दी थी कि बिहार में अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
हालांकि, एडीजी (कानून व्यवस्था) कुंदन कृष्णन ने साफ कहा है कि “एनकाउंटर इस बीमारी का इलाज नहीं है। समाज को आगे आना होगा और पुलिस और प्रशासन को जनता का सहयोग चाहिए।”
बिहार में अपराध की स्थिति: आंकड़े क्या कहते हैं?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) और बिहार पुलिस के स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एससीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में बिहार में अपराध बढ़े हैं। 2015 से 2024 के बीच बिहार में कुल अपराधों की संख्या में 80.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी अवधि में देशभर में अपराध में औसतन 32.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
हालांकि 2024 में बिहार में अपराध की संख्या में मामूली गिरावट दर्ज की गई, लेकिन स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। एससीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, जून 2025 तक बिहार में 1,379 हत्याएं दर्ज की गईं, जबकि पूरे 2024 में 2,786 हत्याएं हुई थीं।
विपक्षी महागठबंधन लगातार नीतीश सरकार पर कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर हमला करता रहा है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि “बेहोश मुख्यमंत्री” के नेतृत्व में बिहार “अराजकता” में डूब गया है। यहां तक कि एनडीए के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान ने भी हाल की हिंसक घटनाओं को “बिहार में कानून-व्यवस्था के पूर्ण पतन” का संकेत बताया था।
चुनाव से पहले की तैयारी
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पुलिस ने कड़े कदम उठाए थे। पटना में 23 हजार से अधिक अपराधियों को चिन्हित किया गया और उनसे सुरक्षा बांड भरवाए गए। जनवरी से अक्टूबर 2025 तक क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत 184 अपराधियों पर कार्रवाई की गई। उन्हें या तो अपने जिले के थानों में या फिर दूसरे जिलों के थानों में नियमित हाजिरी लगाने को कहा गया।
संवेदनशील बूथों की पहचान की गई और दियारा तथा नदी क्षेत्रों में सख्त निगरानी की व्यवस्था की गई। नावों से पेट्रोलिंग और घोड़ों से निगरानी का इंतजाम किया गया। कुल 29 कंपनी फोर्स तैनात की गई और सीमा क्षेत्रों में 32 चेकपोस्ट बनाए गए।
आगे क्या होगा?
सम्राट चौधरी के गृहमंत्री बनने के बाद बिहार में कानून-व्यवस्था पर नया फोकस दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार बिहार को केवल एक राज्य नहीं, बल्कि “राष्ट्रीय सुरक्षा बेल्ट” के रूप में देखती है। बिहार की एटीएस, एसटीएफ और केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय मजबूत करना बीजेपी की राजनीतिक और रणनीतिक प्राथमिकता है।
सम्राट चौधरी ने साफ कर दिया है कि पुलिसिंग अब परफॉर्मेंस-ड्रिवन होगी। आंतरिक बैठकों में उनका संदेश स्पष्ट रहा है: अपराध कम करो या हट जाओ। नीतीश कुमार ने 2029 से पहले बिहार की छवि बदलने के लक्ष्य का समर्थन किया है, और कानून-व्यवस्था को राज्य की नई राजनीतिक कथा बनाने का इरादा है।
बिहार की जनता को उम्मीद है कि नए गृहमंत्री की सक्रियता से अपराध पर लगाम लगेगी और वे सुरक्षित माहौल में जीवन व्यतीत कर सकेंगे। दिल्ली में सिग्मा गैंग के खात्मे जैसे ऑपरेशन ने यह संकेत दिया है कि बिहार पुलिस अब ज्यादा मुस्तैद है। आने वाले समय में ही पता चलेगा कि क्या सम्राट चौधरी के नेतृत्व में बिहार वाकई माफियामुक्त बन पाएगा या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाएगी।

















